Parivesh

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
मोहन राकेश
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
मोहन राकेश
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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164

परिवेश –
हमारे समय और समाज के यथार्थ का चेहरा विकट झुर्रियों, अवसादों और विघटन से भरा है। इस वास्तविकता का साक्षात्कार करते हुए मनुष्य पर इसके प्रभावी परिणामों का दर्ज होना अप्रत्याशित नहीं है। इन प्रभावों को नज़रन्दाज़ करने पर न तो जीवन का औचित्य रह जाता है न ही रचना का। मोहन राकेश इन प्रभावों की गहन संवेदना के साथ बारीक़ पड़ताल करनेवाले महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं। इसीलिए ज़मीनी सच्चाइयाँ राकेश की रचनात्मकता और उनके जीवन में ‘ज़मीन से काग़ज़ों तक’ प्रसरित दीखती हैं।
‘परिवेश’ के लेख मोहन राकेश के रचना-संसार के वे साक्ष्य हैं जहाँ रचनात्मकता और जीवन दर्शन के सूत्र कभी परोक्ष तो कई बार प्रत्यक्ष रूप में घटित हुए हैं। इन लेखों में रोमांस, अकेलापन, रोमांच, अन्दर के घाव मिलते और बिखर जाते अहसासों की उपस्थिति ‘अनुभूति से अभिव्यक्ति’ तक उस विलक्षण ‘विट’ के साथ दृष्टव्य है जो मोहन राकेश की रचनाओं को विशिष्ट बनाती रही है। मौजूदा नये यथार्थ में नवीन लक्ष्यों की ओर उन्मुखता हेतु व्यक्ति का आवश्यक असन्तोष और अस्वीकृति जिस व्यंग्यात्मक ‘टोन’ में राकेश उपस्थित करते हैं वहाँ उसाँस और साँस की सम्मिलित गूंज सुनी जा सकती है। यही वह प्रस्थान है जो मोहन राकेश की सृजनात्मक यात्रा को बहुआयामी और कालजयी बनाता है।
इस अर्थ में ‘परिवेश’ में संकलित लेखों का महत्त्व विशेष है; कि मोहन राकेश के रचनात्मक व्यक्तित्व की बुनावट, बनावट और विश्रृंखल स्वरूप की अखण्ड सम्बद्धता का सूत्र यहाँ प्राप्त किया जा सकता है। प्रस्तुत है ‘परिवेश’ का पुनर्नवा संस्करण।

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परिवेश –
हमारे समय और समाज के यथार्थ का चेहरा विकट झुर्रियों, अवसादों और विघटन से भरा है। इस वास्तविकता का साक्षात्कार करते हुए मनुष्य पर इसके प्रभावी परिणामों का दर्ज होना अप्रत्याशित नहीं है। इन प्रभावों को नज़रन्दाज़ करने पर न तो जीवन का औचित्य रह जाता है न ही रचना का। मोहन राकेश इन प्रभावों की गहन संवेदना के साथ बारीक़ पड़ताल करनेवाले महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं। इसीलिए ज़मीनी सच्चाइयाँ राकेश की रचनात्मकता और उनके जीवन में ‘ज़मीन से काग़ज़ों तक’ प्रसरित दीखती हैं।
‘परिवेश’ के लेख मोहन राकेश के रचना-संसार के वे साक्ष्य हैं जहाँ रचनात्मकता और जीवन दर्शन के सूत्र कभी परोक्ष तो कई बार प्रत्यक्ष रूप में घटित हुए हैं। इन लेखों में रोमांस, अकेलापन, रोमांच, अन्दर के घाव मिलते और बिखर जाते अहसासों की उपस्थिति ‘अनुभूति से अभिव्यक्ति’ तक उस विलक्षण ‘विट’ के साथ दृष्टव्य है जो मोहन राकेश की रचनाओं को विशिष्ट बनाती रही है। मौजूदा नये यथार्थ में नवीन लक्ष्यों की ओर उन्मुखता हेतु व्यक्ति का आवश्यक असन्तोष और अस्वीकृति जिस व्यंग्यात्मक ‘टोन’ में राकेश उपस्थित करते हैं वहाँ उसाँस और साँस की सम्मिलित गूंज सुनी जा सकती है। यही वह प्रस्थान है जो मोहन राकेश की सृजनात्मक यात्रा को बहुआयामी और कालजयी बनाता है।
इस अर्थ में ‘परिवेश’ में संकलित लेखों का महत्त्व विशेष है; कि मोहन राकेश के रचनात्मक व्यक्तित्व की बुनावट, बनावट और विश्रृंखल स्वरूप की अखण्ड सम्बद्धता का सूत्र यहाँ प्राप्त किया जा सकता है। प्रस्तुत है ‘परिवेश’ का पुनर्नवा संस्करण।

About Author

मोहन राकेश - जन्म: 8 जनवरी, 1925 जण्डीवाली गली, अमृतसर (पंजाब)। शिक्षा: संस्कृत में शास्त्री, अंग्रेज़ी में बी.ए.। संस्कृत और हिन्दी में एम.ए.। जीविका के लिए लाहौर, मुम्बई, शिमला, जालन्धर और दिल्ली में अध्यापन व सम्पादन करते अन्ततः स्वतन्त्र लेखन। प्रकाशित कृतियाँ: 'इन्सान के खण्डहर', 'नये बादल', 'जानवर और जानवर', 'एक और ज़िन्दगी', 'फ़ौलाद का आकाश' और 'एक घटना' (कहानी संग्रह); 'अँधेरे बन्द कमरे', 'न आने वाला कल' और 'अन्तराल' (उपन्यास); 'आख़िरी चट्टान तक' (यात्रावृत्त); 'आषाढ़ का एक दिन', 'लहरों के राजहंस', 'आधे अधूरे', 'पैर तले की ज़मीन', 'अण्डे के छिलके', 'रात बीतने तक तथा अन्य ध्वनि नाटक' (नाटक) ; 'परिवेश', 'बक़लम ख़ुद' एवं 'साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि' (लेख व निबन्ध) ; 'राकेश और परिवेश पत्रों में' एवं 'एकत्र' (पत्र): 'मृच्छकटिक' और 'शाकुन्तल' (अनुवाद)। 'अँधेरे बन्द कमरे' का अंग्रेज़ी और रूसी भाषा में अनुवाद। 'आषाढ़ का एक दिन' नामक नाट्य-रचना के लिए और 'आधे-अधूरे' के रचनाकार के नाते संगीत नाटक अकादमी से पुरस्कृत सम्मानित। निधन: 3 दिसम्बर, 1972 (दिल्ली)।

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