Sadiyon Ke Par

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
पी.पी. श्रीवास्तव 'रिंद' , सम्पादन : प्रो. अख़्तरुल वासे मोईन शादाब
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
पी.पी. श्रीवास्तव 'रिंद' , सम्पादन : प्रो. अख़्तरुल वासे मोईन शादाब
Language:
Hindi
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Hardback

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रिंद’ साहब के शेर भाव जगत की जटिलताओं और अनुभव की बहुरूपता का एक संगम पेश करते हैं। बीच-बीच में कहीं उनका समय भी अपना सिर उठाकर खड़ा हो जाता है और कहीं सामाजिक विद्रूपता भी कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है । उनकी शायरी को न तो केवल अन्तर्मन की शायरी कहा जा सकता है और न केवल ज़ालिम ज़माने के अनुभवों पर आधारित शायरी कहा जा सकता है दरअसल उसकी विविधता उसकी विशेषता है। उनकी शायरी उर्दू ग़ज़ल की एक बुनियादी माँग सांकेतिकता और बिम्बात्मकता पर पूरा ध्यान देती है ।

– प्रो. असग़र वजाहत

मेरी उत्कट इच्छा थी कि आदरणीय ‘रिंद’ की शायरी का हिन्दी लिप्यन्तरण हो । गाहे-बगाहे मैंने उनको अपनी यह इच्छा ज़ाहिर भी की। उनकी शायरी सहज रूप से न केवल प्रभावित करती है, अपितु श्रोताओं के सीधे दिल में उतर जाती है। उनका निश्छल व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों सहज रूप से आकर्षित करते हैं । ‘रिंद’ की शायरी में बिम्बात्मकता और व्यंजना देखते ही बनती है । सम्बन्धित शब्दों का प्रयोग किये बिना ही अपनी बात कह देना मामूली हुनर नहीं है। एक परिपक्व शायर ही इस अन्दाज़ से अपनी बात कह सकता है।

– विज्ञान व्रत

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Description

रिंद’ साहब के शेर भाव जगत की जटिलताओं और अनुभव की बहुरूपता का एक संगम पेश करते हैं। बीच-बीच में कहीं उनका समय भी अपना सिर उठाकर खड़ा हो जाता है और कहीं सामाजिक विद्रूपता भी कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है । उनकी शायरी को न तो केवल अन्तर्मन की शायरी कहा जा सकता है और न केवल ज़ालिम ज़माने के अनुभवों पर आधारित शायरी कहा जा सकता है दरअसल उसकी विविधता उसकी विशेषता है। उनकी शायरी उर्दू ग़ज़ल की एक बुनियादी माँग सांकेतिकता और बिम्बात्मकता पर पूरा ध्यान देती है ।

– प्रो. असग़र वजाहत

मेरी उत्कट इच्छा थी कि आदरणीय ‘रिंद’ की शायरी का हिन्दी लिप्यन्तरण हो । गाहे-बगाहे मैंने उनको अपनी यह इच्छा ज़ाहिर भी की। उनकी शायरी सहज रूप से न केवल प्रभावित करती है, अपितु श्रोताओं के सीधे दिल में उतर जाती है। उनका निश्छल व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों सहज रूप से आकर्षित करते हैं । ‘रिंद’ की शायरी में बिम्बात्मकता और व्यंजना देखते ही बनती है । सम्बन्धित शब्दों का प्रयोग किये बिना ही अपनी बात कह देना मामूली हुनर नहीं है। एक परिपक्व शायर ही इस अन्दाज़ से अपनी बात कह सकता है।

– विज्ञान व्रत

About Author

पी.पी. श्रीवास्तव 'रिंद जन्म : 12 अक्तूबर 1931 (वास्तविक ), 15 जून 1933 (सरकारी दस्तावेज़ों में)। मूल निवास स्थान : फतेहगढ़ (उ.प्र.) । प्रकाशित पुस्तकें : ग़ज़ल संग्रह : रेगज़ार, रंग-ए-संग, गुल रंग, शह-ए-अहसास, शजर-शजर छाँव, आसमाँ के बगैर, तनाबें धूप की, जागती तनहाइयाँ, आवारा लम्हे, इमसाल, तिनका-तिनका फ़िक्र, ज़र्व-ए-अना, वुझते लम्हों का धुआँ, क़न्दील अभी रौशन है, इरतिआश-ए-फ़िक्र, रेत दरिया और सराब, उतरती धूप की परछाइयाँ (चयनित ग़ज़लों का संकलन) । सम्पादित कार्य : धूप का मुसाफ़िर, गर्द में अटे आईने (लेख संकलन ) । साहित्य आलेख : रिंद सागरी-धूप का मुसाफ़िर, गर्द में अटे आईने, इरतिआश-ए-फ़िक्र । पुरस्कृत ग़ज़ल संग्रह : गुल रंग (1974), शह-ए-अहसास (1981), शजर- शजर छाँव (1992), तिनका-तिनका फ़िक्र (उ. प्र. उर्दू अकादमी), तनायें धूप की (2003), आवारा लम्हे (2007), बुझते लम्हों का धुआँ (दिल्ली उर्दू अकादमी), जब-ए-अना (दिल्ली साहित्य सोसाइटी, दिल्ली) । पुरस्कार और सम्मान : अमीर खुसरो अवार्ड, उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, लखनऊ; इम्तियाजे मीर, लखनऊ; श्रमिक संघ अवार्ड, नोएडा; साहित्य सृजन अवार्ड, नोएडा; दिल्ली उर्दू अकादमी अवार्ड, दिल्ली; तहज़ीबे ग़ज़ल अवार्ड, दिल्ली; नवरतन अवार्ड, नोएडा: निराला सच्चाई अवार्ड, नोएडा: अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति सम्मान, गाज़ियाबाद: अंजुमन तामीर-ए-उर्दू अवार्ड, दिल्ली। T.: 9711422058 ई-मेल : rind.srivastava@gmail.com

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