SalePaperback
Here Lay Tirpitz
₹595 ₹417
Save: 30%
Kisan Rashtriya Aandolan Aur Premchand :1918-22
₹400 ₹360
Save: 10%
Hindi Sahitya Ka Itihas Aur Uski Samasyayen
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
योगेन्द्र प्रताप सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
योगेन्द्र प्रताप सिंह
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹295 ₹265
Save: 10%
In stock
Ships within:
10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789352294022
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
512
हिन्दी साहित्य का इतिहास और उसकी समस्याएँ – सामाजिक बदलाव की परिस्थितियाँ, कला एवं साहित्य की नयी रुचियों का उन्मेष, रचनाकारों की उनकी प्रस्तुतियों के प्रति तत्परता तथा परम्परा से साहित्य को जोड़े रहने तथा अनेकरूपों में उनसे मुक्ति की आकांक्षाओं के द्वन्द्वों के बीच साहित्य के सृजन की परम्पराएँ उभरती हैं। साहित्य के इतिहासकार का दायित्व है, इन सबकी छानबीन करते हुए उसकी गतिशीलता का विश्लेषण करके सम्बद्ध यथार्थ को प्रकाश में लाने की चेष्टा करना। साहित्य केवल समाज की संचित् चित्तवृत्ति का प्रतिबिम्ब मात्र नहीं है और इस सिद्धान्त के समर्थक इतिहासकार स्वयं के इतिहास में आदिकालीन तथा रीतिकालीन साहित्यिक धाराओं का समुचित विवेचन नहीं कर सके हैं। साहित्य के इतिहास का स्वरूप भिन्न है। यह स्वरूप है-साहित्यिक परम्परा और उसके परिदृश्यों के बदलाव तथा उनसे सम्बद्ध भावी साहित्यिक विकास की क्रमबद्धता को सामने रखकर अतीत तथा सामयिक वर्तमान का विश्लेषण करते हुए उनके बीच संगति स्थापित करने का। यह संगति स्वयं में नयी परम्परा का बोध तथा भावी निर्माण की स्वयं विधायिका है। साहित्य के इतिहास में आकस्मिकता किसी अजनबीपन की देन नहीं, भविष्य की निर्मात्री परम्परा के बीच उत्पन्न होने वाली वह रचनात्मक चेतना है, जो लोक संगति के साथ जुड़कर पुनः नया इतिहास बनाने के लिए संकल्पबद्ध रहती है। हिन्दी साहित्य का इतिहास इस नयी संकल्पबद्धता से प्रारम्भ होकर पुनः उसी के प्राचीन हो जाने के बाद उसी के बीच से उत्पन्न पुनर्नवता के विश्लेषण से प्रारम्भ समापन एवं पुनः प्रारम्भ क्रम की निरन्तरता के साथ प्रतिबद्ध छानबीन है। हिन्दी साहित्य के अनेक इतिहासकार परस्पर कालखण्डों को नवीन तथा आकस्मिक मानने की पक्षधरता और अडिग साहित्येतिहास की धारा के बीच उसे नया द्वीप जैसा मानते हैं, यह सर्वथा संगत नहीं है।
Be the first to review “Hindi Sahitya Ka Itihas Aur Uski Samasyayen” Cancel reply
Description
हिन्दी साहित्य का इतिहास और उसकी समस्याएँ – सामाजिक बदलाव की परिस्थितियाँ, कला एवं साहित्य की नयी रुचियों का उन्मेष, रचनाकारों की उनकी प्रस्तुतियों के प्रति तत्परता तथा परम्परा से साहित्य को जोड़े रहने तथा अनेकरूपों में उनसे मुक्ति की आकांक्षाओं के द्वन्द्वों के बीच साहित्य के सृजन की परम्पराएँ उभरती हैं। साहित्य के इतिहासकार का दायित्व है, इन सबकी छानबीन करते हुए उसकी गतिशीलता का विश्लेषण करके सम्बद्ध यथार्थ को प्रकाश में लाने की चेष्टा करना। साहित्य केवल समाज की संचित् चित्तवृत्ति का प्रतिबिम्ब मात्र नहीं है और इस सिद्धान्त के समर्थक इतिहासकार स्वयं के इतिहास में