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Pramukh Aitihasik Jain Purush Aur Mahilaen
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
ज्योतिप्रसाद जैन
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
ज्योतिप्रसाद जैन
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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8126305371
Category Hindi
Category: Hindi
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400
प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ –
इतिहास का निर्माण मनुष्य ने किया है। मनुष्य को निर्माण-दिशा इतिहास ने दी। बात अटपटी लगेगी, पर उसमें है सच्चाई। किसी भी देश या जाति का इतिहास हो, किसी भी धर्म या समाज की परम्पराएँ हाँ, भीतर पैंठने चलें तो साक्षात्कार सब कहीं इस सच्चाई से होगा। वहाँ तो यह तथ्य और भी उजागर, मुखरित होता मिलेगा जहाँ सामाजिक जीवन के ताने-बाने में एकाधिक संस्कृतियाँ रची-पची हों।
प्रस्तुत ग्रन्थ इस दृष्टि से देश के समूचे इतिहास का तो छवि-अंकन नहीं करता, न ही इसका अभीष्ट यह है कि विभिन्न सांस्कृतिक परम्पराओं ने सहजीवी रहते हुए और एक-दूसरे को प्रभावित करते हुए किस प्रकार यहाँ की समग्र सामाजिक इकाई की श्रीवृद्धि की इसे उद्घाटित करे। इसका तो उद्देश्य उन महाप्राण पुरुषों और महिलाओं से साक्षात्कार करा देना है जिनका कृतित्व इतिहास का धन बना है और उसकी रूपरेखाओं में समाया हुआ है।
अवश्य ये प्राणवान ज्योतियाँ ईसा पूर्व 600 से ईसोत्तर 1947 तक अर्थात् तीर्थंकर महावीर से स्वतन्त्रता प्राप्ति तक के 2500 वर्ष के काल की हैं और अनिवार्य रूप से जैनधर्म और संस्कृति को प्रतीकित करती हैं। यह आवश्यक भी था इस तथ्य को सम्मुख लाने के लिए कि भारतीय समाज और संस्कृति के विकास और श्रीवर्द्धन में इन सबका कितना विपुल योगदान रहा है।
कितने महत्त्व का है यह ग्रन्थ, कितनी उपयोगिता है इसकी, यह प्रत्यक्ष है। हिन्दी में इस विषय-भूमि की यह सर्वथा प्रामाणिक और पहली रचना है, जिसमें शोध की गरिमा और चरित्र-चित्रांकन की प्रेरणापूर्ण रोचकता, दोनों का समन्वय हुआ है। प्रत्येक जिज्ञासु मन, प्रत्येक विचारशील पाठक के लिए सर्वथा उपयोगी इस ग्रन्थ का नया संस्करण प्रस्तुत है।
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Description
प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ –
इतिहास का निर्माण मनुष्य ने किया है। मनुष्य को निर्माण-दिशा इतिहास ने दी। बात अटपटी लगेगी, पर उसमें है सच्चाई। किसी भी देश या जाति का इतिहास हो, किसी भी धर्म या समाज की परम्पराएँ हाँ, भीतर पैंठने चलें तो साक्षात्कार सब कहीं इस सच्चाई से होगा। वहाँ तो यह तथ्य और भी उजागर, मुखरित होता मिलेगा जहाँ सामाजिक जीवन के ताने-बाने में एकाधिक संस्कृतियाँ रची-पची हों।
प्रस्तुत ग्रन्थ इस दृष्टि से देश के समूचे इतिहास का तो छवि-अंकन नहीं करता, न ही इसका अभीष्ट यह है कि विभिन्न सांस्कृतिक परम्पराओं ने सहजीवी रहते हुए और एक-दूसरे को प्रभावित करते हुए किस प्रकार यहाँ की समग्र सामाजिक इकाई की श्रीवृद्धि की इसे उद्घाटित करे। इसका तो उद्देश्य उन महाप्राण पुरुषों और महिलाओं से साक्षात्कार करा देना है जिनका कृतित्व इतिहास का धन बना है और उसकी रूपरेखाओं में समाया हुआ है।
अवश्य ये प्राणवान ज्योतियाँ ईसा पूर्व 600 से ईसोत्तर 1947 तक अर्थात् तीर्थंकर महावीर से स्वतन्त्रता प्राप्ति तक के 2500 वर्ष के काल की हैं और अनिवार्य रूप से जैनधर्म और संस्कृति को प्रतीकित करती हैं। यह आवश्यक भी था इस तथ्य को सम्मुख लाने के लिए कि भारतीय समाज और संस्कृति के विकास और श्रीवर्द्धन में इन सबका कितना विपुल योगदान रहा है।
कितने महत्त्व का है यह ग्रन्थ, कितनी उपयोगिता है इसकी, यह प्रत्यक्ष है। हिन्दी में इस विषय-भूमि की यह सर्वथा प्रामाणिक और पहली रचना है, जिसमें शोध की गरिमा और चरित्र-चित्रांकन की प्रेरणापूर्ण रोचकता, दोनों का समन्वय हुआ है। प्रत्येक जिज्ञासु मन, प्रत्येक विचारशील पाठक के लिए सर्वथा उपयोगी इस ग्रन्थ का नया संस्करण प्रस्तुत है।
About Author
डॉ. ज्योति प्रसाद जैन -
भारतीय इतिहास, विशेषकर जैन इतिहास, संस्कृति और साहित्य के बीसवीं सदी के मनीषी विद्वान।
जन्म: सन् 1912 में मेरठ (उ.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए., एलएल.बी., पीएच.डी.।
प्रमुख कृतियाँ : 'द जैन सोर्सेज़ ऑफ़ द हिस्ट्री ऑफ़ ऐन्शिएण्ट इण्डिया', 'जैनिज़्म : द ओल्डेस्ट लिविंग रिलिजन', 'हस्तिनापुर', 'प्रकाशित जैन साहित्य', 'भारतीय इतिहास : एक दृष्टि', 'रुहेलखण्ड-कुमायूँ और जैनधर्म', 'तीर्थंकरों का सर्वोदय मार्ग', 'जैन ज्योति : ऐतिहासिक व्यक्तिकोश', 'रिलिजन ऐण्ड कल्चर ऑफ़ द जैन्स' और प्रस्तुत कृति 'प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ'।
'जैन सिद्धान्त भास्कर', 'जैन सन्देश (शोधांक)', 'जैन एण्टिक्वेरी', 'शोधादर्श' आदि शोध-पत्रिकाओं के सम्पादक रहे। इन्स्टीट्यूट ऑफ़ प्राकृत ऐण्ड जैनोलॉजी, वैशाली की काउन्सिल के सदस्य तथा अखिल विश्व जैन मिशन के प्रधान संचालक। 'विद्या-वारिधि', 'इतिहास रत्न' तथा 'इतिहास-मनीषी' उपाधियों से सम्मानित। सन् 1988 में लखनऊ में देहावसान।
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