Patjhar Mein Tootee Pattiyan

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
रवींद्र केलेकर अनुवाद माधवी सरदेसाई
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
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रवींद्र केलेकर अनुवाद माधवी सरदेसाई
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Hindi
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Hardback

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104

पतझर में टूटी पत्तियाँ –
गाँधीवादी विचारक, कोंकणी एवं मराठी के शीर्षस्थ लेखक और पत्रकार रवीन्द्र केलेकर के प्रेरक प्रसंगों का अद्भुत संकलन है ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’। केलेकर का सम्पूर्ण साहित्य संघर्षशील चेतना से ओतप्रोत है।
‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ में लेखक ने निजी जीवन की कथा-व्यथा न लिखकर जन-जीवन के विविध पक्षों, मान्यताओं और व्यक्तिगत विचारों को देश और समाज के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। अनुभवजन्य टिप्पणियों में अपने चिन्तन की मौलिकता के साथ ही, इनमें विविध प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से मानवीय सत्य तक पहुँचने की सहज चेष्टा है। इस दृष्टि से देखा जाये तो यह कृति अपने पाठकों के लिए मात्र पढ़ने-गुनने की नहीं, एक जागरूक एवं सक्रिय नागरिक बनने की प्रेरणा देती है।
ये आलेख कोंकणी में प्रकाशित केलेकर की कृति ‘ओथांबे’ से चुनकर अनूदित किये गये हैं। अनुवाद किया है माधवी सरदेसाई ने, जो गोवा विश्वविद्यालय के कोंकणी विभाग में भाषा विज्ञान की वरिष्ठ अध्यापिका हैं।
यह महत्त्वपूर्ण कृति हिन्दी पाठकों को समर्पित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।

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Description

पतझर में टूटी पत्तियाँ –
गाँधीवादी विचारक, कोंकणी एवं मराठी के शीर्षस्थ लेखक और पत्रकार रवीन्द्र केलेकर के प्रेरक प्रसंगों का अद्भुत संकलन है ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’। केलेकर का सम्पूर्ण साहित्य संघर्षशील चेतना से ओतप्रोत है।
‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ में लेखक ने निजी जीवन की कथा-व्यथा न लिखकर जन-जीवन के विविध पक्षों, मान्यताओं और व्यक्तिगत विचारों को देश और समाज के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। अनुभवजन्य टिप्पणियों में अपने चिन्तन की मौलिकता के साथ ही, इनमें विविध प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से मानवीय सत्य तक पहुँचने की सहज चेष्टा है। इस दृष्टि से देखा जाये तो यह कृति अपने पाठकों के लिए मात्र पढ़ने-गुनने की नहीं, एक जागरूक एवं सक्रिय नागरिक बनने की प्रेरणा देती है।
ये आलेख कोंकणी में प्रकाशित केलेकर की कृति ‘ओथांबे’ से चुनकर अनूदित किये गये हैं। अनुवाद किया है माधवी सरदेसाई ने, जो गोवा विश्वविद्यालय के कोंकणी विभाग में भाषा विज्ञान की वरिष्ठ अध्यापिका हैं।
यह महत्त्वपूर्ण कृति हिन्दी पाठकों को समर्पित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।

About Author

रवीन्द्र केलेकर - जन्म: 7 मार्च, 1925। छात्र जीवन में ही गोवा मुक्ति आन्दोलन में सहभागिता। केलेकर के ही शब्दों में, 'मैं असल में एक 'फाइटर' हूँ। मुझमें जो 'राइटर' दिखाई देता है वह उसी का प्रतिफल है।' कोंकणी साहित्यपरिषद् के पूर्व अध्यक्ष, गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान की कार्यकारिणी के सदस्य, गाँधी आश्रम नागालैण्ड के न्यासी तथा केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के सदस्य रहे। प्रकाशन: कोंकणी में 'उजवाढाचे सूर', 'समिधा', 'सांगली', 'ब्रह्मांढातलें तांडव', 'ओथांबे', 'सर्जकाची आन्तरकथा', 'कामोरेर', 'तथागत' आदि लगभग 25 पुस्तकें। मराठी में 'कोंकणीचें राजकरण', 'जपान जसा दिसला' आदि तीन पुस्तकें तथा हिन्दी एवं गुजराती में भी कुछेक पुस्तकें प्रकाशित। गाँधी और काका कालेलकर की अनेक पुस्तकों का सम्पादन अनुवाद। सम्मान-पुरस्कार: गोवा कला अकादमी का साहित्य पुरस्कार (1974), साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1977), स्वामी प्रणवानन्द पुरस्कार (1990), कोंकणी साहित्यरत्न पुरस्कार (1994), गोवा राज्य सांस्कृतिक पुरस्कार, गोवा कला अकादमी का सर्वोच्च गोमंत शारदा पुरस्कार (1997 ), उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान का सौहार्द पुरस्कार (1999) आदि से सम्मानित।

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