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Bhav-Sangrah
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
आचार्या देवसेन
| Language:
Hindi & Sanskrit
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
आचार्या देवसेन
Language:
Hindi & Sanskrit
Format:
Hardback
₹800 ₹560
Save: 30%
In stock
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1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789387919228
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
448
भाव संग्रह
आचार्यों ने औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक औदयिक और परिणामिक ये जीवों के पाँच भाव बतलाये हैं। इन्हीं पाँच भावों में कुछ भाव शुभ हैं, कुछ अशुभ है और कुछ शुद्ध हैं। तथा इन्हीं भावों के अनुसार गुणस्थानों की रचना समझ लेनी चाहिये। कर्मों के उदय होने से औदयिक भाव होते हैं। कर्मों के क्षय होने से क्षायिक भाव होते हैं, कर्मों के उपशम होने से औपशमिक भाव होते हैं, कर्मों के क्षयोपशम होने से क्षायोपशमिक भाव होते हैं तथा जीवों के स्वाभाविक परिणाम पारिणामिक भाव कहलाते हैं।
इस ग्रन्थ में इन्हीं भावों का वर्णन है और किस गुणस्थान में कैसे-कैसे भाव होते हैं यही सब बतलाया है कि मिथ्यात्व गुणस्थान में होने वाले अशुभ भावों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए । चतुर्थ आदि गुणस्थानों में होने वाले शुभ परिणामों को ग्रहण करना चाहिए तथा उन शुभ परिणामों की वृद्धि करते-करते शुद्ध परिणामों के प्राप्त होने का ध्येय रखना चाहिये और अन्त में शुभ अशुभ दोनों प्रकार के परिणामों का त्याग कर आत्मा के स्वाभाविक शुद्ध भावों को धारण करना चाहिये। यही इस ग्रन्थ के पढ़ने का मनन करने का साक्षात् फल है और यही मोक्ष का कारण है। चतुर्थ आदि गुणस्थानों में होने वाले भाव परम्परा से मोक्ष के कारण हैं और अन्तिम गुणस्थानों के भाव साक्षात् मोक्ष के कारण हैं।
इस प्रकार इस ग्रन्थ का पठन-पाठन मोक्ष का कारण है और वह पठन-पाठन समस्त भव्य जीवों को सफलता पूर्वक प्राप्त हो इसी उद्देश्य से इसकी संक्षिप्त हिदी टीका लिखी गयी है और इसी उद्देश्य को लेकर यह ग्रन्थ प्रकाशित किया गया है। आशा है अनेक भव्य जीव इसका पठन-पाठन कर अपने आत्म का कल्याण करेंगे।
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Description
भाव संग्रह
आचार्यों ने औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक औदयिक और परिणामिक ये जीवों के पाँच भाव बतलाये हैं। इन्हीं पाँच भावों में कुछ भाव शुभ हैं, कुछ अशुभ है और कुछ शुद्ध हैं। तथा इन्हीं भावों के अनुसार गुणस्थानों की रचना समझ लेनी चाहिये। कर्मों के उदय होने से औदयिक भाव होते हैं। कर्मों के क्षय होने से क्षायिक भाव होते हैं, कर्मों के उपशम होने से औपशमिक भाव होते हैं, कर्मों के क्षयोपशम होने से क्षायोपशमिक भाव होते हैं तथा जीवों के स्वाभाविक परिणाम पारिणामिक भाव कहलाते हैं।
इस ग्रन्थ में इन्हीं भावों का वर्णन है और किस गुणस्थान में कैसे-कैसे भाव होते हैं यही सब बतलाया है कि मिथ्यात्व गुणस्थान में होने वाले अशुभ भावों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए । चतुर्थ आदि गुणस्थानों में होने वाले शुभ परिणामों को ग्रहण करना चाहिए तथा उन शुभ परिणामों की वृद्धि करते-करते शुद्ध परिणामों के प्राप्त होने का ध्येय रखना चाहिये और अन्त में शुभ अशुभ दोनों प्रकार के परिणामों का त्याग कर आत्मा के स्वाभाविक शुद्ध भावों को धारण करना चाहिये। यही इस ग्रन्थ के पढ़ने का मनन करने का साक्षात् फल है और यही मोक्ष का कारण है। चतुर्थ आदि गुणस्थानों में होने वाले भाव परम्परा से मोक्ष के कारण हैं और अन्तिम गुणस्थानों के भाव साक्षात् मोक्ष के कारण हैं।
इस प्रकार इस ग्रन्थ का पठन-पाठन मोक्ष का कारण है और वह पठन-पाठन समस्त भव्य जीवों को सफलता पूर्वक प्राप्त हो इसी उद्देश्य से इसकी संक्षिप्त हिदी टीका लिखी गयी है और इसी उद्देश्य को लेकर यह ग्रन्थ प्रकाशित किया गया है। आशा है अनेक भव्य जीव इसका पठन-पाठन कर अपने आत्म का कल्याण करेंगे।
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