Pramukh Jain Granthon Ka Parichay

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
वीरसागर जैन
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
वीरसागर जैन
Language:
Hindi
Format:
Hardback

280

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SKU 9789326355902 Category
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280

प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय –
परिमाण, विविधता, गुणवत्ता आदि अनेक दृष्टियों से भारतीय वाङ्मय में जैन वाङ्मय का विशेष स्थान है। प्रस्तुत कृति में इसी जैन वाङ्मय के 25 प्रमुख ग्रन्थ रत्नों का परिचय एवं सार प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक की भाषा-शैली अत्यन्त सरल-सुबोध रखी गयी है, ताकि प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश आदि प्राचीन भाषाओं में निबद्ध जैन ग्रन्थों से सर्व साधारण जन भी आसानी से परिचित हो सकें।
जैन ग्रन्थों में ज्ञान-विज्ञान का अद्भुत भण्डार भरा हुआ है, जिसे अब तक बड़े-बड़े विद्वान् ही देख पाते थे। प्रस्तुत कृति उस भण्डार के सार्वजनिक उद्घाटन का एक लघु प्रयास है।
जैन वाङ्मय को शास्त्रीय पद्धति से चार अनुयोगों में विभाजित किया गया है- प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग। इस पुस्तक में इन चारों ही अनुयोगों के प्रतिनिधि ग्रन्थों के संग्रह का भी प्रयास किया गया है, ताकि परम्परागत दृष्टि से भी सम्पूर्ण जैन वाङ्मय का समावेश हो सके। एक पठनीय एवं संग्रहणीय कृति।

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प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय –
परिमाण, विविधता, गुणवत्ता आदि अनेक दृष्टियों से भारतीय वाङ्मय में जैन वाङ्मय का विशेष स्थान है। प्रस्तुत कृति में इसी जैन वाङ्मय के 25 प्रमुख ग्रन्थ रत्नों का परिचय एवं सार प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक की भाषा-शैली अत्यन्त सरल-सुबोध रखी गयी है, ताकि प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश आदि प्राचीन भाषाओं में निबद्ध जैन ग्रन्थों से सर्व साधारण जन भी आसानी से परिचित हो सकें।
जैन ग्रन्थों में ज्ञान-विज्ञान का अद्भुत भण्डार भरा हुआ है, जिसे अब तक बड़े-बड़े विद्वान् ही देख पाते थे। प्रस्तुत कृति उस भण्डार के सार्वजनिक उद्घाटन का एक लघु प्रयास है।
जैन वाङ्मय को शास्त्रीय पद्धति से चार अनुयोगों में विभाजित किया गया है- प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग। इस पुस्तक में इन चारों ही अनुयोगों के प्रतिनिधि ग्रन्थों के संग्रह का भी प्रयास किया गया है, ताकि परम्परागत दृष्टि से भी सम्पूर्ण जैन वाङ्मय का समावेश हो सके। एक पठनीय एवं संग्रहणीय कृति।

About Author

प्रो. वीरसागर जैन - जन्म : राजस्थान के ग्राम गुढ़ाचन्द्रजी (करौली) में। शिक्षा : जैनदर्शनाचार्य, प्राकृताचार्य, एम.ए. (हिन्दी), पीएच.डी.। कृतित्व : 'दौलत विलास', 'श्रीपालचरित', 'भारतीय दर्शन में आत्मा एवं परमात्मा', 'तत्त्वार्थसूत्र प्रदीपिका', 'न्याय-मन्दिर' आदि लगभग दो दर्जन पुस्तकें। इनके अतिरिक्त लगभग 60 शोधपत्र।

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