Bijan Bhattacharya Ke Do Natak
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बिजन भट्टाचार्य के दो नाटक –
बांग्ला नाटककार बिजन भट्टाचार्य के दो नाटकों ‘नवान्न’ और ‘ज़बानबन्दी’ का हिन्दी रूपान्तर। रूपान्तरकार हैं—नाट्य समालोचक और सम्पादक नेमिचन्द्र जैन। बांग्ला रंगपरम्परा में ही नहीं समूची भारतीय रंगपरम्परा में, विशेषतः उसकी सामाजिक और राजनीतिक चेतना की धारा में, इन नाटकों का विशेष महत्त्व है। अपनी मार्मिकता और व्यापक सरोकारों के कारण वे अब भी रंग-प्रासंगिक हैं। दोनों नाटक बरसों से पुस्तकाकार उपलब्ध नहीं थे। भारतीय ज्ञानपीठ इन्हें अब इस नये संस्करण में प्रकाशित कर रहा है। हमारे देश में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का संघर्ष कितने स्तरों पर सक्रिय और व्यापक रहा है इसे जानने में ऐसी कृतियों से मदद मिलती है। इनसे हमें यह ज्ञात होता है कि रंगसंघर्ष के आधुनिक काल में भी कितनी लम्बी और कठिन गाथा रही है, कितनी उजली और कितनी रोमांचक भी।
‘ज़बानबन्दी’ (‘अन्तिम अभिलाषा’) का अनुवाद इप्टा द्वारा अकाल पीड़ित बंगाल के लिए धन इकट्ठा करने की गरज से बम्बई में प्रदर्शन के समय किया गया था। बम्बई में इसके प्रदर्शन के बाद पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी जैसे कलाकारों ने झोली फैलाकर अकालपीड़ितों के लिए धन एकत्र किया था। ये प्रदर्शन बहुत सफल हुए और ‘भूखा है बंगाल’ नाम से नाटक, गीत, नृत्य के इस पूरे कार्यक्रम का देश के कई शहरों में प्रदर्शन हुआ।
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा इन दुर्लभ नाट्य-कृतियों का पहली बार नये संस्करण के रूप में प्रकाशन।
बिजन भट्टाचार्य के दो नाटक –
बांग्ला नाटककार बिजन भट्टाचार्य के दो नाटकों ‘नवान्न’ और ‘ज़बानबन्दी’ का हिन्दी रूपान्तर। रूपान्तरकार हैं—नाट्य समालोचक और सम्पादक नेमिचन्द्र जैन। बांग्ला रंगपरम्परा में ही नहीं समूची भारतीय रंगपरम्परा में, विशेषतः उसकी सामाजिक और राजनीतिक चेतना की धारा में, इन नाटकों का विशेष महत्त्व है। अपनी मार्मिकता और व्यापक सरोकारों के कारण वे अब भी रंग-प्रासंगिक हैं। दोनों नाटक बरसों से पुस्तकाकार उपलब्ध नहीं थे। भारतीय ज्ञानपीठ इन्हें अब इस नये संस्करण में प्रकाशित कर रहा है। हमारे देश में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का संघर्ष कितने स्तरों पर सक्रिय और व्यापक रहा है इसे जानने में ऐसी कृतियों से मदद मिलती है। इनसे हमें यह ज्ञात होता है कि रंगसंघर्ष के आधुनिक काल में भी कितनी लम्बी और कठिन गाथा रही है, कितनी उजली और कितनी रोमांचक भी।
‘ज़बानबन्दी’ (‘अन्तिम अभिलाषा’) का अनुवाद इप्टा द्वारा अकाल पीड़ित बंगाल के लिए धन इकट्ठा करने की गरज से बम्बई में प्रदर्शन के समय किया गया था। बम्बई में इसके प्रदर्शन के बाद पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी जैसे कलाकारों ने झोली फैलाकर अकालपीड़ितों के लिए धन एकत्र किया था। ये प्रदर्शन बहुत सफल हुए और ‘भूखा है बंगाल’ नाम से नाटक, गीत, नृत्य के इस पूरे कार्यक्रम का देश के कई शहरों में प्रदर्शन हुआ।
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा इन दुर्लभ नाट्य-कृतियों का पहली बार नये संस्करण के रूप में प्रकाशन।
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