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Patta Mahadevi Shantala (Volume-1)
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Patta Mahadevi Shantala (Volume-4)
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Patta Mahadevi Shantala (Volume-3)
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
सी.के. नागराज राव पण्डित पी. वेंकटाचल शर्मा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
सी.के. नागराज राव पण्डित पी. वेंकटाचल शर्मा
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹420 ₹294
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ISBN:
SKU
8126305584
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
488
पट्टमहादेवी शान्तला –
भारतीय ज्ञानपीठ के ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ से सम्मानित उपन्यास की नायिका ‘शान्तला’ भारतीय इतिहास की एक ऐसी अनुपम और अद्भुत पात्र है जिसकी कीर्ति कर्नाटक के शिलालेखों में ‘लावण्य-सिन्धु’, ‘संगीत विद्या-सरस्वती’, ‘मृदु-मधुर वचन प्रसन्ना’ और ‘गीत-वाद्य-नृत्य सूत्रधारा’ आदि अनेक विशेषणों में उत्कीर्ण है। होयसल राजवंश के महाराज विष्णुवर्धन की पट्टरानी शान्तला को केन्द्र में रखकर नागराज राव ने एक ऐसे विशाल उपन्यास की रचना की है जिसमें शताधिक ऐतिहासिक पात्र राजवंश की तीन पीढ़ियों की कथा को देश और समाज के समूचे जीवन-परिवेश की पृष्ठभूमि में प्रतिबिम्बित करते हैं।
सर्जनात्मक प्रतिभा का इतना सघन वैभव लेकर नागराज राव ने अपने पच्चीस वर्ष के ऐतिहासिक अनुसन्धान और आठ वर्ष की लेखन-साधना को प्रतिफलित किया है—’शान्तला’ के 2000 पृष्ठों में। प्रत्येक पृष्ठ रोचक, प्रत्येक घुमाव मन को बाँधनेवाला। बहुत कम शिल्पी ऐसे होते हैं जो कथा के इतने बड़े फलक पर मानव-अनुभूति के खरे और खोटे विविध पक्षों को इतने सच्चे और सार्थक रंगों से चित्रित करें कि कृतित्व अमरता प्राप्त कर लें।
शान्तला का चरित्र भारतीय संस्कृति की प्राणधारा के स्रोत की गंगोत्री है। पट्टरानी शान्तला के षड्यन्त्रों के चक्रव्यूह को भेदकर जिस संयम, शालीनता, उदारता और धार्मिक समन्वय का उदाहरण प्रस्तुत किया है उसकी हमारे आज के राष्ट्रीय जीवन के लिए विशेष सार्थकता है।
हिन्दी पाठकों को सहर्ष समर्पित है—चार भागों में नियोजित उपन्यास का नया संस्करण।
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Description
पट्टमहादेवी शान्तला –
भारतीय ज्ञानपीठ के ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ से सम्मानित उपन्यास की नायिका ‘शान्तला’ भारतीय इतिहास की एक ऐसी अनुपम और अद्भुत पात्र है जिसकी कीर्ति कर्नाटक के शिलालेखों में ‘लावण्य-सिन्धु’, ‘संगीत विद्या-सरस्वती’, ‘मृदु-मधुर वचन प्रसन्ना’ और ‘गीत-वाद्य-नृत्य सूत्रधारा’ आदि अनेक विशेषणों में उत्कीर्ण है। होयसल राजवंश के महाराज विष्णुवर्धन की पट्टरानी शान्तला को केन्द्र में रखकर नागराज राव ने एक ऐसे विशाल उपन्यास की रचना की है जिसमें शताधिक ऐतिहासिक पात्र राजवंश की तीन पीढ़ियों की कथा को देश और समाज के समूचे जीवन-परिवेश की पृष्ठभूमि में प्रतिबिम्बित करते हैं।
सर्जनात्मक प्रतिभा का इतना सघन वैभव लेकर नागराज राव ने अपने पच्चीस वर्ष के ऐतिहासिक अनुसन्धान और आठ वर्ष की लेखन-साधना को प्रतिफलित किया है—’शान्तला’ के 2000 पृष्ठों में। प्रत्येक पृष्ठ रोचक, प्रत्येक घुमाव मन को बाँधनेवाला। बहुत कम शिल्पी ऐसे होते हैं जो कथा के इतने बड़े फलक पर मानव-अनुभूति के खरे और खोटे विविध पक्षों को इतने सच्चे और सार्थक रंगों से चित्रित करें कि कृतित्व अमरता प्राप्त कर लें।
शान्तला का चरित्र भारतीय संस्कृति की प्राणधारा के स्रोत की गंगोत्री है। पट्टरानी शान्तला के षड्यन्त्रों के चक्रव्यूह को भेदकर जिस संयम, शालीनता, उदारता और धार्मिक समन्वय का उदाहरण प्रस्तुत किया है उसकी हमारे आज के राष्ट्रीय जीवन के लिए विशेष सार्थकता है।
हिन्दी पाठकों को सहर्ष समर्पित है—चार भागों में नियोजित उपन्यास का नया संस्करण।
About Author
सी.के. नागराज राव -
कर्नाटक के चित्रदुर्ग ज़िले के चल्लकेरे ग्राम में 12 जून, 1915 में जनमे श्री नागराज राव को वृत्ति से इंजीनियर होना था किन्तु कन्नड़ साहित्य एवं इतिहास के अध्ययन-मनन ने उनके जीवन की जैसे दिशा ही बदल दी। आज उनकी ख्याति कन्नड़ के श्रेष्ठ साहित्यकारों में होती है। एक मँजे हुए मंच-अभिनेता और निर्देशक के साथ-साथ वे कन्नड़ चलचित्र जगत के सफल पटकथाकार भी रहे हैं। आदर्श फ़िल्म इन्स्टीट्यूट, बैंगलोर के उप प्रधानाचार्य (1973-77), कन्नड़ साहित्य परिषद् के पूर्व कोषाध्यक्ष एवं मानद सचिव, मिथिक सोसायटी की कार्यसमिति के सदस्य और असहयोग आन्दोलन में गाँधीजी के साथ सक्रिय भूमिका आदि जीवन के बहुमुखी आयामों के कारण कर्नाटक की धरती पर पर्याप्त लोकप्रिय रहे हैं। कर्नाटक राज्य साहित्य अकादमी ने उन्हें दो बार सम्मानित किया और फिर भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 'मूर्तिदेवी पुरस्कार' से सम्मानित हुए।
लेखन कार्य: 'पट्टमहादेवी शान्तलादेवी', 'नंबिद जीव' (उपन्यास); 'काडु मल्लिगे', 'संगम', 'दृष्टिमन्थन' (कहानी-संग्रह); 'हरिश्चन्द्र', 'शूद्रमुनि', 'एकलव्य', 'अमितमति', 'कुरंगनयनी', 'अक्क महादेवी', 'कांडेक्ट मैडल', 'संकोले बसव', 'सम्पन्न समाज', 'रमा', 'छाया', 'हेमवती' (मौलिक एवं अनूदित नाटक); 'लक्ष्मीश का काल और स्थान' (समीक्षा)। बांग्ला के शरच्चन्द्र चट्टोपाध्याय, अंग्रेज़ी के ऐलन पैटन और रूस के दॉस्तोवॉस्की आदि ख्याति प्राप्त साहित्यकारों की अनेक कृतियों का कन्नड़ में अनुवाद।
10 अप्रैल, 1998 को बैंगलौर में देहावसान।
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