Ramgarh Mein Hatya 245

Save: 30%

Back to products
Rati Ka Kangan 158

Save: 30%

Ramgarh Mein Hatya

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
विभूति नारायण राय
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
विभूति नारायण राय
Language:
Hindi
Format:
Hardback

209

Save: 30%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789357750899 Category
Category:
Page Extent:
102

विभूति नारायण राय हिन्दी के एक ऐसे उपन्यासकार हैं जिनका लेखन भाषा, शिल्प और कथ्य के स्तर पर भिन्न तो होता ही है, एक विशिष्ट ऊँचाई भी लिये हुए होता है । यही कारण है कि इनकी हर कृति में पाठक को एक नये आस्वाद से परिचय होता है; और इस बात की एक सशक्त मिसाल पेश करता है उनका यह नया उपन्यास रामगढ़ में हत्या |

यह जासूसी रंग में रँगा ऐसा उपन्यास है जो पाठकीय कौतुकता में ऐसी गहराई लिये चलता है। कि पढ़ने वाला संवेदनात्मक संरचना में इस तरह बँध जाता है कि घटनाओं की प्रक्रियाओं की सनसनाहट से चाहकर भी मुक्त होना उसके लिए सम्भव नहीं हो पाता ।

इस उपन्यास के मूल में प्रेम है। प्रेम जिसमें एक व्यक्ति की हत्या होती है लेकिन जिसकी हत्या होती है, वह प्रेम का हिस्सा नहीं है । वह एक नौकरानी है, जिसकी गलती से हत्या हो जाती है यानी जिसे मारना लक्ष्य था, वह नहीं मारा जाता बल्कि वह मारा जाता है जिसका इस प्रेम-कथा से कोई सम्बन्ध नहीं। इसी की गहन पड़ताल में अनेक आयामों से उलझती-सुलझती हुई गुज़रती है यह कृति ।

यूँ तो यह एक त्रिकोण प्रेम पर आधारित उपन्यास है, जिसके पात्र मिसेज़ मेहरोत्रा, रतन और रानो जी हैं लेकिन रिटायर्ड पुलिस अधिकारी शर्मा का इस कथा में प्रवेश घटनाओं में नाटकीय भेद के कई सूत्र प्रदान करता है, जिससे कथा कई छोरों की खोहों से गुज़रते हुए भी निष्कर्ष-परिधि से तनिक भी अतिरिक्त कहन लिये नहीं दीखती, ऐसी भाषिक संरचना है इसकी । इस उपन्यास का एक ख़ास ऐंगल यह है कि इसमें जो प्रतिशोध है, वह स्त्री और पुरुष के बीच नहीं बल्कि दो स्त्रियों के बीच है जो प्रेमी की मृत्यु के बाद अपने चरम पर पहुँचता है, लेकिन दुःखद कि वहाँ अंजाम अधूरा होते हुए भी पूरा होने का बोध लिये घटित होता है। और यही इस उपन्यास का वह ‘तन्त’ है जो एक बार फिर पढ़ने को आकर्षित करता है और यह आकर्षण अन्य प्रेम-कथाओं से इस उपन्यास को अलग ही नहीं करता, कहन और गहन में एक अलग दर्जा भी देता है।

हिन्दी साहित्य में जासूसी उपन्यासों की संख्या बहुत ही कम है या कहें कि इसकी कोई सुदृढ़ परम्परा ही नहीं रही, तो गलत नहीं होगा। इस लिहाज़ से यह उपन्यास न सिर्फ़ इस कमी को पूरा करता है, बल्कि जासूसी उपन्यास-लेखन की उस ज़मीन को उर्वर करता है जिस पर कभी देवकीनन्दन खत्री और श्रीलाल शुक्ल जैसे लेखकों ने नींव डाली थी। गौरतलब है कि हिन्दी समाज में एक रोचक प्रवृत्ति है कि कुछ क्षेत्र मुख्यधारा के लेखकों के लिए वर्जित करार दे दिये गये हैं। मसलन बच्चों के लिए लिखना, जासूसी लेखन या विज्ञान कथाएँ रचना कमतर माना जाता है। इन क्षेत्रों में काम करने वाले गम्भीरता से नहीं लिये जाते । इनके बरक्स अंग्रेजी समेत दूसरी विश्व भाषाओं के बड़े लेखकों ने इन क्षेत्रों में भी महत्त्वपूर्ण लेखन किया है। विभूति नारायण राय का यह जासूसी उपन्यास इस मिथ को तोड़ता है।

निस्सन्देह, रामगढ़ में हत्या प्रेम में ‘वृत्ति’ की वह कृति है जो कभी-कभी ही लिखी जाती है और जब लिखी जाती है, वर्षों याद की जाती है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Ramgarh Mein Hatya”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

विभूति नारायण राय हिन्दी के एक ऐसे उपन्यासकार हैं जिनका लेखन भाषा, शिल्प और कथ्य के स्तर पर भिन्न तो होता ही है, एक विशिष्ट ऊँचाई भी लिये हुए होता है । यही कारण है कि इनकी हर कृति में पाठक को एक नये आस्वाद से परिचय होता है; और इस बात की एक सशक्त मिसाल पेश करता है उनका यह नया उपन्यास रामगढ़ में हत्या |

