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Sultan Raziya
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
मेवाराम
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
मेवाराम
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹700 ₹490
Save: 30%
In stock
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10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9788126330423
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
670
सुल्तान रज़िया –
रज़िया—सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी—एक ऐसी महिला शासिका थी, जिसके बारे में उसके पिता ने स्वयं कहा था—राजकार्य का भारी बोझ मेरे पुत्र नहीं सँभाल सकेंगे। इस गुरुतर कार्य को करने की योग्यता उनमें नहीं है। वे आराम-तलब और विषयी हैं। रज़िया में वीरपुरुषों के समस्त गुण विद्यमान हैं। मेरी समझ से वह राजकार्य अच्छी तरह सँभालेगी। रज़िया अमीरों और मालिकों के सहयोग से नहीं, जनता के सहयोग से गद्दी पर बैठी। उसने राजकार्य सुचारुरूप से चलाने के लिए पर्दा प्रथा त्यागकर मर्दाना वेश धारण किया। वह वीर, कर्मठ, साहसी, धैर्यवान, ईमानदार, न्यायप्रिय, उदार और शिक्षा की पोषक रही। तत्कालीन इतिहास लेखक मिनहाज सिराज़ का मत है—रज़िया महान सम्राज्ञी, राजनीति-विशारद, न्यायप्रिय प्रजावत्सल और कुशल सेनानेत्री थी।
रज़िया पहली तुर्क महिला-शासिका थी जिसने अमीरों और मालिकों को अपनी आज्ञा मानने पर बाध्य किया इसलिए कि तुर्क अमीर और मालिक उसे अपने हाथों की कठपुतली बनाकर राष्ट्र की शक्ति पर अपना एकाधिकार कायम करना चाहते थे। अफ़सोस यह कि उस समय इस्लाम और उसमें विधान की परम्परा के अनुसार एक स्त्री का सिंहासन पर बैठना वर्जित था। अधिकतर विद्वानों का मत है, अगर रज़िया औरत न होती तो निश्चित ही उसका नाम महान मुग़ल शासकों में गिना जाता।
उपन्यासकार मेवाराम ने अपेक्षित शोध और अध्ययन के उपरान्त इस बृहद् उपन्यास की रचना की है। इस उपन्यास की सुसम्बद्धता और रोचक शैली विशेष महत्त्व रखती है। उपन्यास की भाषा और संवाद कथा और काल के अनुरूप होने के कारण पाठक तेरहवीं शताब्दी में खो जाता है।
मेवाराम का पहला ऐतिहासिक उपन्यास ‘दाराशुकोह’ भी पाठकों की भरपूर प्रशंसा पा चुका है। इसी क्रम में उनकी एक और महत्त्वपूर्ण कृति ‘सुल्तान रज़िया’ पाठकों को समर्पित करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है।
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Description
सुल्तान रज़िया –
रज़िया—सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी—एक ऐसी महिला शासिका थी, जिसके बारे में उसके पिता ने स्वयं कहा था—राजकार्य का भारी बोझ मेरे पुत्र नहीं सँभाल सकेंगे। इस गुरुतर कार्य को करने की योग्यता उनमें नहीं है। वे आराम-तलब और विषयी हैं। रज़िया में वीरपुरुषों के समस्त गुण विद्यमान हैं। मेरी समझ से वह राजकार्य अच्छी तरह सँभालेगी। रज़िया अमीरों और मालिकों के सहयोग से नहीं, जनता के सहयोग से गद्दी पर बैठी। उसने राजकार्य सुचारुरूप से चलाने के लिए पर्दा प्रथा त्यागकर मर्दाना वेश धारण किया। वह वीर, कर्मठ, साहसी, धैर्यवान, ईमानदार, न्यायप्रिय, उदार और शिक्षा की पोषक रही। तत्कालीन इतिहास लेखक मिनहाज सिराज़ का मत है—रज़िया महान सम्राज्ञी, राजनीति-विशारद, न्यायप्रिय प्रजावत्सल और कुशल सेनानेत्री थी।
रज़िया पहली तुर्क महिला-शासिका थी जिसने अमीरों और मालिकों को अपनी आज्ञा मानने पर बाध्य किया इसलिए कि तुर्क अमीर और मालिक उसे अपने हाथों की कठपुतली बनाकर राष्ट्र की शक्ति पर अपना एकाधिकार कायम करना चाहते थे। अफ़सोस यह कि उस समय इस्लाम और उसमें विधान की परम्परा के अनुसार एक स्त्री का सिंहासन पर बैठना वर्जित था। अधिकतर विद्वानों का मत है, अगर रज़िया औरत न होती तो निश्चित ही उसका नाम महान मुग़ल शासकों में गिना जाता।
उपन्यासकार मेवाराम ने अपेक्षित शोध और अध्ययन के उपरान्त इस बृहद् उपन्यास की रचना की है। इस उपन्यास की सुसम्बद्धता और रोचक शैली विशेष महत्त्व रखती है। उपन्यास की भाषा और संवाद कथा और काल के अनुरूप होने के कारण पाठक तेरहवीं शताब्दी में खो जाता है।
मेवाराम का पहला ऐतिहासिक उपन्यास ‘दाराशुकोह’ भी पाठकों की भरपूर प्रशंसा पा चुका है। इसी क्रम में उनकी एक और महत्त्वपूर्ण कृति ‘सुल्तान रज़िया’ पाठकों को समर्पित करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है।
About Author
मेवाराम -
जन्म: 15 जुलाई, 1944 (फ़र्रुखाबाद, उ.प्र.)।
शिक्षा: एम.ए. (समाजशास्त्र)।
अपर निबन्धक, सहकारी समितियाँ, उत्तर प्रदेश के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद स्वतन्त्र लेखन।
प्रकाशन: ऐतिहासिक उपन्यास 'शाह-ए-आलम', 'दाराशुकोह' और 'सुल्तान रज़िया'। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से साहित्य 'महोपाध्याय' की मानद उपाधि से सम्मानित।
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