SaleHardback
Shabd
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
बसंत त्रिपाठी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
बसंत त्रिपाठी
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹200 ₹199
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In stock
ISBN:
SKU
9789326354493
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
136
शब्द –
बसंत त्रिपाठी की कहानियाँ पिछले बीस-पचीस बरसों के अराजक और अमानवीय शहरीकरण के दौर में अमानवीयकरण की जटिल, त्रासद और निराशाजनक प्रक्रियाओं को रेखांकित करती हुई बढ़ती चली जाती हैं।
इन कहानियों में हमारे समय के इस मार्मिक सच की बार-बार प्रतीति मिलती रहती है कि हमारे वक़्त में सिर्फ़ आदमी बने रहना कितना मुश्किल हो गया है। इस संग्रह की सभी कहानियाँ अपने समय, समाज और संस्कृति के प्रति गहरी प्रतिबद्धता सम्बद्धता जताते हुए, अगर हमें इतनी सच्ची और समकालीन जान पड़ती हैं तो इसका एक कारण मुझे बसंत त्रिपाठी की अपनी लेखकीय चेतना, इस लेखकीय चेतना की प्रश्नाकुलता और जागरूकता में भी नज़र आता है।
इन कहानियों की रेंज बड़ी है तो इनका डिक्शन भी व्यापक है जो मुझे नागरी जीवन को समझ रहे नागरी लेखन के अनिवार्य तत्त्व जान पड़ते हैं। यहाँ विभिन्न परिवेशों से अलग-अलग पृष्ठभूमि लिए हुए, तरह-तरह के पात्र आते हैं। किसी लेखक के पहले ही कथा-संग्रह में दुहरावों के लिए ऐसा प्रतिरोध बहुत कम नज़र आता है। मुझे लगता है कि ख़ुद को न दुहराने का उनका लेखकीय स्वभाव भी कहीं उनकी लेखकीय चेतना और आलोचनात्मक विवेक से ही बाहर आता है।
हम जानते हैं कि बरसों से बसंत त्रिपाठी कविता और आलोचना के क्षेत्र में भी अपनी सर्जनात्मक सक्रियता बनाये हुए हैं लेकिन ये कहानियाँ अपनी चिन्ताओं और चिन्तन से उनको अपनी दोनों विधाओं से अलग करती हैं। इन कहानियों को पढ़ते हुए हम पाठक यह महसूस कर सकते हैं कि जिन मानवीय विद्रूपों और विडम्बनाओं को बसंत हमारे सामने लाना चाहते हैं वे कहानी की अपनी विधा और विस्तार में ही सम्भव हो सकते थे।
इस तरह ये कहानियाँ, कहानी की अपनी विधा के लिए चिन्तित और प्रतिबद्ध कहानियाँ भी हैं। कहानी में आते जीवन पर सोचती हुई और कहानी के अपने जीवन पर सोचती हुई मार्मिक, दिलचस्प और महत्त्वपूर्ण कहानियाँ।—जयशंकर
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Description
शब्द –
बसंत त्रिपाठी की कहानियाँ पिछले बीस-पचीस बरसों के अराजक और अमानवीय शहरीकरण के दौर में अमानवीयकरण की जटिल, त्रासद और निराशाजनक प्रक्रियाओं को रेखांकित करती हुई बढ़ती चली जाती हैं।
इन कहानियों में हमारे समय के इस मार्मिक सच की बार-बार प्रतीति मिलती रहती है कि हमारे वक़्त में सिर्फ़ आदमी बने रहना कितना मुश्किल हो गया है। इस संग्रह की सभी कहानियाँ अपने समय, समाज और संस्कृति के प्रति गहरी प्रतिबद्धता सम्बद्धता जताते हुए, अगर हमें इतनी सच्ची और समकालीन जान पड़ती हैं तो इसका एक कारण मुझे बसंत त्रिपाठी की अपनी लेखकीय चेतना, इस लेखकीय चेतना की प्रश्नाकुलता और जागरूकता में भी नज़र आता है।
इन कहानियों की रेंज बड़ी है तो इनका डिक्शन भी व्यापक है जो मुझे नागरी जीवन को समझ रहे नागरी लेखन के अनिवार्य तत्त्व जान पड़ते हैं। यहाँ विभिन्न परिवेशों से अलग-अलग पृष्ठभूमि लिए हुए, तरह-तरह के पात्र आते हैं। किसी लेखक के पहले ही कथा-संग्रह में दुहरावों के लिए ऐसा प्रतिरोध बहुत कम नज़र आता है। मुझे लगता है कि ख़ुद को न दुहराने का उनका लेखकीय स्वभाव भी कहीं उनकी लेखकीय चेतना और आलोचनात्मक विवेक से ही बाहर आता है।
हम जानते हैं कि बरसों से बसंत त्रिपाठी कविता और आलोचना के क्षेत्र में भी अपनी सर्जनात्मक सक्रियता बनाये हुए हैं लेकिन ये कहानियाँ अपनी चिन्ताओं और चिन्तन से उनको अपनी दोनों विधाओं से अलग करती हैं। इन कहानियों को पढ़ते हुए हम पाठक यह महसूस कर सकते हैं कि जिन मानवीय विद्रूपों और विडम्बनाओं को बसंत हमारे सामने लाना चाहते हैं वे कहानी की अपनी विधा और विस्तार में ही सम्भव हो सकते थे।
इस तरह ये कहानियाँ, कहानी की अपनी विधा के लिए चिन्तित और प्रतिबद्ध कहानियाँ भी हैं। कहानी में आते जीवन पर सोचती हुई और कहानी के अपने जीवन पर सोचती हुई मार्मिक, दिलचस्प और महत्त्वपूर्ण कहानियाँ।—जयशंकर
About Author
बसंत त्रिपाठी -
जन्म: 25 मार्च, 1972 भिलाई (छ.ग.) में।
शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), पीएच.डी.।
प्रकाशन: 'मौजूदा हालात को देखते हुए', 'सहसा कुछ नहीं होता', 'उत्सव की समाप्ति के बाद' (कविता संग्रह), 'प्रसंगवश' (आलोचना), 'शब्द' (कहानी-संग्रह), 'राष्ट्रभाषा का सवाल', 'क्रान्तिकारियों का जीवन दर्शन' श्रृंखला के अन्तर्गत 3 पुस्तिकाएँ। 'डॉ. रामविलास शर्मा जनपक्षधरता की वैचारिकी' (सम्पादन)।
समकालीन कविता में उल्लेखनीय योगदान के लिए 'सूत्र सम्मान' 2007। 'लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई सम्मान' 2011।
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