Rituraj Ek Pal Ka
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ऋतुराज एक पल का –
अपने समय के मूर्धन्य गीत-कवि बुद्धिनाथ मिश्र की देश-विदेश के काव्यमंचों पर एक ऐसे गीतकार के रूप में प्रतिष्ठा है, जो सामान्यतः प्रेम और श्रृंगार से भरे जीवन-रस को भागवत के पृष्ठों से उतार कर पाठकों और श्रोताओं में समान रूप से वितरित करता है। इस संग्रह का नाम ‘ऋतुराज एक पल का’ भी उसी सन्दर्भ का आभास देता है। मगर इसके गीतों का तेवर बिल्कुल भिन्न है। यहाँ बुद्धिनाथ जाल फेंकनेवाले मछेरे के रूप में नहीं, बल्कि सिर पर मुरेठा बाँधे किसान के बाने में हैं। बुद्धिनाथ जी के पास किसान का पारिवारिक मन है तथा संवेदनशील कवि-हृदय भी है। दोनों मिलकर इन्हें अन्य गीतकारों से अलग करते हैं।
नयी भाव-भूमि पर रचे गये ‘ऋतुराज एक पल का’ के गीतों में जनचेतना के साथ गीतिकाव्य के सारे गुण मौजूद हैं। इनमें युग की धड़कन तथा साधारणजन की पीड़ा है, गेयता है, कोमल भाव हैं तथा जनविरोधी व्यवस्था के प्रति मुखर स्वर है। विषय की नवीनता और शिल्प में निरन्तर बदलाव इन नवगीतों की विशेषता है। व्यंग्य का धारदार प्रयोग गीतकार को रूप, सौन्दर्य एवं श्रृंगार के परम्परागत चौखट से निकालकर खुरदुरे मैदान में ले जाता है और संवेदनशील पाठक के मन में एक टीस जगाता है, जो अनिर्वचनीय है।
ऋतुराज एक पल का –
अपने समय के मूर्धन्य गीत-कवि बुद्धिनाथ मिश्र की देश-विदेश के काव्यमंचों पर एक ऐसे गीतकार के रूप में प्रतिष्ठा है, जो सामान्यतः प्रेम और श्रृंगार से भरे जीवन-रस को भागवत के पृष्ठों से उतार कर पाठकों और श्रोताओं में समान रूप से वितरित करता है। इस संग्रह का नाम ‘ऋतुराज एक पल का’ भी उसी सन्दर्भ का आभास देता है। मगर इसके गीतों का तेवर बिल्कुल भिन्न है। यहाँ बुद्धिनाथ जाल फेंकनेवाले मछेरे के रूप में नहीं, बल्कि सिर पर मुरेठा बाँधे किसान के बाने में हैं। बुद्धिनाथ जी के पास किसान का पारिवारिक मन है तथा संवेदनशील कवि-हृदय भी है। दोनों मिलकर इन्हें अन्य गीतकारों से अलग करते हैं।
नयी भाव-भूमि पर रचे गये ‘ऋतुराज एक पल का’ के गीतों में जनचेतना के साथ गीतिकाव्य के सारे गुण मौजूद हैं। इनमें युग की धड़कन तथा साधारणजन की पीड़ा है, गेयता है, कोमल भाव हैं तथा जनविरोधी व्यवस्था के प्रति मुखर स्वर है। विषय की नवीनता और शिल्प में निरन्तर बदलाव इन नवगीतों की विशेषता है। व्यंग्य का धारदार प्रयोग गीतकार को रूप, सौन्दर्य एवं श्रृंगार के परम्परागत चौखट से निकालकर खुरदुरे मैदान में ले जाता है और संवेदनशील पाठक के मन में एक टीस जगाता है, जो अनिर्वचनीय है।
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