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Rajasthan Ki Rajneeti : Samantvad Se Jativad Ke Bhanvar Mein
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Ram Singh Faraar
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Ram Singh Faraar
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
राकेश तिवारी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
राकेश तिवारी
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹495 ₹347
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1-4 Days
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ISBN:
SKU
9789355189189
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
240
पूरब में मुँह सामने पहाड़ होने से सर्दियों में साढ़े नौ से पहले धूप नहीं आती। सुबह ग्यारह बजने को हैं। चटक धूप है। रजनी ने गरम कपड़े और रज़ाइयाँ जहाँ-तहाँ फैलाकर खुद को धूप के हवाले कर दिया। दिन वैसा ही है रेंगता हुआ, जैसे हफ्ते के बाक़ी दिन होते हैं कैरना में। ऊब और सुस्ती भरा। जोगी मुहल्ले में दाल-भात की गन्ध के साथ वही चिरपरिचित दुर्गन्ध फैली थी। कौन जाने, खजैले मनुष्यों की थी कि चूहों के पेशाब या कुत्ते-बिल्लियों के गू की। मुहल्ले की औरतें कहती हैं, लकड़ियाँ जलने की होगी। वे दुर्गन्ध की अभ्यस्त हो गयी हैं जो भी हो, यह हवा में थी इसलिए मुहब्बत करने वालों के बीच भी मौजूद रहती। लोग कहते हैं, यह जोगी मुहल्ले की साँसों में समा गयी है इसलिए यहाँ के लड़के-लड़कियों की मुहब्बत कामयाब नहीं होती।
ठण्ड से ठिठुरे लोग छत व आँगन में बैठे हैं और गुनगुनी राहत में कोई व्यवधान नहीं चाहते। हे भगवान, सूरज ढलने तक यह ऊँघ और सुस्ती बनी रहे। पीठ और पुट्ठों पर धूप की सेंक लगती रहे। रात के लिए भी हड्डियों में धूप घुसेड़ लो रे बबा।
लेकिन ऐसा होता नहीं। सूरज अपनी गरमी लेकर चम्पत हुआ नहीं कि ठण्ड ने हड्डियाँ दबोचीं । यहाँ के बुड्ढे चेहरे को भी घाम तपाते हैं। मुहल्ले के किसी साठ पार बुड़ज्यू (बूढ़े) के शब्दकोश में ‘टैनिंग’ नहीं है। उसके साथ ‘फैनिंग’ लगाकर खिल्ली उड़ाते हुए कहते हैं-हुँह, कुच्छ नहीं होता टैनिंग-फैनिंग | ख़ाली की बात हुई । क्रीम बेचनी हुई सालों को।
सनस्क्रीन लोशन उनके लिए क्रीम हुई। मुँह में पोतने की हर चीज़ क्रीम। जोगी मुहल्ले के बुड्ढों को अब समझ आ रहा है कि धन्धा इस संसार की धुरी है।
पुराने गानों का शौक़ीन और इश्क़ में नाकाम रजनी का भाई धूप ‘ में लेटा ब्ल्यूटुथ स्पीकर लगाकर गाने सुन रहा है – सब कुछ लुटा के होश में आये क्या किया…
– इसी उपन्यास से
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Description
