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Sahitya Aur Swatantrata Prashna Pratiprashna

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
देवेंद्र इस्सार
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
देवेंद्र इस्सार
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 812631141X Category
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192

साहित्य और स्वतन्त्रता : प्रश्न-प्रतिप्रश्न –
हम जानते हैं कि साहित्य यात्रा का पथ सहज और सीधा नहीं है। अनेक नकारात्मक विचार पद्धतियों के बावजूद वह अपने स्वाधीन मूल्यों के लिए सतत संघर्ष करता है। प्रख्यात लेखक और विचारक देवेन्द्र इस्सर वर्तमान रचनात्मक संसार की ऐसी ही समस्याओं से जूझते रहे हैं। उनकी यह नवीनतम पुस्तक ‘साहित्य और स्वतन्त्रता प्रश्न-प्रतिप्रश्न’ भी उनके व्यापक संघर्ष, चिन्तन और अध्ययन का प्रतिफलन है। इतिहास का शायद ही कोई ऐसा दौर रहा हो जब मतान्धता और नवमूल्यों; जड़ परम्पराओं और तात्त्विक परिवर्तनों तथा सत्ता और स्वतन्त्रता में संघर्ष की स्थिति न रही हो और साहित्य ने इस संघर्ष में सदा की तरह रचनात्मक हस्तक्षेप न किया हो। लेखक की मान्यता है कि सृजन ही एक ऐसी प्रक्रिया है जो जलसे, जुलूसों, नारों-नक्कारों तथा फ़तवों-फ़रमानों के शोरगुल में भी जारी रहती है और मनुष्य की स्वाधीनता और मर्यादा को बनाये रखती है।
प्रत्येक महत्त्वपूर्ण रचना हमें अपने समय के यथार्थ से रू-ब-रू कराती है, भले ही वह मनुष्य की आन्तरिकता और एकाकीपन को अभिव्यक्त करती हो या बाह्य जगत के भयावह दृश्यों को दर्शाती हो। देवेन्द्र इस्सर के लेखन की विशेषता है कि उनके लेखों में सिर्फ़ यथार्थ का सपाट चेहरा नहीं, बल्कि सृजन और स्वतन्त्रता के अन्तर्सम्बन्धों को समझने की सुन्दर चेष्टा है।
हमें विश्वास है कि साहित्यिक आलोचना के प्रेमी पाठक इस कृति का हृदय से स्वागत करेंगे।

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साहित्य और स्वतन्त्रता : प्रश्न-प्रतिप्रश्न –
हम जानते हैं कि साहित्य यात्रा का पथ सहज और सीधा नहीं है। अनेक नकारात्मक विचार पद्धतियों के बावजूद वह अपने स्वाधीन मूल्यों के लिए सतत संघर्ष करता है। प्रख्यात लेखक और विचारक देवेन्द्र इस्सर वर्तमान रचनात्मक संसार की ऐसी ही समस्याओं से जूझते रहे हैं। उनकी यह नवीनतम पुस्तक ‘साहित्य और स्वतन्त्रता प्रश्न-प्रतिप्रश्न’ भी उनके व्यापक संघर्ष, चिन्तन और अध्ययन का प्रतिफलन है। इतिहास का शायद ही कोई ऐसा दौर रहा हो जब मतान्धता और नवमूल्यों; जड़ परम्पराओं और तात्त्विक परिवर्तनों तथा सत्ता और स्वतन्त्रता में संघर्ष की स्थिति न रही हो और साहित्य ने इस संघर्ष में सदा की तरह रचनात्मक हस्तक्षेप न किया हो। लेखक की मान्यता है कि सृजन ही एक ऐसी प्रक्रिया है जो जलसे, जुलूसों, नारों-नक्कारों तथा फ़तवों-फ़रमानों के शोरगुल में भी जारी रहती है और मनुष्य की स्वाधीनता और मर्यादा को बनाये रखती है।
प्रत्येक महत्त्वपूर्ण रचना हमें अपने समय के यथार्थ से रू-ब-रू कराती है, भले ही वह मनुष्य की आन्तरिकता और एकाकीपन को अभिव्यक्त करती हो या बाह्य जगत के भयावह दृश्यों को दर्शाती हो। देवेन्द्र इस्सर के लेखन की विशेषता है कि उनके लेखों में सिर्फ़ यथार्थ का सपाट चेहरा नहीं, बल्कि सृजन और स्वतन्त्रता के अन्तर्सम्बन्धों को समझने की सुन्दर चेष्टा है।
हमें विश्वास है कि साहित्यिक आलोचना के प्रेमी पाठक इस कृति का हृदय से स्वागत करेंगे।

About Author

देवेन्द्र इस्सर - जन्म: 14 अगस्त, 1928, कैंबलपुर, पश्चिमी पंजाब। इलाहाबाद और दिल्ली विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त करने के बाद कॉर्निल विश्वविद्यालय अमेरिका से कम्युनिकेशन आर्ट्स में मास्टर ऑफ़ प्रोफ़ेशनल स्टडीज़ की उपाधि। रचनात्मक और वैचारिक लेखन से लम्बे समय से जुड़ाव। हिन्दी, उर्दू, पंजाबी और अंग्रेज़ी में कई पुस्तकें प्रकाशित। इनमें सात कहानी संग्रहों के अतिरिक्त 'साहित्य और युगबोध', 'स्वप्न और स्मृति के बीच', 'भविष्य से संवाद', 'मंटोनोमा, 'ख़ुशबू बनके लौटेंगे', 'कोई आवाज़ गुम नहीं होती', 'उत्तर आधुनिकता : साहित्य और संस्कृति की नयी सोच', 'नयी सदी और साहित्य', 'आवारा हवाओं का मौसम', of Kama, Birds Fly No More और Memories of Fragrance शमिल हैं।

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