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Arajak Ullas

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
कृष्णबिहारी मिश्र
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
कृष्णबिहारी मिश्र
Language:
Hindi
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Hardback

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Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788126318827 Category
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Page Extent:
200

अराजक उल्लास –
कृष्ण बिहारी मिश्र के इन निबन्धों को व्यक्तित्वपरक निबन्ध कहना तो ठीक है, लेकिन केवल ललित कह देने से उनके समर्थतर पक्ष की उपेक्षा हो जाती है। भाषा का लालित्य नहीं, आंचलिक जीवन से रागात्मक सम्बन्ध की समृद्धता ही उनका असल ऊर्जा स्रोत है। और इस राग-बन्ध में कहीं भावुकता नहीं है : ग्रामांचल के प्रति कृष्ण बिहारी जी का जो ममत्व है वह उन्हें उस जीवन की वर्तमान कमियों और कमजोरियों को अनदेखा करने की छूट नहीं देता। बल्कि समग्रता का जो सूत्र ग्राम समाज के जीवन को अर्थवत्ता देता था उसे वह टूटता हुआ देख रहे हैं और उससे दुःखी है, इसका दर्द बार-बार उनके निबन्धों में प्रकट होता है।—अज्ञेय
कृष्ण बिहारी जी का सपना धुँधला नहीं है, बड़ा ही स्पष्ट है। वे जड़ों की तलाश करते हैं तो जड़ खोद कर नहीं, अपनी प्राणनाड़ी का सन्धान करते हुए करते हैं। इस कारण वे उघरी जड़ों का आवाहन या स्मरण नहीं करते, वे समग्र जातीय चेतना के रसग्राही स्रोत में धँसी हुई जड़ को ध्याते हैं। वे अधूरेपन से उद्विग्न होकर समूचेपन की तस्वीर खींचने के लिए स्वप्नाविष्ट होते हैं।—विद्यानिवास मिश्र
श्री कृष्ण बिहारी मिश्र का मनोमस्तिष्क पुनर्जागरण की दीप्ति से जगमगाता रहा है। मुझे उनके निबन्ध बहुत ही प्रीतिकर लगते रहे हैं। उनके निबन्धों में आचार्य हजारीप्रसाद के पहले खेवे के निबन्धों का तेवर और फक्कड़पन तथा मस्ती दिखाई पड़ती है। कृष्ण बिहारी की विशेषता है कि वे कहीं से रूमानियत के शिकार नहीं हुए हैं। इसी कारण वे कुबेरनाथ राय की तरह सम्मोहनों से अपने को तोड़ पाने में असमर्थ नहीं हैं।—शिवप्रसाद सिंह

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Description

अराजक उल्लास –
कृष्ण बिहारी मिश्र के इन निबन्धों को व्यक्तित्वपरक निबन्ध कहना तो ठीक है, लेकिन केवल ललित कह देने से उनके समर्थतर पक्ष की उपेक्षा हो जाती है। भाषा का लालित्य नहीं, आंचलिक जीवन से रागात्मक सम्बन्ध की समृद्धता ही उनका असल ऊर्जा स्रोत है। और इस राग-बन्ध में कहीं भावुकता नहीं है : ग्रामांचल के प्रति कृष्ण बिहारी जी का जो ममत्व है वह उन्हें उस जीवन की वर्तमान कमियों और कमजोरियों को अनदेखा करने की छूट नहीं देता। बल्कि समग्रता का जो सूत्र ग्राम समाज के जीवन को अर्थवत्ता देता था उसे वह टूटता हुआ देख रहे हैं और उससे दुःखी है, इसका दर्द बार-बार उनके निबन्धों में प्रकट होता है।—अज्ञेय
कृष्ण बिहारी जी का सपना धुँधला नहीं है, बड़ा ही स्पष्ट है। वे जड़ों की तलाश करते हैं तो जड़ खोद कर नहीं, अपनी प्राणनाड़ी का सन्धान करते हुए करते हैं। इस कारण वे उघरी जड़ों का आवाहन या स्मरण नहीं करते, वे समग्र जातीय चेतना के रसग्राही स्रोत में धँसी हुई जड़ को ध्याते हैं। वे अधूरेपन से उद्विग्न होकर समूचेपन की तस्वीर खींचने के लिए स्वप्नाविष्ट होते हैं।—विद्यानिवास मिश्र
श्री कृष्ण बिहारी मिश्र का मनोमस्तिष्क पुनर्जागरण की दीप्ति से जगमगाता रहा है। मुझे उनके निबन्ध बहुत ही प्रीतिकर लगते रहे हैं। उनके निबन्धों में आचार्य हजारीप्रसाद के पहले खेवे के निबन्धों का तेवर और फक्कड़पन तथा मस्ती दिखाई पड़ती है। कृष्ण बिहारी की विशेषता है कि वे कहीं से रूमानियत के शिकार नहीं हुए हैं। इसी कारण वे कुबेरनाथ राय की तरह सम्मोहनों से अपने को तोड़ पाने में असमर्थ नहीं हैं।—शिवप्रसाद सिंह

About Author

डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र - जन्म: 1 जुलाई, 1936; बलिहार, बलिया (उ.प्र.)। शिक्षा: एम.ए. (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएच.डी. (कलकत्ता विश्वविद्यालय)। 1996 में बंगवासी मार्निंग कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त। देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों के सारस्वत प्रसंगों में सक्रिय भूमिका। प्रमुख कृतियाँ: 'हिन्दी पत्रकारिता : जातीय चेतना और खड़ी बोली साहित्य की निर्माण-भूमि', 'पत्रकारिता : इतिहास और प्रश्न', 'हिन्दी पत्रकारिता : जातीय अस्मिता की जागरण भूमिका', 'गणेश शंकर विद्यार्थी', 'हिन्दी पत्रकारिता : राजस्थानी आयोजन की कृती भूमिका' (पत्रकारिता); 'अराजक उल्लास', 'बेहया का जंगल', 'मकान उठ रहे हैं', 'आँगन की तलाश', 'गोरैया ससुराल गयी' (ललित निबन्ध संग्रह); 'आस्था और मूल्यों का संक्रमण', 'आलोक पंथा', 'सम्बुद्धि', 'परम्परा का पुरुषार्थ', 'माटी महिमा का सनातन राग' (विचार प्रधान निबन्ध-संग्रह); 'नेह के नाते अनेक' (संस्मरण); 'कल्पतरु की उत्सव लीला' और 'न मेधया' (परमहंस रामकृष्णदेव के लीला-प्रसंग पर केन्द्रित)। अनेक कृतियों का सम्पादन; 'भगवान बुद्ध' (यूनू की अंग्रेज़ी पुस्तक का अनुवाद)। त्रैमासिक पत्रिका 'समिधा' और मासिक 'भोजपुरी माटी' का सम्पादन। 'माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय' द्वारा डी.लिट्. की मानद उपाधि। 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' के 'साहित्य भूषण पुरस्कार', 'कल्पतरु की उत्सव लीला' हेतु वर्ष 2006 के भारतीय ज्ञानपीठ के 'मूर्तिदेवी पुरस्कार' से सम्मानित।

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