Bakaree

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
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सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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Hindi
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विदेशी दासता से मुक्ति भारत की गरीब जनता के लिए अपने नेताओं द्वारा छले जाने की शुरुआत थी। यह एक विडम्बना ही थी कि छलने के सबसे ज्यादा तरीके नयी सत्ता ने उससे सीखे जिसने राजनीति में चरित्र का महत्त्व स्थापित करना चाहा था ।

बकरी महज एक व्यंग्य नाटक नहीं, हमारी स्वाधीनता की तलछट का चित्र है – वह तलछट जो समय बीतने के साथ गहरी होती चली गयी है, और अब भी चुनौती दे रही है। नाटक के संगीत-नृत्य में पाठक मग्न रहता है और जटिल प्रतीक सहजता से खुलने लगते हैं। राजनीतिक ढाँचे की पोल-पट्टी को न केवल उधेड़कर दिखाया गया है, बल्कि उस समाज का विकृत चेहरा भी उभारा गया है जो आजादी के दो दशकों के बाद बना था।

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का यह नाटक नाट्य संवेदना की ताजगी और राजनीतिक व्यंग्य की मार के कारण आज के रंगमंच की एक मुख्य उपलब्धि माना गया है। स्कूलों-कॉलेजों, गली-कूचों और गाँवों-कस्बों में खुले आकाश के नीचे लगातार खेला जा रहा यह नाटक हिन्दी का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। इस नाटक ने हिन्दी नाटक और रंगमंच को नयी जमीन दी है।

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Description

विदेशी दासता से मुक्ति भारत की गरीब जनता के लिए अपने नेताओं द्वारा छले जाने की शुरुआत थी। यह एक विडम्बना ही थी कि छलने के सबसे ज्यादा तरीके नयी सत्ता ने उससे सीखे जिसने राजनीति में चरित्र का महत्त्व स्थापित करना चाहा था ।

बकरी महज एक व्यंग्य नाटक नहीं, हमारी स्वाधीनता की तलछट का चित्र है – वह तलछट जो समय बीतने के साथ गहरी होती चली गयी है, और अब भी चुनौती दे रही है। नाटक के संगीत-नृत्य में पाठक मग्न रहता है और जटिल प्रतीक सहजता से खुलने लगते हैं। राजनीतिक ढाँचे की पोल-पट्टी को न केवल उधेड़कर दिखाया गया है, बल्कि उस समाज का विकृत चेहरा भी उभारा गया है जो आजादी के दो दशकों के बाद बना था।

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का यह नाटक नाट्य संवेदना की ताजगी और राजनीतिक व्यंग्य की मार के कारण आज के रंगमंच की एक मुख्य उपलब्धि माना गया है। स्कूलों-कॉलेजों, गली-कूचों और गाँवों-कस्बों में खुले आकाश के नीचे लगातार खेला जा रहा यह नाटक हिन्दी का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। इस नाटक ने हिन्दी नाटक और रंगमंच को नयी जमीन दी है।

About Author

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना - जन्म : उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला में कस्बे से सटे गाँव पिकौरा में, सन् 1927 में। शिक्षा : बस्ती, बनारस और इलाहाबाद में। इलाहाबाद से 1949 में एम.ए. किया। कार्य क्षेत्र : कुछ समय स्कूल मास्टरी, पाँच वर्ष तक क्लर्की की। कुछ वर्ष दिल्ली में आकाशवाणी के समाचार विभाग में बिताए, कुछ और आकाशवाणी के अन्य केंद्रों में उत्पादन में सहायक (असिस्टेंट प्रोड्यूसर ) रहे। 1963 से 1982 तक 'दिनमान' साप्ताहिक में संपादन विभाग में रहे। 1982 से जीवनपर्यन्त सितंबर 1983 तक बच्चों की पत्रिका 'पराग' के संपादक रहे। पुस्तकें : कविता संग्रह : काठ की घंटियाँ, बाँस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, जंगल का दर्द, खूँटियों पर टँगे लोग, कोई मेरे साथ चले और असंकलित कविताएँ। (किसी भी स्वतंत्र संकलन में असंकलित और अनूदित ये सभी कविताएँ ग्रंथावली के पाँचवें खंड में संकलित हैं। ग्रंथावली के प्रकाशन के साथ ही इन सभी कविताओं को 'धूप की लपेट' शीर्षक -संकलन में प्रकाशित किया गया।) उपन्यास : सोया हुआ जल, पागल कुत्तों का मसीहा, सूने चौखटे । कहानी संग्रह : क्षितिज के पार, बदला हुआ कोण, पराजय का क्षण (सर्वेश्वरजी के जीवनकाल में कच्ची सड़क और अंधेरे पर अंधेरा शीर्षक से दो संग्रह प्रकाशित हुए थे। कई अप्रकाशित कहानियाँ उपलब्ध होने पर पूर्वोक्त तीन शीर्षकों से सभी कहानियाँ तीन पुस्तकों में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित) । नाटक : बकरी, अब गरीबी हटाओ, लड़ाई, हवालात (एकांकी); होरी धूम मच्यो री (छंद-नृत्य नाटिकाएँ), पीली पत्तियाँ (रेडियो रूपक)। बाल नाटक : लाख की नाक, भौं-भौं खौं खौं, हाथी की पौं, अनाप शनाप, बुद्ध की करुणा, सत्यवादी गोखले । बाल कविताएँ : बतूता का जूता, मँहगू की टाई, बिल्ली के बच्चे, नन्हा ध्रुवतारा। बाल कथाएँ: अपना दाना। यात्रा संस्मरण : कुछ रंग कुछ गंध। पत्रकारिता: चरचे और चरखे। अन्य प्रकाशन : तीसरा सप्तक (सम्मिलित कवि), आयाम (सम्मिलित कवि), हिंदी काव्य संग्रह (सम्मिलित कवि), हिंदी एकांकी (सम्मिलित नाटककार), काठ की घंटियाँ (गद्य-पद्य संग्रह), कविताएँ-1, कविताएँ-2, (शुरुआती चार कविता संग्रहों की कविताएँ), प्रतिनिधि कविताएँ, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना संपूर्ण गद्य रचनाएँ (चार खंड), सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ग्रंथावली (नौ खंड) और कई भाषाओं के नाटकों के लिए गीतों की रचना । विविध विधाओं के अन्य अनेकों प्रतिनिधि संग्रहों में रचनाएँ संकलित। संपादन : शमशेर, अंधेरों का हिसाब, नेपाली कविताएँ और रक्तबीज। अनुवाद : विश्व की विभिन्न भाषाओं की कविताओं का अनुवाद किया। कुछ देशी-विदेशी नाटकों के गीतों का और इवो आंद्रिच के उपन्यास 'अनीका का जमाना' और बोरिस पास्तर्नाक के उपन्यास ‘डॉ. जिवागो' का संक्षिप्त अनुवाद। ये सभी अनुवाद ग्रंथावली के पाँचवें खंड में संकलित हैं। पुरस्कार : खूँटियों पर टंगे लोग' कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से (मरणोपरांत) सम्मानित । निधन : 23 सितंबर, 1983 को नई दिल्ली में

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