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Rukmini -Haran Aur Anya Prem Kavitayen
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अम्बर पाण्डेय
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अम्बर पाण्डेय
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹225 ₹158
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SKU
9789357759502
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
128
रुक्मिणी-हरण और अन्य प्रेम कविताएँ पढ़ना प्रेम के अरण्य में प्रवेश करना है। प्रेम का अरण्य ही हो सकता है, शहर नहीं। प्रेम, जैसा कि ये कविताएँ बार-बार इशारा करती हैं, शहर में अरण्य की तरह फैलता है। इन कविताओं के प्रेम अरण्य में अन्धकार है और उजाला भी, दुर्गा, शिव हैं और राधा-कृष्ण भी, गोधूलि वेला है और राग केदार के दोनों मध्यम भी । शुद्ध और तीव्र चतुष्पंक्तिक विज्ञापन भी हैं, हवाई जहाज़ों से गिरती राख भी। इन कविताओं के नायक की मातृभाषा आँखों में आँखें देकर देखना है। वह इसी भाषा से सारा जीवन अपना काम चला लेता अगर उसे ‘लिखनी न पड़तीं’ ये कविताएँ। इन कविताओं का नायक जितना एक चरित्र है, आलम्बन विभाव है उतना ही एक कवि भी है। एक का काम दूसरे के वग़ैर नहीं चलता। नायक हुए बगैर कवि का काम नहीं चलता और कवि हुए बगैर नायक पूरा नहीं होता। अम्बर पाण्डेय (श्री प्रियंकाकान्त) की ये कविताएँ हमें यह याद दिलाती हैं कि गहरे से गहरे प्रेम में ऐसा कुछ छूट जाता है जिसे केवल और केवल कविता पूरा कर सकती है। कविता प्रेम की पूरक नहीं है लेकिन उसके बगैर प्रेम भी खुद को पा नहीं पाता। मानो कविता के लहरदार आईने में प्रेम अपना चेहरा देखकर उल्लसित होता हो। फ्रांसीसी कवि गिलविक ने यह यूँ ही नहीं कहा था कि जब तक कविता ने प्रेम का आविष्कार नहीं किया था, मनुष्य प्रेम नहीं करता था। अम्बर पाण्डेय का यह नया संग्रह एक हाथ से कवि अम्बर को थामे है और उसका दूसरा हाथ प्रेमी अम्बर पाण्डेय यानी ‘श्री प्रियंकाकान्त’ के हाथ में है। उसका एक चेहरा कवि को देख रहा है, दूसरे से वह ‘श्री प्रियंकाकान्त- अम्बरगीरी संवाद’ पर ध्यान लगाये है।
कहीं मैंने यह कह तो नहीं दिया कि ये कविताएँ प्रेम में डूबे कवि की और कविता में डूबे प्रेमी की नाचती हुई, गाती हुई और समय-समय पर चुप रहती हुई इबारतें हैं।
– उदयन वाजपेयी
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Description
रुक्मिणी-हरण और अन्य प्रेम कविताएँ पढ़ना प्रेम के अरण्य में प्रवेश करना है। प्रेम का अरण्य ही हो सकता है, शहर नहीं। प्रेम, जैसा कि ये कविताएँ बार-बार इशारा करती हैं, शहर में अरण्य की तरह फैलता है। इन कविताओं के प्रेम अरण्य में अन्धकार है और उजाला भी, दुर्गा, शिव हैं और राधा-कृष्ण भी, गोधूलि वेला है और राग केदार के दोनों मध्यम भी । शुद्ध और तीव्र चतुष्पंक्तिक विज्ञापन भी हैं, हवाई जहाज़ों से गिरती राख भी। इन कविताओं के नायक की मातृभाषा आँखों में आँखें देकर देखना है। वह इसी भाषा से सारा जीवन अपना काम चला लेता अगर उसे ‘लिखनी न पड़तीं’ ये कविताएँ। इन कविताओं का नायक जितना एक चरित्र है, आलम्बन विभाव है उतना ही एक कवि भी है। एक का काम दूसरे के वग़ैर नहीं चलता। नायक हुए बगैर कवि का काम नहीं चलता और कवि हुए बगैर नायक पूरा नहीं होता। अम्बर पाण्डेय (श्री प्रियंकाकान्त) की ये कविताएँ हमें यह याद दिलाती हैं कि गहरे से गहरे प्रेम में ऐसा कुछ छूट जाता है जिसे केवल और केवल कविता पूरा कर सकती है। कविता प्रेम की पूरक नहीं है लेकिन उसके बगैर प्रेम भी खुद को पा नहीं पाता। मानो कविता के लहरदार आईने में प्रेम अपना चेहरा देखकर उल्लसित होता हो। फ्रांसीसी कवि गिलविक ने यह यूँ ही नहीं कहा था कि जब तक कविता ने प्रेम का आविष्कार नहीं किया था, मनुष्य प्रेम नहीं करता था। अम्बर पाण्डेय का यह नया संग्रह एक हाथ से कवि अम्बर को थामे है और उसका दूसरा हाथ प्रेमी अम्बर पाण्डेय यानी ‘श्री प्रियंकाकान्त’ के हाथ में है। उसका एक चेहरा कवि को देख रहा है, दूसरे से वह ‘श्री प्रियंकाकान्त- अम्बरगीरी संवाद’ पर ध्यान लगाये है।
कहीं मैंने यह कह तो नहीं दिया कि ये कविताएँ प्रेम में डूबे कवि की और कविता में डूबे प्रेमी की नाचती हुई, गाती हुई और समय-समय पर चुप रहती हुई इबारतें हैं।
– उदयन वाजपेयी
About Author
अम्बर पाण्डेय हिन्दी और अंग्रेज़ी में कविता तथा गद्य लिखते हैं। उनकी पहली पुस्तक कोलाहल की कविताएँ है जिस पर उन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। वे फ्रांसीसी और जर्मन भाषा से हिन्दी एवं अंग्रेज़ी में अनुवाद करते हैं।
ईमेल : ammberpandey@gmail.com
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