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Tang Galiyon Se Bhi Dikhata Hai Akash

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
यादवेन्द्र
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
यादवेन्द्र
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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187

तंग गलियों से भी दिखता है आकाश –
क़रीब दो दशक पहले यादवेन्द्र जी से परिचय विज्ञान लेखक के रूप में हुआ था और इस रूप में भी मैं उनका मुरीद था। फिर पिछले कुछ वर्षों से उनके एक नये रूप में परिचय हुआ विश्व के कथाकारों के एक श्रेष्ठ अनुवादक के रूप में और यह भी उससे कम सुखद नहीं है। हिन्दी में विदेशी रचनात्मक कथा-साहित्य के चन्द बेहतरीन अनुवादकों में वह एक हैं, जिनकी एक ही महत्वाकांक्षा रही है कि आज दुनियाभर के विभिन्न तरह के बहुस्तरीय संघर्षों के बीच जो भी लेखक अपना श्रेष्ठतम दे रहे हैं, उन्हें हिन्दी में सामने लाया जाये। यह काम आसान नहीं है। यह केवल कुछ चर्चित और बड़े कथाकारों की कुछ रचनाओं को सामने लाने तक सीमित नहीं है क्योंकि अनुवाद करना तो बाद की बात है, पहला काम जो आज लिखा जा रहा है, उसे पढ़कर समझना और फिर उसे चुनौती मानकर सामने लाना है, खोजने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेना है। जो विश्वस्तर पर मशहूर कवि-लेखक हैं, उन्हीं की रचनाएँ अनुवाद करने में अनुवाद करने की भी चुनौती है और कोई ख़तरा भी नहीं है। लेकिन यादवेन्द्र दुनिया के उन इलाक़ों से कथाकारों को चुनते हैं, जो हमारी निगाह से अक्सर दूर रहते हैं मगर जिन्होंने अपना बेहतरीन कृतित्व दिया है, जो आज की संघर्षशील मनुष्यता के साथ खड़े हैं। उन्हीं में से कुछ रचनाओं का यह संग्रह है—तंग गलियों से भी दिखता है आकाश। इसमें उन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों की क़रीब ऐसी दो दर्जन महिला कथाकारों की ऐसी कहानियों का अनुवाद किया है, जो लगभग दुनिया के सारे महाद्वीपों की बात कहती हैं। शायद इस तरह का हिन्दी में यह पहला प्रयत्न है। विभिन्न देशों की ये महिला कथाकार उथल-पुथल भरी किन-किन नयी परिस्थितियों से गुज़र कर नयी दृष्टि के साथ दुनिया की अत्यन्त मार्मिक तस्वीर सामने रख रही हैं, यह संकलन उन कहानियों का एक अनोखा गुलदस्ता है। यह एक तरह से हिन्दी के तमाम कथाकारों के लिए एक ज़रूरी किताब है। इन महिला कथाकारों ने दुनिया को जितने ही रूपों में देखा और दिखाया है यह एक तरह से समकालीन दुनिया का दस्तावेज़ बन गया है। यादवेन्द्र जैसे समर्पित अनुवादक न होते तो दुनिया हमारे लिए कई अर्थों में अगम्य बनी रहती। विज्ञान और साहित्य का मेल किस तरह व्यापक मानवीय संवेदना को उकेर सकता है, हमारी संवेदना को परिष्कृत कर सकता है यह संग्रह उसका उदाहरण है।
यादवेन्द्र उन अनुवादकों में नहीं हैं, जो विदेशी दूतावासों की नज़र में आकर विदेश यात्रा के जुगाड़ में अनुवाद किया करते हैं। उन्होंने आज तक साहित्य के एक अच्छे कार्यकर्ता की तरह ही दुनिया को हमारे सामने रखा है। उन्होंने जटिलतम मानवीय सम्बन्धों पर लिखी गयी उत्कृष्ट कहानियाँ हमें दी हैं, जिनमें चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के बहाने लिखी वह कहानी भी है जो एक व्यक्ति का एक तरह से सच्चा मार्मिक बयान है। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जो चेर्नोबिल दुर्घटना के बाद सरकारी तौर पर सख़्त मनाही के बावजूद अपने साथ घर का दरवाज़ा उखाड़ कर ले जाता है। उस घर की यह परम्परा रही है कि उसके किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसे तब तक उसी किवाड़ पर लिटाया जाता है, जब तक कि उसके लिए ताबूत बनकर नहीं आ जाता। विडम्बना देखिए कि उसे अपनी 6 साल की बेटी को जो चेर्नोबिल के हादसे का शिकार होती है उसे ही दरवाज़े पर लिटाकर जीवन से विदा करना पड़ता है। ऐसी न जाने कितनी कहानियाँ इस संग्रह में हैं, जो मनुष्य की जीने की प्रबल इच्छाशक्ति को दर्शाती हैं। इसाबेला एलेन्दे की कहानी भी ज्वालामुखी फटने और बर्फ़ के पहाड़ पिघलकर धँसने के कारण एक बच्ची और इस दुर्घटना को कवर करने गये एक पत्रकार के मानवीय साहस की एक अनुपम और विश्वसनीय कहानी है। ये सिर्फ़ कहानियाँ नहीं हैं बल्कि एक स्तर पर कविताएँ हैं। इन्हें पढ़ना एक साथ कहानी और कविता दोनों पढ़ना है और यह सुख बहुत कम रचनाओं के ज़रिए हम तक पहुँच पाता है।–विष्णु नागर

