Sant Vinod

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
नारायण प्रसाद जैन
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
नारायण प्रसाद जैन
Language:
Hindi
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Paperback

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सन्त विनोद –
श्री नारायणप्रसाद जैन द्वारा लिखित प्रस्तुत कृति ‘सन्त-विनोद’ दो सौ से अधिक प्रेरक प्रसंगों का संग्रह है। ये प्रसंग विनोद तो पैदा करते ही हैं, चित्त को शुद्ध और प्रमुदित भी करते हैं। इन प्रेरक प्रसंगों से प्रकाश के ऐसे ज्योति-कण फैलते हैं जो कहनेवाले से औरों तक, और इस तरह जगत के पूरे मानस को अपने में समेट लेते हैं। इनमें व्यंग्य वक्रोक्ति जैसी दहकता नहीं होती, बल्कि शान्तिप्रदायिनी शीतलता होती है। इन विनोद वचनों में जन-मन के लिए ऐसा संगीत प्रवाहित होता है जिसमें जीवन का सत्य और कल्याण भी निहित होता है।
ऐसा सन्त कोई भी व्यक्ति हो सकता है जिसके मन में दूसरों के लिए प्रेम और करुणा होती है, जो अनासक्त भाव से जीवन और समाज के दायित्वों का भलीभाँति निर्वाह करता आ रहा हो। ये सन्त सिर्फ़ वन-पर्वतों की गुफाओं-कन्दराओं के रहनेवाले साधु ही नहीं होते, वे कोई भी कार्य-व्यापार करने वाले उपर्युक्त गुण-सम्पन्न आम जन भी हो सकते हैं।
प्रस्तुत कृति ‘सन्त-विनोद’ में ऐसे ही दूर-दूर के सौदागर, बड़े-बड़े ख़लीफ़ा, बादशाह और कलाकार हैं, यहाँ तक कि भक्त और भिखारी भी, जिनके जीवन में ऐसा प्रसंग या संवाद घटित हुआ जिसने सम्पर्क में आये व्यक्ति के जीवन की दिशा ही बदल दी। और ख़ूबसूरत बात तो यह है की उन प्रसंगों में पंचतन्त्र की तरह हिरन, बकरे, कुत्ता, बिल्ली, साँप, मेंढक, हंस, भौर जैसे जीव-जन्तु भी सन्त-वाणी के माध्यम बने हैं।
वर्षों से अनुपलब्ध इस पुस्तक का नया संस्करण प्रकाशित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ प्रसन्नता का अनुभव करता है।

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Description

सन्त विनोद –
श्री नारायणप्रसाद जैन द्वारा लिखित प्रस्तुत कृति ‘सन्त-विनोद’ दो सौ से अधिक प्रेरक प्रसंगों का संग्रह है। ये प्रसंग विनोद तो पैदा करते ही हैं, चित्त को शुद्ध और प्रमुदित भी करते हैं। इन प्रेरक प्रसंगों से प्रकाश के ऐसे ज्योति-कण फैलते हैं जो कहनेवाले से औरों तक, और इस तरह जगत के पूरे मानस को अपने में समेट लेते हैं। इनमें व्यंग्य वक्रोक्ति जैसी दहकता नहीं होती, बल्कि शान्तिप्रदायिनी शीतलता होती है। इन विनोद वचनों में जन-मन के लिए ऐसा संगीत प्रवाहित होता है जिसमें जीवन का सत्य और कल्याण भी निहित होता है।
ऐसा सन्त कोई भी व्यक्ति हो सकता है जिसके मन में दूसरों के लिए प्रेम और करुणा होती है, जो अनासक्त भाव से जीवन और समाज के दायित्वों का भलीभाँति निर्वाह करता आ रहा हो। ये सन्त सिर्फ़ वन-पर्वतों की गुफाओं-कन्दराओं के रहनेवाले साधु ही नहीं होते, वे कोई भी कार्य-व्यापार करने वाले उपर्युक्त गुण-सम्पन्न आम जन भी हो सकते हैं।
प्रस्तुत कृति ‘सन्त-विनोद’ में ऐसे ही दूर-दूर के सौदागर, बड़े-बड़े ख़लीफ़ा, बादशाह और कलाकार हैं, यहाँ तक कि भक्त और भिखारी भी, जिनके जीवन में ऐसा प्रसंग या संवाद घटित हुआ जिसने सम्पर्क में आये व्यक्ति के जीवन की दिशा ही बदल दी। और ख़ूबसूरत बात तो यह है की उन प्रसंगों में पंचतन्त्र की तरह हिरन, बकरे, कुत्ता, बिल्ली, साँप, मेंढक, हंस, भौर जैसे जीव-जन्तु भी सन्त-वाणी के माध्यम बने हैं।
वर्षों से अनुपलब्ध इस पुस्तक का नया संस्करण प्रकाशित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ प्रसन्नता का अनुभव करता है।

About Author

नारायणप्रसाद जैन - नारायणप्रसाद जैन दार्शनिक और लेखक थे। उन्होंने इसी मार्ग द्वारा अपनी और अपने आस-पास के मनुष्यों की चेतना का परिष्कार किया। 'सन्त विनोद' द्वारा उन्होंने ऐसे प्रसंगों को लिखने का प्रयास किया है जिनके पाठन से व्यक्ति अपने जीवन में परिवर्तन महसूस करता है।

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