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Sankalp Santras Sankalp
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
विष्णुकांत शास्त्री
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
विष्णुकांत शास्त्री
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹150 ₹149
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ISBN:
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8126306831
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
184
संकल्प सन्त्रास संकल्प –
बांग्लादेश की क्रान्ति कई दृष्टियों से विलक्षण है। इसकी एक विशेषता यह है कि इसने भाषा और संस्कृति के आधार पर धर्मान्धता और राजनीतिक-आर्थिक शोषण की शक्तियों को चुनौती दी। सन् 1952 से 1970 तक के लम्बे वैधानिक संघर्ष की प्रेरणा के केन्द्र बिन्दु के रूप में विद्यमान था, छात्रों का 21 फ़रवरी, 1952 का वह बलिदान जो उन्होंने बांग्ला भाषा के सम्मान की रक्षा के लिए दिया था।
लोकतान्त्रिक पद्धति के अनुसार व्यक्त सम्पूर्ण जनता की आकांक्षाओं को मार्च 1971 में, जब बर्बर पाकिस्तानी शासकों ने अकथ्य सैनिक अत्याचार द्वारा कुचल देना चाहा, तब वही बलिदानी चेतना सशस्त्र मुक्ति-संग्राम के रूप में प्रकट हुई। संस्कृति को भावुकता क़रार देने वालों को इस क्रान्ति से कुछ सीखना चाहिए।..
बांग्लादेश में जो हुआ वह मात्र विस्फोट नहीं था, वह संकल्पबद्ध योजना और भविष्य के निर्माण की प्रेरणा से उद्भूत क्रान्ति थी।
स्वतन्त्रता की यह चिनगारी अन्तरतम से आयी थी, इसकी गवाही बांग्लादेश की ‘क्रान्तिधात्री कविता’ भी देती है। संगीनों के साये में पलनेवाले सन्त्रास के बावजूद, बांग्लादेश की संग्रामी जनता के अन्तःस्पन्दन एवं उसके मुक्तिकामी वज्र-संकल्प को ध्वनित करनेवाली 56 कविताओं के संकलन का यह नया संस्करण समर्पित है दुनिया के सभी स्वाधीनता-प्रेमियों को।
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Description
संकल्प सन्त्रास संकल्प –
बांग्लादेश की क्रान्ति कई दृष्टियों से विलक्षण है। इसकी एक विशेषता यह है कि इसने भाषा और संस्कृति के आधार पर धर्मान्धता और राजनीतिक-आर्थिक शोषण की शक्तियों को चुनौती दी। सन् 1952 से 1970 तक के लम्बे वैधानिक संघर्ष की प्रेरणा के केन्द्र बिन्दु के रूप में विद्यमान था, छात्रों का 21 फ़रवरी, 1952 का वह बलिदान जो उन्होंने बांग्ला भाषा के सम्मान की रक्षा के लिए दिया था।
लोकतान्त्रिक पद्धति के अनुसार व्यक्त सम्पूर्ण जनता की आकांक्षाओं को मार्च 1971 में, जब बर्बर पाकिस्तानी शासकों ने अकथ्य सैनिक अत्याचार द्वारा कुचल देना चाहा, तब वही बलिदानी चेतना सशस्त्र मुक्ति-संग्राम के रूप में प्रकट हुई। संस्कृति को भावुकता क़रार देने वालों को इस क्रान्ति से कुछ सीखना चाहिए।..
बांग्लादेश में जो हुआ वह मात्र विस्फोट नहीं था, वह संकल्पबद्ध योजना और भविष्य के निर्माण की प्रेरणा से उद्भूत क्रान्ति थी।
स्वतन्त्रता की यह चिनगारी अन्तरतम से आयी थी, इसकी गवाही बांग्लादेश की ‘क्रान्तिधात्री कविता’ भी देती है। संगीनों के साये में पलनेवाले सन्त्रास के बावजूद, बांग्लादेश की संग्रामी जनता के अन्तःस्पन्दन एवं उसके मुक्तिकामी वज्र-संकल्प को ध्वनित करनेवाली 56 कविताओं के संकलन का यह नया संस्करण समर्पित है दुनिया के सभी स्वाधीनता-प्रेमियों को।
About Author
विष्णुकान्त शास्त्री -
जन्म: 2 मई, 1929 को कोलकाता में।
प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम.ए., एलएल. बी. 1953 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक। बाद में प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष। 1994 में सेवा निवृत्त।
कलकत्ता विश्वविद्यालय, कार्यकारी समिति के सीनेट तथा भारतीय हिन्दी परिषद्, भारत सरकार के मानव संसाधन एवं विकास मन्त्रालय की परामर्श समिति (1992-98) और संसदीय राजभाषा समिति (1994-98) के सदस्य रहे। अनेक राष्ट्रीय एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से सम्बद्ध सम्प्रति उत्तर प्रदेश के राज्यपाल।
कृतित्व: कवि निराला की वेदना तथा अन्य निबन्ध, कुछ चन्दन की कुछ कपूर की, चिन्तन-मुद्रा, अनुचिन्तन (समीक्षा); बांग्लादेश के सन्दर्भ में (रिपोर्ताज); स्मरण को पाथेय बनने दो, सुधियाँ उस चन्दन के वन की (यात्रा-वृत्तान्त व संस्मरण); भक्ति और शरणागत (विवेचन); ज्ञान और कर्म (चिन्तन) और अनन्त पथ के यात्री : धर्मवीर भारती (संस्मरण) अनूदित कृतियाँ उपमा-कालिदासस्य (बांग्ला से), संकल्प सन्त्रास संकल्प (बांग्ला से) तथा महात्मा गाँधी का समाजदर्शन (अंग्रेज़ी से)।
सम्मान: 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार' (1972), 'डॉ. राममनोहर लोहिया सम्मान', 'राजर्षि टण्डन हिन्दी सेवी सम्मान' आदि से विभूषित छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर द्वारा डी.लिट्. की उपाधि से अलंकृत।
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