SaleHardback
Pramukh Jain Granthon Ka Parichay
₹400 ₹280
Save: 30%
Premkatha : Rati-Jinna
₹880 ₹616
Save: 30%
Premchand, Gorki Evam Loo Shun Ka Katha Sahitya
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
फणीश सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
फणीश सिंह
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹410 ₹287
Save: 30%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789387919136
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
208
प्रेमचन्द, गोर्की एवं लू शुन का कथा साहित्य –
कहानी अपने लघु कलेवर में तद्युगीन समाज का जीता-जागता प्रतिबिम्ब तो है ही एक जीवन्त उपदेष्टा है जो एक मोड़ देकर सत्य पथ पर अग्रसारित करती है। जहाँ तक हिन्दी कहानी साहित्य को प्रेमचन्द की देन है, वह कहानियों की विशाल निधि तथा कहानियों में निहित सच्चाई, आदर्श, यथार्थ और गहराई को देखते हुए मेरी समझ में वे अधिक जीवन्त और खरे दृष्टिगत होते हैं। लगभग यही बात गोर्की के विषय में भी कही जा सकती है। लू शुन तो अपनी कहानियों के लिए ही विश्व साहित्य के पटल पर आये।
पुस्तक में इन तीनों महान लेखकों की संक्षिप्त तस्वीर प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है जिसे साधारण पाठक भी ग्रहण कर सके और इन तीनों लेखकों की सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का आकलन तुलनात्मक ढंग से करने का प्रयत्न किया गया है। तीनों लेखकों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जिस संघर्ष की शुरुआत की थी वह सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन की थी। इन लेखकों के यथार्थवाद और समाजवादी यथार्थवाद का ज़िक्र होना भी आवश्यक था, क्योंकि तीनों पूँजीवादी एवं विदेशी शोषण के शिकार थे।
Be the first to review “Premchand, Gorki Evam Loo Shun Ka Katha Sahitya” Cancel reply
Description
प्रेमचन्द, गोर्की एवं लू शुन का कथा साहित्य –
कहानी अपने लघु कलेवर में तद्युगीन समाज का जीता-जागता प्रतिबिम्ब तो है ही एक जीवन्त उपदेष्टा है जो एक मोड़ देकर सत्य पथ पर अग्रसारित करती है। जहाँ तक हिन्दी कहानी साहित्य को प्रेमचन्द की देन है, वह कहानियों की विशाल निधि तथा कहानियों में निहित सच्चाई, आदर्श, यथार्थ और गहराई को देखते हुए मेरी समझ में वे अधिक जीवन्त और खरे दृष्टिगत होते हैं। लगभग यही बात गोर्की के विषय में भी कही जा सकती है। लू शुन तो अपनी कहानियों के लिए ही विश्व साहित्य के पटल पर आये।
पुस्तक में इन तीनों महान लेखकों की संक्षिप्त तस्वीर प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है जिसे साधारण पाठक भी ग्रहण कर सके और इन तीनों लेखकों की सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का आकलन तुलनात्मक ढंग से करने का प्रयत्न किया गया है। तीनों लेखकों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जिस संघर्ष की शुरुआत की थी वह सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन की थी। इन लेखकों के यथार्थवाद और समाजवादी यथार्थवाद का ज़िक्र होना भी आवश्यक था, क्योंकि तीनों पूँजीवादी एवं विदेशी शोषण के शिकार थे।
About Author
फणीश सिंह -
जन्म: 15 अगस्त, 1941 को ग्राम नरेन्द्रपुर ज़िला सिवान (बिहार) में। 15 वर्ष की आयु में प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन से 'विशारद' की परीक्षा उत्तीर्ण की। एम.ए. तथा बी.एल. करने के पश्चात अगस्त, 1967 में पटना उच्च न्यायालय में वकालत आरम्भ की। छात्र जीवन से ही हिन्दी साहित्य से अनुराग था। इनके लेख और यात्रा संस्मरण विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। 1983 में मास्को और 1986 में कोपेनहेगन विश्व शान्ति सम्मेलन में शामिल हुए। भारत सोवियत मैत्री संघ के प्रतिनिधि के रूप तत्कालीन सोवियत संघ की पाँच बार यात्रा की। 2006 में ऐप्सो के सात सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल के साथ चीन की यात्रा की। वे अब तक छः महाद्वीपों के 75 देशों की यात्रा कर चुके हैं। हाल में इन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया पर अपने भ्रमण के पश्चात एक रोचक पुस्तक की रचना की है। गोर्की और प्रेमचन्द के कृतित्व एवं जीवन दृष्टिकोणों की सादृश्यता से दोनों पर शोध कार्य की प्रेरणा ली और इस विषय में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। हिन्दी साहित्य एवं अन्य सामाजिक विषयों पर इनकी 20 रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बद्ध परिषद की सलाहकार समिति के सदस्य ऐप्सो के बिहार राज्य परिषद के महासचिव राज्य के अनेक सांस्कृतिक संस्थाओं के पदाधिकारी क़ौमी एकता सन्देश के सम्पादक।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Premchand, Gorki Evam Loo Shun Ka Katha Sahitya” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.