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Description

तंग गलियों से भी दिखता है आकाश –
क़रीब दो दशक पहले यादवेन्द्र जी से परिचय विज्ञान लेखक के रूप में हुआ था और इस रूप में भी मैं उनका मुरीद था। फिर पिछले कुछ वर्षों से उनके एक नये रूप में परिचय हुआ विश्व के कथाकारों के एक श्रेष्ठ अनुवादक के रूप में और यह भी उससे कम सुखद नहीं है। हिन्दी में विदेशी रचनात्मक कथा-साहित्य के चन्द बेहतरीन अनुवादकों में वह एक हैं, जिनकी एक ही महत्वाकांक्षा रही है कि आज दुनियाभर के विभिन्न तरह के बहुस्तरीय संघर्षों के बीच जो भी लेखक अपना श्रेष्ठतम दे रहे हैं, उन्हें हिन्दी में सामने लाया जाये। यह काम आसान नहीं है। यह केवल कुछ चर्चित और बड़े कथाकारों की कुछ रचनाओं को सामने लाने तक सीमित नहीं है क्योंकि अनुवाद करना तो बाद की बात है, पहला काम जो आज लिखा जा रहा है, उसे पढ़कर समझना और फिर उसे चुनौती मानकर सामने लाना है, खोजने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेना है। जो विश्वस्तर पर मशहूर कवि-लेखक हैं, उन्हीं की रचनाएँ अनुवाद करने में अनुवाद करने की भी चुनौती है और कोई ख़तरा भी नहीं है। लेकिन यादवेन्द्र दुनिया के उन इलाक़ों से कथाकारों को चुनते हैं, जो हमारी निगाह से अक्सर दूर रहते हैं मगर जिन्होंने अपना बेहतरीन कृतित्व दिया है, जो आज की संघर्षशील मनुष्यता के साथ खड़े हैं। उन्हीं में से कुछ रचनाओं का यह संग्रह है—तंग गलियों से भी दिखता है आकाश। इसमें उन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों की क़रीब ऐसी दो दर्जन महिला कथाकारों की ऐसी कहानियों का अनुवाद किया है, जो लगभग दुनिया के सारे महाद्वीपों की बात कहती हैं। शायद इस तरह का हिन्दी में यह पहला प्रयत्न है। विभिन्न देशों की ये महिला कथाकार उथल-पुथल भरी किन-किन नयी परिस्थितियों से गुज़र कर नयी दृष्टि के साथ दुनिया की अत्यन्त मार्मिक तस्वीर सामने रख रही हैं, यह संकलन उन कहानियों का एक अनोखा गुलदस्ता है। यह एक तरह से हिन्दी के तमाम कथाकारों के लिए एक ज़रूरी किताब है। इन महिला कथाकारों ने दुनिया को जितने ही रूपों में देखा और दिखाया है यह एक तरह से समकालीन दुनिया का दस्तावेज़ बन गया है। यादवेन्द्र जैसे समर्पित अनुवादक न होते तो दुनिया हमारे लिए कई अर्थों में अगम्य बनी रहती। विज्ञान और साहित्य का मेल किस तरह व्यापक मानवीय संवेदना को उकेर सकता है, हमारी संवेदना को परिष्कृत कर सकता है यह संग्रह उसका उदाहरण है।
यादवेन्द्र उन अनुवादकों में नहीं हैं, जो विदेशी दूतावासों की नज़र में आकर विदेश यात्रा के जुगाड़ में अनुवाद किया करते हैं। उन्होंने आज तक साहित्य के एक अच्छे कार्यकर्ता की तरह ही दुनिया को हमारे सामने रखा है। उन्होंने जटिलतम मानवीय सम्बन्धों पर लिखी गयी उत्कृष्ट कहानियाँ हमें दी हैं, जिनमें चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के बहाने लिखी वह कहानी भी है जो एक व्यक्ति का एक तरह से सच्चा मार्मिक बयान है। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जो चेर्नोबिल दुर्घटना के बाद सरकारी तौर पर सख़्त मनाही के बावजूद अपने साथ घर का दरवाज़ा उखाड़ कर ले जाता है। उस घर की यह परम्परा रही है कि उसके किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसे तब तक उसी किवाड़ पर लिटाया जाता है, जब तक कि उसके लिए ताबूत बनकर नहीं आ जाता। विडम्बना देखिए कि उसे अपनी 6 साल की बेटी को जो चेर्नोबिल के हादसे का शिकार होती है उसे ही दरवाज़े पर लिटाकर जीवन से विदा करना पड़ता है। ऐसी न जाने कितनी कहानियाँ इस संग्रह में हैं, जो मनुष्य की जीने की प्रबल इच्छाशक्ति को दर्शाती हैं। इसाबेला एलेन्दे की कहानी भी ज्वालामुखी फटने और बर्फ़ के पहाड़ पिघलकर धँसने के कारण एक बच्ची और इस दुर्घटना को कवर करने गये एक पत्रकार के मानवीय साहस की एक अनुपम और विश्वसनीय कहानी है। ये सिर्फ़ कहानियाँ नहीं हैं बल्कि एक स्तर पर कविताएँ हैं। इन्हें पढ़ना एक साथ कहानी और कविता दोनों पढ़ना है और यह सुख बहुत कम रचनाओं के ज़रिए हम तक पहुँच पाता है।–विष्णु नागर