यह जासूसी रंग में रँगा ऐसा उपन्यास है जो पाठकीय कौतुकता में ऐसी गहराई लिये चलता है। कि पढ़ने वाला संवेदनात्मक संरचना में इस तरह बँध जाता है कि घटनाओं की प्रक्रियाओं की सनसनाहट से चाहकर भी मुक्त होना उसके लिए सम्भव नहीं हो पाता ।

इस उपन्यास के मूल में प्रेम है। प्रेम जिसमें एक व्यक्ति की हत्या होती है लेकिन जिसकी हत्या होती है, वह प्रेम का हिस्सा नहीं है । वह एक नौकरानी है, जिसकी गलती से हत्या हो जाती है यानी जिसे मारना लक्ष्य था, वह नहीं मारा जाता बल्कि वह मारा जाता है जिसका इस प्रेम-कथा से कोई सम्बन्ध नहीं। इसी की गहन पड़ताल में अनेक आयामों से उलझती-सुलझती हुई गुज़रती है यह कृति ।

यूँ तो यह एक त्रिकोण प्रेम पर आधारित उपन्यास है, जिसके पात्र मिसेज़ मेहरोत्रा, रतन और रानो जी हैं लेकिन रिटायर्ड पुलिस अधिकारी शर्मा का इस कथा में प्रवेश घटनाओं में नाटकीय भेद के कई सूत्र प्रदान करता है, जिससे कथा कई छोरों की खोहों से गुज़रते हुए भी निष्कर्ष-परिधि से तनिक भी अतिरिक्त कहन लिये नहीं दीखती, ऐसी भाषिक संरचना है इसकी । इस उपन्यास का एक ख़ास ऐंगल यह है कि इसमें जो प्रतिशोध है, वह स्त्री और पुरुष के बीच नहीं बल्कि दो स्त्रियों के बीच है जो प्रेमी की मृत्यु के बाद अपने चरम पर पहुँचता है, लेकिन दुःखद कि वहाँ अंजाम अधूरा होते हुए भी पूरा होने का बोध लिये घटित होता है। और यही इस उपन्यास का वह ‘तन्त’ है जो एक बार फिर पढ़ने को आकर्षित करता है और यह आकर्षण अन्य प्रेम-कथाओं से इस उपन्यास को अलग ही नहीं करता, कहन और गहन में एक अलग दर्जा भी देता है।

हिन्दी साहित्य में जासूसी उपन्यासों की संख्या बहुत ही कम है या कहें कि इसकी कोई सुदृढ़ परम्परा ही नहीं रही, तो गलत नहीं होगा। इस लिहाज़ से यह उपन्यास न सिर्फ़ इस कमी को पूरा करता है, बल्कि जासूसी उपन्यास-लेखन की उस ज़मीन को उर्वर करता है जिस पर कभी देवकीनन्दन खत्री और श्रीलाल शुक्ल जैसे लेखकों ने नींव डाली थी। गौरतलब है कि हिन्दी समाज में एक रोचक प्रवृत्ति है कि कुछ क्षेत्र मुख्यधारा के लेखकों के लिए वर्जित करार दे दिये गये हैं। मसलन बच्चों के लिए लिखना, जासूसी लेखन या विज्ञान कथाएँ रचना कमतर माना जाता है। इन क्षेत्रों में काम करने वाले गम्भीरता से नहीं लिये जाते । इनके बरक्स अंग्रेजी समेत दूसरी विश्व भाषाओं के बड़े लेखकों ने इन क्षेत्रों में भी महत्त्वपूर्ण लेखन किया है। विभूति नारायण राय का यह जासूसी उपन्यास इस मिथ को तोड़ता है।

निस्सन्देह, रामगढ़ में हत्या प्रेम में ‘वृत्ति’ की वह कृति है जो कभी-कभी ही लिखी जाती है और जब लिखी जाती है, वर्षों याद की जाती है।

About Author

विभूति नारायण राय - जन्म : 28 नवम्बर 1950 शिक्षा : मुख्य रूप से वनारस और इलाहावाद में। 1971 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. करने के बाद आजीविका के लिए विभिन्न नौकरियाँ कुछ साल अध्यापन के वाद 1975 में भारतीय पुलिस सेवा के लिए चयनित। तीन दशकों से अधिक पुलिस की सेवा के बाद पाँच वर्ष तक महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति रहे और जनवरी 2014 में अन्तिम सेवानिवृत्ति के साथ अव नोएडा में रहते हैं। फ़िलहाल कुछ पत्र-पत्रिकाओं में कॉलमों के साथ स्वतन्त्र रचनात्मक लेखन । प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास : घर, शहर में कर्फ्यू, क़िस्सा लोकतन्त्र, तबादला, प्रेम की भूतकथा, रामगढ़ में हत्या; व्यंग्य : एक छात्र नेता का रोज़नामचा; लेख-संकलन : साम्प्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस, रणभूमि में भाषा, फ़्रेंस के उस पार, किसे चाहिए सभ्य पुलिस, पाकिस्तान में भगत सिंह, अन्धी सुरंग में काश्मीर, राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले; रिपोर्ताज : हाशिमपुरा 22 मई । सम्पादन : लगभग दो दशकों तक हिन्दी की महत्त्वपूर्ण पत्रिका 'वर्तमान साहित्य' और पुस्तक कथा साहित्य के सौ बरस (बीसवीं शताब्दी के कथा साहित्य का लेखा-जोखा) का सम्पादन ।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Ramgarh Mein Hatya”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED