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Ek Aur Nachiketa
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
जी. शंकर कुरुप
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
जी. शंकर कुरुप
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹60 ₹59
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ISBN:
SKU
9788126306206
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
72
एक और नचिकेता –
‘एक और नचिकेता’ महाकवि जी. शंकर कुरुप की दस कविताओं का संकलन है। ज्ञानपीठ पुरस्कार जयी कविता संग्रह ओटक्कुष़ळ् (बाँसुरी) के प्रकाशन के उपरान्त, अर्थात् सन् 1950 के बाद रचित कविताओं में से ये चुनी गयी हैं।
‘एक और नचिकेता’ के प्रकाशन से साहित्य-जगत को महाकवि की परवर्ती रचनाओं की शक्ति, सामर्थ्य और काव्यसौन्दर्य का परिचय प्राप्त हो, इस दृष्टि से ओटक्कुष़ळ् के साथ-साथ इस संग्रह का प्रकाशन नियोजित किया गया था।
ओटक्कुष़ळ् में मूल मलयालम कविताएँ भी देवनागरी लिपि में दी गयी हैं। मूल का रस-बोध हिन्दी पाठकों के लिए अधिक अलभ्य नहीं है, क्योंकि सामान्यतया मलयालम भाषा और विशेषकर कुरुप की भाषा-शैली संस्कृत-निष्ठ है।
‘एक और नचिकेता’ एक प्रकार से ‘ओटक्कुष़ळ्’ का पूरक भाग है, महाकवि के काव्य को उसकी समग्रता में समझने के लिए आवश्यक।
प्रस्तुत है कृति का नवीन संस्करण।
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Description
एक और नचिकेता –
‘एक और नचिकेता’ महाकवि जी. शंकर कुरुप की दस कविताओं का संकलन है। ज्ञानपीठ पुरस्कार जयी कविता संग्रह ओटक्कुष़ळ् (बाँसुरी) के प्रकाशन के उपरान्त, अर्थात् सन् 1950 के बाद रचित कविताओं में से ये चुनी गयी हैं।
‘एक और नचिकेता’ के प्रकाशन से साहित्य-जगत को महाकवि की परवर्ती रचनाओं की शक्ति, सामर्थ्य और काव्यसौन्दर्य का परिचय प्राप्त हो, इस दृष्टि से ओटक्कुष़ळ् के साथ-साथ इस संग्रह का प्रकाशन नियोजित किया गया था।
ओटक्कुष़ळ् में मूल मलयालम कविताएँ भी देवनागरी लिपि में दी गयी हैं। मूल का रस-बोध हिन्दी पाठकों के लिए अधिक अलभ्य नहीं है, क्योंकि सामान्यतया मलयालम भाषा और विशेषकर कुरुप की भाषा-शैली संस्कृत-निष्ठ है।
‘एक और नचिकेता’ एक प्रकार से ‘ओटक्कुष़ळ्’ का पूरक भाग है, महाकवि के काव्य को उसकी समग्रता में समझने के लिए आवश्यक।
प्रस्तुत है कृति का नवीन संस्करण।
About Author
जी. शंकर कुरुप -
मध्य केरल के नायत्तोह गाँव के एक सरल सहज छोटे-से परिवार में 5 जून, 1901 को जनमे जी. शंकर कुरुप को आठ वर्ष की अवस्था में ही अमरकोश, सिद्धरूपम् (संस्कृत व्याकरण) आदि ग्रन्थ कण्ठस्थ हो गये थे। बाद में तत्कालीन प्रसिद्ध मलयालम कवि कुंजीकुट्टन तम्पुरान की प्रेरणा से उनकी काव्य-चेतना में प्रथम अंकुर फूटे। अपनी युवावस्था तक आते-आते वह प्रकृति के अनन्य उपासक बन गये। उनकी काव्य-रचना ने मलयालम के क्षेत्र में उत्तरोत्तर सम्मान और ख्याति पायी। शीघ्र ही उनकी गणना श्रेष्ठ कवियों में की जाने लगी। कुरुप की कुल मिलाकर 37 कृतियाँ प्रकाशित हैं। इनमें 30 मौलिक हैं और 7 अनुवाद हैं।
साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1963) और प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार (1965) से सम्मानित।
श्री कुरुप का 2 फ़रवरी, 1978 में देहावसान हो गया।
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