About Author

यादवेन्द्र - जन्म: 1957, आरा (बिहार)। बनारस में पैतृक घर पर बचपन और युवावस्था बिहार में बीती। भागलपुर में स्कूली और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के साथ-साथ साहित्यिक दीक्षा भी मिली। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले 1974 के छात्र आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी और ललाट पर पुलिस के डण्डे की चोट का स्थायी निशान। कुछ समय कोरबा, छत्तीसगढ़ में काम करने के बाद 1980 से लेकर मध्य जून 2017 तक लगातार रुड़की के केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान में वैज्ञानिक से निदेशक तक का सफ़र पूरा किया। हिमालयी भूस्खलन, संरचनाओं पर भूकम्प के प्रभाव और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण पर विशेषज्ञता। रविवार, दिनमान, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान, अमर उजाला, प्रभात ख़बर, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, साँचा, समकालीन जनमत इत्यादि में विज्ञान सहित विभिन्न विषयों पर प्रचुर लेखन। विदेशी समाजों की कविता कहानियों के अंग्रेज़ी से किये अनुवाद नया ज्ञानोदय, हंस, कथादेश, वागर्थ, शुक्रवार, अहा ज़िन्दगी जैसी पत्रिकाओं और अनुनाद, कबाड़ख़ाना, लिखो यहाँ वहाँ, ख़्वाब का दर, सेतु साहित्य, सदानीरा जैसे साहित्यिक ब्लॉगों में प्रकाशित। मार्च 2017 के स्त्री साहित्य पर केन्द्रित 'कथादेश' का अतिथि सम्पादन। साहित्य के अलावा यायावरी, सिनेमा और फ़ोटोग्राफ़ी का शौक़।

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