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Jo Itihass Main Nahin Hai
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
राकेश कुमार सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
राकेश कुमार सिंह
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹360 ₹252
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8126311207
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
488
जो इतिहास में नहीं है –
ईस्ट इंडिया कम्पनी के शोषण और दमन से त्रस्त झारखण्ड के आदिवासी सन्थाल बहादुरों के मुक्ति संग्राम की सशक्त महागाथा है ‘जो इतिहास में नहीं है’—उपन्यास।
सन अट्ठारह सौ सत्तावन से पूर्व हुए इन आन्दोलनों के नायक वे लोग हैं, जिनके जल, जंगल और ज़मीन के नैसर्गिक अधिकारों से उन्हें लगातार बेदख़ल किया जाता रहा है। अंग्रेज़ी हुकूमत, ज़मींदार और साहूकार के त्रिगुट ने वस्तुतः इन वनपुत्रों को उनके जीने के प्राकृतिक अधिकार से वंचित कर रखा था। ऐसे में सिदो-कान्हू-चाँद-भैरव जैसे लड़ाकों की अगुआई में सन्थाल क्रान्ति ‘हूल’ का नगाड़ा बज उठता है। उपन्यास की यह कथा एक विद्रोही सन्थाल युवा हारिल मुरमू और उराँव युवती लाली के बनैले प्रेम के ताने-बाने से बुनी गयी है, जिसमें वहाँ के लोकजीवन और लोकरंग का गाढ़ापन है और जनजातीय समाज की धड़कनें भी। सन्देह नहीं कि बेहद रोचक और मर्मस्पर्शी इस उपन्यास की कथा को सहृदय पाठक वर्षों तक अपने दिल में सँजोये रखेंगे।
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Description
जो इतिहास में नहीं है –
ईस्ट इंडिया कम्पनी के शोषण और दमन से त्रस्त झारखण्ड के आदिवासी सन्थाल बहादुरों के मुक्ति संग्राम की सशक्त महागाथा है ‘जो इतिहास में नहीं है’—उपन्यास।
सन अट्ठारह सौ सत्तावन से पूर्व हुए इन आन्दोलनों के नायक वे लोग हैं, जिनके जल, जंगल और ज़मीन के नैसर्गिक अधिकारों से उन्हें लगातार बेदख़ल किया जाता रहा है। अंग्रेज़ी हुकूमत, ज़मींदार और साहूकार के त्रिगुट ने वस्तुतः इन वनपुत्रों को उनके जीने के प्राकृतिक अधिकार से वंचित कर रखा था। ऐसे में सिदो-कान्हू-चाँद-भैरव जैसे लड़ाकों की अगुआई में सन्थाल क्रान्ति ‘हूल’ का नगाड़ा बज उठता है। उपन्यास की यह कथा एक विद्रोही सन्थाल युवा हारिल मुरमू और उराँव युवती लाली के बनैले प्रेम के ताने-बाने से बुनी गयी है, जिसमें वहाँ के लोकजीवन और लोकरंग का गाढ़ापन है और जनजातीय समाज की धड़कनें भी। सन्देह नहीं कि बेहद रोचक और मर्मस्पर्शी इस उपन्यास की कथा को सहृदय पाठक वर्षों तक अपने दिल में सँजोये रखेंगे।
About Author
राकेश कुमार सिंह -
जन्म: 20 फ़रवरी, 1960, ग्राम गुरहा, ज़िला पलामू (झारखण्ड)।
शिक्षा: स्नातकोत्तर (रसायन विज्ञान) एवं विधि स्नातक।
प्रकाशित कृतियाँ: कहानी संग्रह—'होंका और अन्य कहानियाँ', 'ओह पलामू...!' उपन्यास—'जहाँ खिले हैं रक्तपलाश', 'पठार पर कोहरा', 'साधो यह मुर्दों का गाँव', 'जो इतिहास में नहीं है'। किशोर उपन्यास—'वैरागी वन के प्रेत' और 'केसरीगढ़ की काली रात'। बालोपयोगी—'हिमालय की कहानी', 'कहानियाँ ज्ञान की विज्ञान की', 'अग्निपुरुष', 'आदिपर्व', 'उलगुलान', 'अरण्य कथाएँ' और 'अवशेष कथा'।
पुरस्कार\सम्मान: सागर (मध्य प्रदेश) का दिव्य रजत अलंकरण के अतिरिक्त कथाक्रम कहानी प्रतियोगिता (2001-2002) एवं 'कथाविच' कथा पुरस्कार (2002)। दूरदर्शन के राष्ट्रीय शैक्षिक चैनल 'ज्ञानदर्शन' हेतु आयोजित पटकथा के लिए अनुबन्धित।
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