आदिकालीन तथा रीतिकालीन साहित्यिक धाराओं का समुचित विवेचन नहीं कर सके हैं। साहित्य के इतिहास का स्वरूप भिन्न है। यह स्वरूप है-साहित्यिक परम्परा और उसके परिदृश्यों के बदलाव तथा उनसे सम्बद्ध भावी साहित्यिक विकास की क्रमबद्धता को सामने रखकर अतीत तथा सामयिक वर्तमान का विश्लेषण करते हुए उनके बीच संगति स्थापित करने का। यह संगति स्वयं में नयी परम्परा का बोध तथा भावी निर्माण की स्वयं विधायिका है। साहित्य के इतिहास में आकस्मिकता किसी अजनबीपन की देन नहीं, भविष्य की निर्मात्री परम्परा के बीच उत्पन्न होने वाली वह रचनात्मक चेतना है, जो लोक संगति के साथ जुड़कर पुनः नया इतिहास बनाने के लिए संकल्पबद्ध रहती है। हिन्दी साहित्य का इतिहास इस नयी संकल्पबद्धता से प्रारम्भ होकर पुनः उसी के प्राचीन हो जाने के बाद उसी के बीच से उत्पन्न पुनर्नवता के विश्लेषण से प्रारम्भ समापन एवं पुनः प्रारम्भ क्रम की निरन्तरता के साथ प्रतिबद्ध छानबीन है। हिन्दी साहित्य के अनेक इतिहासकार परस्पर कालखण्डों को नवीन तथा आकस्मिक मानने की पक्षधरता और अडिग साहित्येतिहास की धारा के बीच उसे नया द्वीप जैसा मानते हैं, यह सर्वथा संगत नहीं है।
About Author
योगेन्द्र प्रताप सिंह -
पूर्व प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय पूर्व निदेशक - पत्राचार पाठ्यक्रम संस्थान, इलाहाबाद विश्वविद्यालय पूर्व अध्यक्ष - हिन्दुस्तानी एकेडमी
आलोचनात्मक साहित्य : हिन्दी वैष्णव भक्ति काव्य में निहित काव्यादर्श और काव्यशास्त्रीय सिद्धान्त; लीला और भक्ति रस; भारतीय काव्यशास्त्र; भारतीय काव्यशास्त्र की रूपरेखा; काव्यांग परिचय; सर्जन और रसास्वादन; भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना; भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अनुशीलन; इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास की समस्याएँ। कबीर की कविता, कबीर, सूर, तुलसी, मानस के रचना शिल्प का विश्लेषण, तुलसी के रचना वैविध्य का विवेचन, तुलसी के रचना सामर्थ्य का विवेचन, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल - निबन्ध संरचना और सैद्धान्तिक चिन्तन ।
सर्जनात्मक साहित्य : बनते गाँव टूटते रिश्ते देवकी का आठवाँ बेटा अन्धी गली की रोशनी; गोस्वामी तुलसीदास की जीवन गाथा (उपन्यास) ।
गीति अर्द्धशती; बीती शती के नाम; उर्वशी; गाधि पुत्र; सागर गाथा तथा अन्य कविताएँ ।
सम्पादन तथा टीका - भक्तिकाल : गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस - सम्पूर्ण; विनय पत्रिका; कवितावली; बालकाण्ड; अयोध्याकाण्ड; सुन्दरकाण्ड; लंकाकाण्ड; उत्तरकाण्ड (पृथक-पृथक भूमिका लेखन तथा सम्पादन) ।
रीतिकाल : करुणाभरण नाटक (लच्छीराम कृत); जोरावर प्रकाश (सूरति मिश्र, रसिकप्रिया की टीका);
कृष्णचन्द्रिका (वीर कवि कृत) ।
संयुक्त लेखन : हिन्दी साहित्य कोश भाग 1 तथा 2, हिन्दी साहित्य - खण्ड-3, काव्यभाषा- भारतीय पक्ष, काव्यभाषा-अलंकार रचना तथा अन्य समस्याएँ; रस-छन्द- अलंकार ।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Hindi Sahitya Ka Itihas Aur Uski Samasyayen” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balabhadra (Vol. 2): Hindi Vyakhya
Save: 20%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.