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Bhakti Ka Sandarbh
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
देवीशंकर अवस्थी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
देवीशंकर अवस्थी
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹150 ₹149
Save: 1%
In stock
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10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9788170555353
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
154
अपने समकालीन यथार्थ की सही पहचान रखनेवाला समीक्षक ही समकालीन साहित्य के साथ-साथ अतीत के साहित्य का भी वस्तुपरक मूल्यांकन कर सकता है। इस कृष्टि से देवीशंकर अवस्थी की यह पुस्तक सर्वथा नये परिप्रेक्ष्य में भक्ति-साहित्य का आकलन प्रस्तुत करती है। देवीशंकर अवस्थी नवलेखन की सम्पूर्ण त्वरा और उसकी प्रवृत्तिगत विविधता पर जिस अधिकार के साथ अपनी बात कह रहे थे, उसी अधिकार के साथ एकदम आधुनिक संवेदना से ओत-प्रोत होकर भक्ति के सन्दर्भ और उसकी परम्परा पर भी विचार कर रहे थे । धर्मशास्त्र, तत्त्वमीमांसा, इतिहास और समाजविज्ञान के क्षेत्र में हो रहे नये अनुसन्धानों के आलोक में भक्ति आन्दोलन के बोधपक्ष और उसकी ऐतिहासिक क्रमिकता पर भी उन्होंने अपना ध्यान केन्द्रित किया था। वैदिक संस्कृति और लोक में पहले से चली आ रही अवैदिक भावधाराओं के बीच की अन्तःक्रियाओं को समझने के मामले में उनकी दृष्टि अचूक है। यही दृष्टि भक्ति साहित्य को सम्यक् सन्दर्भ प्रदान करती है।
योग, शैव, नाथ, सिद्ध, तन्त्र, सहजिया, वैष्णव और सूफ़ी मतों की विभिन्न धाराओं और उपधाराओं के बीच सिर्फ़ टकराहट ही नहीं थी, आदान-प्रदान और अन्तरावलम्बन के पुष्ट प्रमाण भी थे। इन विभिन्न प्रवृत्तियों के अन्तःसम्बन्ध और उनकी बहुरंगी विविधता को समझने में यह पुस्तक गुत्थी सुलझाने वाली समालोचना की नयी शुरुआत का संकेत देती है। समीक्षा के क्षेत्र में यही नयी उद्भावना होती है। तभी यह पुस्तक ऐतिहासिक अन्वेषण और साहित्यिक समालोचना-दोनों प्रणालियों को एकाकार करती है। इसमें एक ओर जहाँ भक्ति के पौराणिक सन्दर्भ का विश्लेषण है तो दूसरी ओर आधुनिक दृष्टि से सर्वथा नयी व्याख्या भी है। लोकाश्रित भावबोध के भीतर से अंकुरित प्रेम और भक्ति के मध्यकालीन सन्दर्भों और विचार बिन्दुओं की विशद विवेचना करने में यह पुस्तक अन्तर्दृष्टि का नया गवाक्ष खोलती है।
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Description
अपने समकालीन यथार्थ की सही पहचान रखनेवाला समीक्षक ही समकालीन साहित्य के साथ-साथ अतीत के साहित्य का भी वस्तुपरक मूल्यांकन कर सकता है। इस कृष्टि से देवीशंकर अवस्थी की यह पुस्तक सर्वथा नये परिप्रेक्ष्य में भक्ति-साहित्य का आकलन प्रस्तुत करती है। देवीशंकर अवस्थी नवलेखन की सम्पूर्ण त्वरा और उसकी प्रवृत्तिगत विविधता पर जिस अधिकार के साथ अपनी बात कह रहे थे, उसी अधिकार के साथ एकदम आधुनिक संवेदना से ओत-प्रोत होकर भक्ति के सन्दर्भ और उसकी परम्परा पर भी विचार कर रहे थे । धर्मशास्त्र, तत्त्वमीमांसा, इतिहास और समाजविज्ञान के क्षेत्र में हो रहे नये अनुसन्धानों के आलोक में भक्ति आन्दोलन के बोधपक्ष और उसकी ऐतिहासिक क्रमिकता पर भी उन्होंने अपना ध्यान केन्द्रित किया था। वैदिक संस्कृति और लोक में पहले से चली आ रही अवैदिक भावधाराओं के बीच की अन्तःक्रियाओं को समझने के मामले में उनकी दृष्टि अचूक है। यही दृष्टि भक्ति साहित्य को सम्यक् सन्दर्भ प्रदान करती है।
योग, शैव, नाथ, सिद्ध, तन्त्र, सहजिया, वैष्णव और सूफ़ी मतों की विभिन्न धाराओं और उपधाराओं के बीच सिर्फ़ टकराहट ही नहीं थी, आदान-प्रदान और अन्तरावलम्बन के पुष्ट प्रमाण भी थे। इन विभिन्न प्रवृत्तियों के अन्तःसम्बन्ध और उनकी बहुरंगी विविधता को समझने में यह पुस्तक गुत्थी सुलझाने वाली समालोचना की नयी शुरुआत का संकेत देती है। समीक्षा के क्षेत्र में यही नयी उद्भावना होती है। तभी यह पुस्तक ऐतिहासिक अन्वेषण और साहित्यिक समालोचना-दोनों प्रणालियों को एकाकार करती है। इसमें एक ओर जहाँ भक्ति के पौराणिक सन्दर्भ का विश्लेषण है तो दूसरी ओर आधुनिक दृष्टि से सर्वथा नयी व्याख्या भी है। लोकाश्रित भावबोध के भीतर से अंकुरित प्रेम और भक्ति के मध्यकालीन सन्दर्भों और विचार बिन्दुओं की विशद विवेचना करने में यह पुस्तक अन्तर्दृष्टि का नया गवाक्ष खोलती है।
About Author
देवीशंकर अवस्थी (1930-1966) -
जन्म : 5 अप्रैल, 1930, सथनी बालाखेड़ा, ज़िला उन्नाव, उत्तर प्रदेश ।
शिक्षा : रायबरेली और कानपुर; 1960 में आगरा विश्वविद्यालय से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निर्देशन में पीएच.डी. । 'यों लॉ की डिग्री' भी ली थी।
कार्यक्षेत्र : अध्यापन : 1953 से 1961 तक डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर, 1961 से जनवरी 1966 (मृत्युपर्यन्त) दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग से सम्बद्ध ।
रचनाएँ : मौलिक : आलोचना और आलोचना, रचना और आलोचना, अठारहवीं शताब्दी के ब्रजभाषा काव्य में प्रेमाभक्ति, रचना का समकाल।
सम्पादित : कविताएँ : 1954, विवेक के रंग, नयी कहानी : सन्दर्भ और प्रकृति, साहित्य विधाओं की प्रकृति, कहानी विविधा, सम्पादित
पत्रिका : कलजुग ।
स्मृति-शेष : 13 जनवरी, 1966 (सड़क दुर्घटना में) ।
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