पूरब में मुँह सामने पहाड़ होने से सर्दियों में साढ़े नौ से पहले धूप नहीं आती। सुबह ग्यारह बजने को हैं। चटक धूप है। रजनी ने गरम कपड़े और रज़ाइयाँ जहाँ-तहाँ फैलाकर खुद को धूप के हवाले कर दिया। दिन वैसा ही है रेंगता हुआ, जैसे हफ्ते के बाक़ी दिन होते हैं कैरना में। ऊब और सुस्ती भरा। जोगी मुहल्ले में दाल-भात की गन्ध के साथ वही चिरपरिचित दुर्गन्ध फैली थी। कौन जाने, खजैले मनुष्यों की थी कि चूहों के पेशाब या कुत्ते-बिल्लियों के गू की। मुहल्ले की औरतें कहती हैं, लकड़ियाँ जलने की होगी। वे दुर्गन्ध की अभ्यस्त हो गयी हैं जो भी हो, यह हवा में थी इसलिए मुहब्बत करने वालों के बीच भी मौजूद रहती। लोग कहते हैं, यह जोगी मुहल्ले की साँसों में समा गयी है इसलिए यहाँ के लड़के-लड़कियों की मुहब्बत कामयाब नहीं होती।
ठण्ड से ठिठुरे लोग छत व आँगन में बैठे हैं और गुनगुनी राहत में कोई व्यवधान नहीं चाहते। हे भगवान, सूरज ढलने तक यह ऊँघ और सुस्ती बनी रहे। पीठ और पुट्ठों पर धूप की सेंक लगती रहे। रात के लिए भी हड्डियों में धूप घुसेड़ लो रे बबा।
लेकिन ऐसा होता नहीं। सूरज अपनी गरमी लेकर चम्पत हुआ नहीं कि ठण्ड ने हड्डियाँ दबोचीं । यहाँ के बुड्ढे चेहरे को भी घाम तपाते हैं। मुहल्ले के किसी साठ पार बुड़ज्यू (बूढ़े) के शब्दकोश में ‘टैनिंग’ नहीं है। उसके साथ ‘फैनिंग’ लगाकर खिल्ली उड़ाते हुए कहते हैं-हुँह, कुच्छ नहीं होता टैनिंग-फैनिंग | ख़ाली की बात हुई । क्रीम बेचनी हुई सालों को।
सनस्क्रीन लोशन उनके लिए क्रीम हुई। मुँह में पोतने की हर चीज़ क्रीम। जोगी मुहल्ले के बुड्ढों को अब समझ आ रहा है कि धन्धा इस संसार की धुरी है।
पुराने गानों का शौक़ीन और इश्क़ में नाकाम रजनी का भाई धूप ‘ में लेटा ब्ल्यूटुथ स्पीकर लगाकर गाने सुन रहा है – सब कुछ लुटा के होश में आये क्या किया…
– इसी उपन्यास से
About Author
राकेश तिवारी की कहानियाँ पिछले कई दशकों से हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं, जिनमें सारिका, धर्मयुग, रविवार, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, हंस, कथादेश, पाखी, नया ज्ञानोदय, इन्द्रप्रस्थ भारती, आजकल, बहुवचन और परिकथा प्रमुख हैं। कुछ कहानियों का दूसरी भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है, फ़िल्म बनी है और नाट्य प्रस्तुतियाँ हुई हैं।
पेशे से पत्रकार राकेश तिवारी पत्रकारिता की लम्बी पारी के दौरान सबसे अधिक तीस वर्ष इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिन्दी दैनिक जनसत्ता में रहे, जहाँ उन्होंने उपसम्पादक से लेकर विशेष संवाददाता तक विभिन्न पदों पर कार्य किया। छिटपुट तौर पर पत्रकारिता पढ़ाना, अनुवाद और पटकथा लेखन भी किया है। कुछेक पुरस्कार और सम्मान भी उनके खाते में हैं।
कृतियाँ : नवीनतम उपन्यास राम सिंह फ़रार के अलावा फसक (उपन्यास), उसने भी देखा, मुकुटधारी चूहा और चिट्टी ज़नानियाँ (कहानी-संग्रह), पत्रकारिता की खुरदरी ज़मीन (पत्रकारिता), तोता उड़ (बाल उपन्यास), थोड़ा निकला भी करो (बालकथा-संग्रह) । उत्तराखण्ड के गरमपानी (नैनीताल) में जन्म, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल से शिक्षा और दिल्ली में स्थायी निवास। वर्तमान में स्वतन्त्र लेखन और पत्रकारिता।
पता : ए-9, इंडियन एक्सप्रेस अपार्टमेंट, मयूरकुंज, मयूर विहार-1 एक्सटेंशन, दिल्ली-110096
मो. : 9811807279
ईमेल : rtiwari.express@gmail.com
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