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Pagle Man Ke Das Chehare
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
शिवराम कारन्त
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
शिवराम कारन्त
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹320 ₹224
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In stock
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10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9788126316632
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
375
पगले मन के दस चेहरे –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से विभूषित कन्नड़ के महान लेखक डॉ. शिवराम कारन्त की ‘पगले मन के दस चेहरे’ एक ऐसे दुर्धर्ष संघर्षशील लेखक की आत्मकथा है जिसमें जीवन को चुनौती के रूप में लिया गया है। जीवन के अन्त तक जिनके मन में युवकोचित ओज और उत्साह रहा और जो नयी पीढ़ी के लिए एक प्रकाश स्तम्भ के समान रहे। सर्जनात्मक लेखन, सम्पादन-प्रकाशन, पत्रकारिता, मंच, संगीत-नृत्य, हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके भीतर परिवर्तन की ज्वाला धधकती रहती थी। कहीं भी अन्याय या एकाधिकार की भावना दिखते ही उनका विद्रोही व्यक्तित्व मुखर हो उठता था। अपने अनगिनत पाठकों की दृष्टि में वे एक नायक रहे हैं– स्वाधीन, निष्कपट, निर्भय और अपने में पूर्ण; साथ ही विनयशील।
ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा उन्हें देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधियाँ प्रदान की हैं।
नयी पीढ़ी के लिए डॉ. कारन्त की यह आत्मकथा एक प्रकाश-स्तम्भ की तरह है। यह संघर्ष करना तो सिखाती ही है, सफलता का आत्मविश्वास भी पैदा करती है।
प्रस्तुत है भारतीय साहित्य की एक उत्कृष्ट आत्मकथा के हिन्दी रूपान्तर का अद्यतन संस्करण।
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Description
पगले मन के दस चेहरे –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से विभूषित कन्नड़ के महान लेखक डॉ. शिवराम कारन्त की ‘पगले मन के दस चेहरे’ एक ऐसे दुर्धर्ष संघर्षशील लेखक की आत्मकथा है जिसमें जीवन को चुनौती के रूप में लिया गया है। जीवन के अन्त तक जिनके मन में युवकोचित ओज और उत्साह रहा और जो नयी पीढ़ी के लिए एक प्रकाश स्तम्भ के समान रहे। सर्जनात्मक लेखन, सम्पादन-प्रकाशन, पत्रकारिता, मंच, संगीत-नृत्य, हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके भीतर परिवर्तन की ज्वाला धधकती रहती थी। कहीं भी अन्याय या एकाधिकार की भावना दिखते ही उनका विद्रोही व्यक्तित्व मुखर हो उठता था। अपने अनगिनत पाठकों की दृष्टि में वे एक नायक रहे हैं– स्वाधीन, निष्कपट, निर्भय और अपने में पूर्ण; साथ ही विनयशील।
ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा उन्हें देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधियाँ प्रदान की हैं।
नयी पीढ़ी के लिए डॉ. कारन्त की यह आत्मकथा एक प्रकाश-स्तम्भ की तरह है। यह संघर्ष करना तो सिखाती ही है, सफलता का आत्मविश्वास भी पैदा करती है।
प्रस्तुत है भारतीय साहित्य की एक उत्कृष्ट आत्मकथा के हिन्दी रूपान्तर का अद्यतन संस्करण।
About Author
डॉ. के. शिवराम कारन्त -
कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ ज़िलान्तर्गत कोट ग्राम में 10 अक्टूबर, 1902 में जनमे के. शिवराम कारन्त की कॉलेज की शिक्षा आधी-अधूरी ही रही। 1921 में गाँधी जी के आन्दोलन से प्रेरित हो वे देशव्यापी रचनात्मक कार्य के लिए समर्पित हो गये। तत्कालीन शिक्षा पद्धति के प्रति अनास्थावान होकर भी वे स्वयं शिक्षाविद् थे। वे तीन-तीन विश्वविद्यालयों से डी.लिट्. की उपाधि से विभूषित हुए।
डॉ. कारन्त कन्नड़ साहित्य और संस्कृति के नवोन्मेष में आजीवन संलग्न रहे। उन्होंने शब्दकोश, विश्वकोश, यात्रावृत्त, संगीत रूपक, निबन्ध, कहानी आदि विविध विधाओं में लेखन कार्य किया लेकिन सर्वाधिक ख्याति मिली उन्हें उपन्यासकार के रूप में। उनकी प्रकाशित लगभग दो सौ कृतियों में से उनतालीस उपन्यास हैं। ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनकी एक अन्य रचना है – 'मूकज्जी' (ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास )।
कर्नाटक के अनूठे लोकनृत्य-नाट्य यक्षज्ञान के विस्तार में उनका विशेष योगदान रहा है। डॉ. कारन्त साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1958), स्वीडिश अकादेमी का लोकनृत्य पुरस्कार (1960) और ज्ञानपीठ पुरस्कार (1977 ) से अलंकृत हुए।
1997 में उनका देहावसान हुआ।
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