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Samudra Mein Nadi

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
दिनेश कुमार शुक्ल
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
दिनेश कुमार शुक्ल
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9788126330430 Category
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167

समुद्र में नदी –
‘समुद्र में नदी’ वरिष्ठ कवि दिनेश कुमार शुक्ल का नया कविता संग्रह है, अभिधा और व्यंजना दोनों दृष्टियों से उन्होंने अपनी रचनाशीलता के लिए बीहड़ अर्थ-पथ का चुनाव किया है, जिस पर चलते हुए वे अस्तित्व की विलक्षण यात्राओं से सम्पन्न होते हैं और यति-गति-लय-विराम-विश्राम की अभिनव परिभाषाओं का साक्षात्कार करते हैं। दिनेश कुमार शुक्ल की कविताओं में वे समस्त आशंकाएँ, चिन्ताएँ, और पीड़ाएँ सम्मिलित हैं जिन्हें भस्मासुरी सभ्यता ने अपनी नियति बना लिया है। उनमें वे सारी स्मृतियाँ, संवेदनाएँ और सक्रियताएँ सुरक्षित हैं जो इस नियति को धराशायी करने के लिए आवश्यक हैं। ‘समय में सुरंग’ कविता में वे लिखते हैं —’स्मृतियाँ—जो काल व्याल के/ फण की मणि हैं जिनसे स्निग्धालोक बरसता/ जो करता/ पथ को आलोकित।’ इन कविताओं की आभा में कवि के अनेक अन्तःप्रदेश दिखते हैं, परिवेश के बहुतेरे यथार्थ प्रकट होते हैं। संग्रह की उल्लेखनीय बात यह भी है कि ‘कॉलसेंटर’, ‘समाचार’ और ‘दिल्ली’ जैसी कविताओं में कवि ने अद्यतन जीवन के चरमराते व्याकरण में निहित ‘सन्धि-विच्छेद’ को भी व्याख्यायित किया है। लोकसम्पृक्ति दिनेश कुमार शुक्ल के कवि-कर्म का केन्द्रीय तत्त्व है। स्मृति और यथार्थ के दो तटों के बीच बहती कविता की यह नदी वागर्थ के समुद्र में अलग से चमकती है। दिनेश कुमार शुक्ल की भाषा ‘संघर्ष और परम्परा की संचित चित्तवृत्ति’ से उपजी है। ‘उठता गिरता रहा दर्पण का वक्ष’ और ‘पृथ्वी-सा थका/ और ईश्वर-सा असहाय’ जैसे प्रयोगों से कविताएँ सजग हैं। ‘समुद्र में नदी’ संग्रह हिन्दी कविता के बीच एक स्वागतयोग्य आगमन है।—सुशील सिद्धार्थ

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Description

समुद्र में नदी –
‘समुद्र में नदी’ वरिष्ठ कवि दिनेश कुमार शुक्ल का नया कविता संग्रह है, अभिधा और व्यंजना दोनों दृष्टियों से उन्होंने अपनी रचनाशीलता के लिए बीहड़ अर्थ-पथ का चुनाव किया है, जिस पर चलते हुए वे अस्तित्व की विलक्षण यात्राओं से सम्पन्न होते हैं और यति-गति-लय-विराम-विश्राम की अभिनव परिभाषाओं का साक्षात्कार करते हैं। दिनेश कुमार शुक्ल की कविताओं में वे समस्त आशंकाएँ, चिन्ताएँ, और पीड़ाएँ सम्मिलित हैं जिन्हें भस्मासुरी सभ्यता ने अपनी नियति बना लिया है। उनमें वे सारी स्मृतियाँ, संवेदनाएँ और सक्रियताएँ सुरक्षित हैं जो इस नियति को धराशायी करने के लिए आवश्यक हैं। ‘समय में सुरंग’ कविता में वे लिखते हैं —’स्मृतियाँ—जो काल व्याल के/ फण की मणि हैं जिनसे स्निग्धालोक बरसता/ जो करता/ पथ को आलोकित।’ इन कविताओं की आभा में कवि के अनेक अन्तःप्रदेश दिखते हैं, परिवेश के बहुतेरे यथार्थ प्रकट होते हैं। संग्रह की उल्लेखनीय बात यह भी है कि ‘कॉलसेंटर’, ‘समाचार’ और ‘दिल्ली’ जैसी कविताओं में कवि ने अद्यतन जीवन के चरमराते व्याकरण में निहित ‘सन्धि-विच्छेद’ को भी व्याख्यायित किया है। लोकसम्पृक्ति दिनेश कुमार शुक्ल के कवि-कर्म का केन्द्रीय तत्त्व है। स्मृति और यथार्थ के दो तटों के बीच बहती कविता की यह नदी वागर्थ के समुद्र में अलग से चमकती है। दिनेश कुमार शुक्ल की भाषा ‘संघर्ष और परम्परा की संचित चित्तवृत्ति’ से उपजी है। ‘उठता गिरता रहा दर्पण का वक्ष’ और ‘पृथ्वी-सा थका/ और ईश्वर-सा असहाय’ जैसे प्रयोगों से कविताएँ सजग हैं। ‘समुद्र में नदी’ संग्रह हिन्दी कविता के बीच एक स्वागतयोग्य आगमन है।—सुशील सिद्धार्थ

About Author

दिनेश कुमार शुक्ल - हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि। जन्म: वर्ष 1950 में नर्बल ग्राम, ज़िला कानपुर (उ.प्र.) में। शिक्षा: एम.एससी., डी.फिल. फ़िज़िक्स, इलाहाबाद विश्वविद्यालय। प्रकाशित रचनाएँ: कविता संग्रह 'समयचक्र' (1997), 'कभी तो खुलें कपाट' (1999), 'नया अनहद' (2001), 'कथा कही कविता' (2005), 'ललमुनिया की दुनिया' (2008), 'आखर अरथ' (2009) और प्रस्तुत कृति 'समुद्र में नदी' (2011)। काव्यानुवाद— पाब्लो नेरूदा की कविताएँ (1989)। कुछ आलोचनात्मक गद्य, समीक्षाएँ, टिप्पणियाँ और निबन्ध सम्मान : 'केदार सम्मान' तथा 'सीता स्मृति सम्मान'।

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