![](https://padhegaindia.in/wp-content/themes/woodmart/images/lazy.png)
Save: 20%
![](https://padhegaindia.in/wp-content/themes/woodmart/images/lazy.png)
Save: 20%
Chhabbees Kahaniyan (Shivani)
Publisher:
| Author:
| Language:
| Format:
Publisher:
Author:
Language:
Format:
₹395 ₹316
Save: 20%
In stock
Ships within:
In stock
ISBN:
Page Extent:
शिवानी की कहानियाँ बीसवीं सदी के भारतीय राज समाज की, और उसके दौरान देश में आये बदलावों के बीच जनता, ख़ासकर स्त्रियों की स्थिति की एक ऐसी विहंगम चित्रपटी हैं, जिसके अन्तिम छोर को हम बीसवीं सदी के आख़िरी पर्व की तरह पढ़ सकते हैं। इस महागाथा में देश के औपनिवेशिक काल के सामन्ती पात्रों तथा संयुक्त परिवारों के मार्मिक चित्र भी हैं और उस समय के उदात्त अपरिग्रही समाज-सुधारकों तथा शान्तिनिकेतन परिसर से जुड़े विवरण भी, युगों पुरानी रवायतों को जी रहा कुमाऊँ का पारम्परिक सरल ग्रामीण समाज है, तो लखनऊ, कोलकाता तथा दिल्ली जैसे नगरों का अनेक स्तरों पर बँटा, लोकतान्त्रिक राजनीति की पेचीदगियों तथा पारिवारिक विघटन के एकदम नये अनुभवों के बीच जी रहा आधुनिक नागर समाज भी। आज़ादी के बाद के साठ बरसों में देश में उपजे तमाम क़िस्म के नायक, खलनायक, अच्छे और भ्रष्ट राजनेता, विदूषक, अपराधी, वेश्याएँ, दलाल और कुट्टिनियाँ, विदेश जाने को लालायित युवा और उनके पीछे छूटे अभिभावकों की मूक या मुखर व्यथा, सब इन रचनाओं में मौजूद हैं।
(प्रस्तावना से)
शिवानी की कहानियाँ बीसवीं सदी के भारतीय राज समाज की, और उसके दौरान देश में आये बदलावों के बीच जनता, ख़ासकर स्त्रियों की स्थिति की एक ऐसी विहंगम चित्रपटी हैं, जिसके अन्तिम छोर को हम बीसवीं सदी के आख़िरी पर्व की तरह पढ़ सकते हैं। इस महागाथा में देश के औपनिवेशिक काल के सामन्ती पात्रों तथा संयुक्त परिवारों के मार्मिक चित्र भी हैं और उस समय के उदात्त अपरिग्रही समाज-सुधारकों तथा शान्तिनिकेतन परिसर से जुड़े विवरण भी, युगों पुरानी रवायतों को जी रहा कुमाऊँ का पारम्परिक सरल ग्रामीण समाज है, तो लखनऊ, कोलकाता तथा दिल्ली जैसे नगरों का अनेक स्तरों पर बँटा, लोकतान्त्रिक राजनीति की पेचीदगियों तथा पारिवारिक विघटन के एकदम नये अनुभवों के बीच जी रहा आधुनिक नागर समाज भी। आज़ादी के बाद के साठ बरसों में देश में उपजे तमाम क़िस्म के नायक, खलनायक, अच्छे और भ्रष्ट राजनेता, विदूषक, अपराधी, वेश्याएँ, दलाल और कुट्टिनियाँ, विदेश जाने को लालायित युवा और उनके पीछे छूटे अभिभावकों की मूक या मुखर व्यथा, सब इन रचनाओं में मौजूद हैं।
(प्रस्तावना से)
About Author
Reviews
There are no reviews yet.
Reviews
There are no reviews yet.