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Shrivishnusahastranaam (Part-1)
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Shrivishnusahastranaam (Part-2)
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
ऊषा मुछाल, रुचिरा मणियार
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
ऊषा मुछाल, रुचिरा मणियार
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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ISBN:
SKU
9789387919204
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
348
श्रीविष्णुसहस्त्रनाम खण्ड – 2 –
इस बात का उल्लेख महाभारत में मिलता है कि श्रीविष्णुसहस्रनाम, भगवान के अनन्त नामों में से अत्यन्त मधुर एक हज़ार नामों का एक परम पवित्र संकलन है। भगवान के सभी नामों में से प्रत्येक नाम की महिमा, लीला, कथा और फल अनन्त हैं।
भक्तिभाव और अध्यात्म से परिपूर्ण इस ग्रन्थ को श्रीमती उषा मुछाल जी ने अपने परम पूज्य गुरु श्री जगदीशचन्द्रजी जोशी के सानिध्य में दस वर्ष भगवतगीता एवम् तत्त्वज्ञान का अध्ययन करने के पश्चात लिखा है। इस ग्रन्थ में सरलतम भाषा का प्रयोग करते हुए श्रीविष्णुसहस्र नाम के प्रत्येक नाम की विस्तार से व्याख्या की गयी है। प्रस्तुत ग्रन्थ में रुचिरा मणियार द्वारा प्रत्येक नाम की व्याख्या हेतु चित्रकारी की गयी है जिसके कारण पुस्तक सजीव हो उठी। प्रथम खण्ड में श्लोक 14 से श्लोक 48 तक की आध्यात्मिक यात्रा के साथ पाठकों को नाम 1 से नाम 326 तक की जानकारी प्राप्त होगी। खण्ड – 2 में श्लोक 49 से श्लोक 84 तक की यात्रा के साथ पाठकों को श्रीविष्णुसहस्रनाम के नाम 327 से 670 तक की जानकारी प्राप्त होगी।
यह पुस्तक आदर्श रूप में अद्वितीय है और हस्तलिखित शैली में प्रकाशित की गयी है जो पाठकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है।
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Description
श्रीविष्णुसहस्त्रनाम खण्ड – 2 –
इस बात का उल्लेख महाभारत में मिलता है कि श्रीविष्णुसहस्रनाम, भगवान के अनन्त नामों में से अत्यन्त मधुर एक हज़ार नामों का एक परम पवित्र संकलन है। भगवान के सभी नामों में से प्रत्येक नाम की महिमा, लीला, कथा और फल अनन्त हैं।
भक्तिभाव और अध्यात्म से परिपूर्ण इस ग्रन्थ को श्रीमती उषा मुछाल जी ने अपने परम पूज्य गुरु श्री जगदीशचन्द्रजी जोशी के सानिध्य में दस वर्ष भगवतगीता एवम् तत्त्वज्ञान का अध्ययन करने के पश्चात लिखा है। इस ग्रन्थ में सरलतम भाषा का प्रयोग करते हुए श्रीविष्णुसहस्र नाम के प्रत्येक नाम की विस्तार से व्याख्या की गयी है। प्रस्तुत ग्रन्थ में रुचिरा मणियार द्वारा प्रत्येक नाम की व्याख्या हेतु चित्रकारी की गयी है जिसके कारण पुस्तक सजीव हो उठी। प्रथम खण्ड में श्लोक 14 से श्लोक 48 तक की आध्यात्मिक यात्रा के साथ पाठकों को नाम 1 से नाम 326 तक की जानकारी प्राप्त होगी। खण्ड – 2 में श्लोक 49 से श्लोक 84 तक की यात्रा के साथ पाठकों को श्रीविष्णुसहस्रनाम के नाम 327 से 670 तक की जानकारी प्राप्त होगी।
यह पुस्तक आदर्श रूप में अद्वितीय है और हस्तलिखित शैली में प्रकाशित की गयी है जो पाठकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है।
About Author
उषा मुछाल -
इस ग्रन्थ की लेखिका श्रीमती उषा मुछाल का जन्म 10 जून, 1949 को मुम्बई में हुआ था। आपके पूज्य पिताश्री स्व. श्री घनश्यामचन्द्रजी तापड़िया जसवन्तगढ़ के संस्कारित और धर्म परायण तापड़िया परिवार के वंशज थे। आपने अपनी शिक्षा मुम्बई में प्राप्त की। आपका विवाह इन्दौर के अत्यन्त प्रतिष्ठित व्यवसायी धर्मपरायण और समाजसेवी मुछाल परिवार में स्व. श्री हरिकिशनजी मुछाल के सुपुत्र श्री लक्ष्मीकुमार जी मुछाल के साथ हुआ। पैतृक परिवार से बाल्यकाल से अर्जित धार्मिक संस्कार मुछाल परिवार में आकर और भी अधिक सशक्त हो गये। आपको एक पुत्र रत्न एवं एक कन्या रत्न की प्राप्ति हुई। आपने अपने गुरु श्री जगदीशचन्द्रजी जोशी के सान्निध्य में 10 वर्ष तक भगवतगीता एवं तत्त्वज्ञान का अध्ययन किया। आप मानती हैं कि इस ग्रन्थ का लेखन प्रभु की असीम कृपा, गुरुजी के मार्गदर्शन और पूर्वजों के आशीर्वाद से ही सम्भव हो पाया है।
इस ग्रन्थ में आपने विष्णुसहस्त्र नाम के प्रत्येक नाम की व्याख्या सरलतम शब्द में करने का प्रयास किया है। आपकी पुत्री सौ. रूचिरा मणियार ने अपना अमूल्य समय देकर प्रत्येक नाम की व्याख्या को अपनी अनुपम चित्रकारी से सजीव किया तथा सुपुत्र चिरंजीव आदित्य एवं सौ. माधवी ने इसे पुस्तक रूप में संकलित किया। इस पुस्तक को प्रकाशित करवाने में कोलकाता निवासी श्री ओमप्रकाशजी मल्ल ने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक कार्य किया है।
लेखिका - रूचिरा मणियार -
इन्दौर के प्रतिष्ठित व्यवसायी एवं समाजसेवी मुछाल परिवार में रूचिराजी का जन्म हुआ। धर्ममय वातावरण में जन्म लेने के कारण उनके मन में धार्मिक संस्कार बाल्यकाल से ही विद्यमान रहे। वर्तमान में वे स्वतन्त्र चित्रकार हैं और उन्होंने इस पुस्तक की लेखिका अपनी माता के साथ इस ग्रन्थ में रेखांकन किया है।
रूचिराजी की शिक्षा वाणिज्य स्नातक तथा शास्त्रीय संगीत की है। आपका विवाह पूना के प्रतिष्ठित श्री विठ्ठलदासजी मणियार के पुत्र श्री विनयजी मणियार से हुआ है। आपका एक सुपुत्र भी है। रूचिराजी मानती है कि उनकी माता जी ही उनकी प्रेरणा है और जब उषाजी इस ग्रन्थ का लेखन कर रही थीं तब शुरुआत में उन्होंने केवल आनन्द के लिए कुछ रेखांकन किये थे, जो बाद में प्रभुकृपा से सम्पूर्ण पुस्तक में परिवर्तित हो गये। उनके संस्कारों में निहित अध्यात्म उनकी माता के लेखन के कारण रेखांकन के रूप में काग़ज़ पर उतर आया। वे इस सम्पूर्ण कार्य का श्रेय प्रभु की इच्छा और अपनी माता के आशीर्वाद को देती हैं।
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