Shaalbhanjika

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
मनीषा कुलश्रेष्ठ
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
मनीषा कुलश्रेष्ठ
Language:
Hindi
Format:
Hardback

119

Save: 1%

In stock

Ships within:
10-12 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788126340446 Category
Category:
Page Extent:
96

शालभंजिका –
जैन और बौद्धकालीन स्थापत्य व मूर्तिकला में ‘शालभंजिका’ मन्दिर के तोरण द्वारों पर द्वारपालिका की तरह उकेरी जाती रही है। शालवृक्ष की फूलों भरी डाली पकड़े, उद्दाम ऐन्द्रिकता लिये यह स्त्री की प्रस्तर प्रतिमा दरअसल अपने भीतर के अनछुए कोष्ठ प्रकोष्ठों की भी स्वयं रक्षिका प्रतीत होती है। यह पूर्णतः सम्भव है कि उस मूर्तिकार (जिसने पहले पहल शालभंजिका को गढ़ा होगा) ने भी वही बेचैनी महसूस की हो, अतीत में विलुप्त किसी स्त्री की स्मृति में, जो बेचैनी इस उपन्यास का नायक, फ़िल्मकार चेतन महसूस करता रहा है और अपनी कला के माध्यम से अन्तस् में बसी पद्मा की छवियों को वह फ़िल्म में ढाल देना चाहता है। कलाकार पर बीतते और कला के माध्यम से रीतते इसी नॉस्टेल्जिया की कहानी है शालभंजिका।
हर मनुष्य बाध्य है कि वह जीवन के इस बृहत् नाटक में अस्थायी तौर पर बाहर-भीतर से स्वयं को रूपान्तरित कर ले, हालाँकि इस रूपान्तरण के दौरान उसका अपने अस्तित्व की भीतरी वलयों से साक्षात्कार एक चमत्कार की तरह घटता है। यही नियति है और यही निर्वाण है इस उपन्यासिका के तीनों मुख्य पात्रों—चेतन, पद्मा और ग्रेशल का।
अपने वैविध्यपूर्ण लेखन और अतिसमृद्ध भाषा के लिए जानी जाने वाली लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ की यह कृति ‘शालभंजिका’ अलग तरह के शिल्प और कथ्य को वहन करती है। अत्यन्त चाक्षुष और ऐन्द्रिक। एक फ़िल्मकार नायक को लेकर लिखी गयी इस उपन्यासिका में एक ख़ास तरह का आस्वाद है, जिसके तर्कातीत और आवेगमय होने में ही इसकी रचनात्मक निष्पत्ति है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shaalbhanjika”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

शालभंजिका –
जैन और बौद्धकालीन स्थापत्य व मूर्तिकला में ‘शालभंजिका’ मन्दिर के तोरण द्वारों पर द्वारपालिका की तरह उकेरी जाती रही है। शालवृक्ष की फूलों भरी डाली पकड़े, उद्दाम ऐन्द्रिकता लिये यह स्त्री की प्रस्तर प्रतिमा दरअसल अपने भीतर के अनछुए कोष्ठ प्रकोष्ठों की भी स्वयं रक्षिका प्रतीत होती है। यह पूर्णतः सम्भव है कि उस मूर्तिकार (जिसने पहले पहल शालभंजिका को गढ़ा होगा) ने भी वही बेचैनी महसूस की हो, अतीत में विलुप्त किसी स्त्री की स्मृति में, जो बेचैनी इस उपन्यास का नायक, फ़िल्मकार चेतन महसूस करता रहा है और अपनी कला के माध्यम से अन्तस् में बसी पद्मा की छवियों को वह फ़िल्म में ढाल देना चाहता है। कलाकार पर बीतते और कला के माध्यम से रीतते इसी नॉस्टेल्जिया की कहानी है शालभंजिका।
हर मनुष्य बाध्य है कि वह जीवन के इस बृहत् नाटक में अस्थायी तौर पर बाहर-भीतर से स्वयं को रूपान्तरित कर ले, हालाँकि इस रूपान्तरण के दौरान उसका अपने अस्तित्व की भीतरी वलयों से साक्षात्कार एक चमत्कार की तरह घटता है। यही नियति है और यही निर्वाण है इस उपन्यासिका के तीनों मुख्य पात्रों—चेतन, पद्मा और ग्रेशल का।
अपने वैविध्यपूर्ण लेखन और अतिसमृद्ध भाषा के लिए जानी जाने वाली लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ की यह कृति ‘शालभंजिका’ अलग तरह के शिल्प और कथ्य को वहन करती है। अत्यन्त चाक्षुष और ऐन्द्रिक। एक फ़िल्मकार नायक को लेकर लिखी गयी इस उपन्यासिका में एक ख़ास तरह का आस्वाद है, जिसके तर्कातीत और आवेगमय होने में ही इसकी रचनात्मक निष्पत्ति है।

About Author

मनीषा कुलश्रेष्ठ - जन्म: 26 अगस्त, 1967, जोधपुर। शिक्षा: बी.एससी., एम.ए. (हिन्दी साहित्य), एम.फिल., विशारद (कथक)। प्रकाशित कृतियाँ: 'कठपुतलियाँ', 'कुछ भी तो रूमानी नहीं', 'केयर ऑफ़ स्वात घाटी', 'गन्धर्व-गाथा', 'बौनी होती परछाईं' (कहानी संग्रह); 'शिगाफ़' (उपन्यास) । पुरस्कार व सम्मान : चन्द्रदेव शर्मा पुरस्कार, 1989 (राजस्थान साहित्य अकादमी), कृष्ण बलदेव वैद फ़ेलोशिप, 2007, रांगेय राघव पुरस्कार, 2010 (राजस्थान साहित्य अकादमी) । अन्य : बहुचर्चित उपन्यास 'शिगाफ़' का हायडलबर्ग (जर्मनी) के साउथ एशियन मॉडर्न लैंग्वेजेज़ सेंटर में वाचन । अनुवाद : माया एँजलू की आत्मकथा 'वाय केज्ड बर्ड सिंग' के अंश, लातिन अमरीकी लेखक मामाडे के उपन्यास 'हाउस मेड ऑफ़ डॉन' के अंश, बोस की कहानियों का अनुवाद।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shaalbhanjika”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED