Prayojanmoolak Hindi Aur Patrakarita

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
डॉ. दिनेश प्रसाद सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
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डॉ. दिनेश प्रसाद सिंह
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Hindi
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भाषा की समस्या एक वास्तविक सामाजिक समस्या है, जो किसी-न-किसी रूप में सामाजिक व्यवहार, सांस्कृतिक चेतना और शैक्षिक ढाँचे आदि की विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं से जुड़ी होती है। ये सभी समस्याएँ समुदाय की मानसिक स्थिति और उन विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं से जुड़ी रहती हैं, जिनको पारस्परिक आदान-प्रदान के लिए उसके सदस्यों को विभिन्न सामाजिक सन्दर्भों में निभाना होता है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमारे समाज की बौद्धिक चेतना एवं सामाजिक सन्दर्भों में काफ़ी परिवर्तन आया है और इस समय सामान्य व्यक्ति उपयुक्त शिक्षा-प्रणाली के अभाव में एक तनाव का अनुभव कर रहा है। हमारे सामाजिक जीवन के कई क्षेत्रों में अंग्रेज़ी का व्यवहार धीरे-धीरे हट रहा है। इसलिए अंग्रेज़ी तथा अन्य भारतीय प्रादेशिक भाषाओं के सम्बन्धों के लिए आयाम और हिन्दी- व्यवहार के नये सन्दर्भ उभर रहे हैं। इसलिए एक गुरुतर दायित्यबोध के साथ हमारा यह कर्त्तव्य बनता है कि हम एक और व्यापक सम्प्रेषण के रूप में अखिल भारतीय हिन्दी की शैली और उसके भाषापरक प्रभेदक लक्षणों को निर्धारित करें तो दूसरी ओर सामाजिक व्यवहार के उन सीमित क्षेत्रों की भाषा के रूप में उसे विकसित करने का प्रयास करें, जिसमें अब तक अंग्रेज़ी का प्रयोग होता रहा है। इसके साथ ही हिन्दी को संघ की ‘राजभाषा’ के रूप में प्रतिष्ठित करना है और यह तभी सम्भव है, जब ‘सहयोगी’ भाषा के रूप में अहिन्दी भाषी क्षेत्र में इसका व्यापक प्रसार हो । आधुनिक विचारों को व्यक्त करनेवाली भाषा के रूप में हिन्दी को विकसित करने के साथ-साथ इसे भारत की सामासिक संस्कृति का समर्थ संवाहक माध्यम बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा इसे विभिन्न व्यवसायों तथा काम-धन्धों के लिए सेवा-माध्यम के रूप में भी विकसित करना है।

-भूमिका से

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भाषा की समस्या एक वास्तविक सामाजिक समस्या है, जो किसी-न-किसी रूप में सामाजिक व्यवहार, सांस्कृतिक चेतना और शैक्षिक ढाँचे आदि की विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं से जुड़ी होती है। ये सभी समस्याएँ समुदाय की मानसिक स्थिति और उन विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं से जुड़ी रहती हैं, जिनको पारस्परिक आदान-प्रदान के लिए उसके सदस्यों को विभिन्न सामाजिक सन्दर्भों में निभाना होता है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमारे समाज की बौद्धिक चेतना एवं सामाजिक सन्दर्भों में काफ़ी परिवर्तन आया है और इस समय सामान्य व्यक्ति उपयुक्त शिक्षा-प्रणाली के अभाव में एक तनाव का अनुभव कर रहा है। हमारे सामाजिक जीवन के कई क्षेत्रों में अंग्रेज़ी का व्यवहार धीरे-धीरे हट रहा है। इसलिए अंग्रेज़ी तथा अन्य भारतीय प्रादेशिक भाषाओं के सम्बन्धों के लिए आयाम और हिन्दी- व्यवहार के नये सन्दर्भ उभर रहे हैं। इसलिए एक गुरुतर दायित्यबोध के साथ हमारा यह कर्त्तव्य बनता है कि हम एक और व्यापक सम्प्रेषण के रूप में अखिल भारतीय हिन्दी की शैली और उसके भाषापरक प्रभेदक लक्षणों को निर्धारित करें तो दूसरी ओर सामाजिक व्यवहार के उन सीमित क्षेत्रों की भाषा के रूप में उसे विकसित करने का प्रयास करें, जिसमें अब तक अंग्रेज़ी का प्रयोग होता रहा है। इसके साथ ही हिन्दी को संघ की ‘राजभाषा’ के रूप में प्रतिष्ठित करना है और यह तभी सम्भव है, जब ‘सहयोगी’ भाषा के रूप में अहिन्दी भाषी क्षेत्र में इसका व्यापक प्रसार हो । आधुनिक विचारों को व्यक्त करनेवाली भाषा के रूप में हिन्दी को विकसित करने के साथ-साथ इसे भारत की सामासिक संस्कृति का समर्थ संवाहक माध्यम बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा इसे विभिन्न व्यवसायों तथा काम-धन्धों के लिए सेवा-माध्यम के रूप में भी विकसित करना है।

-भूमिका से

About Author

डॉ. दिनेश प्रसाद सिंह जन्म : 2 जनवरी, 1947 ई. पटना जिलान्तर्गत सैदनपुर मसाढ़ी ग्राम में। शिक्षा : एम.ए., पीएच. डी. । समीक्षात्मक पुस्तकें : प्रेमचन्द : विविध आयाम, गोदान : पुनर्मूल्यांकन के बाद, हिन्दी साहित्य का इतिहास, व्यावहारिक हिन्दी और भाषा-संरचना, प्रयोजनमूलक हिन्दी, हिन्दी भाषा व्याकरण और रचना, कामायनी : एक अनुशीलन । सम्पादन : रचना-पाठ, भारती, साहित्य, मध्यकालीन हिन्दी काव्य, ललित निबन्ध, हिन्दी गद्य-पद्य संग्रह (भाग 1 और 2), भारत की श्रेष्ठ कहानियाँ । ललित रचनाएँ : तीस बरस लम्बी सड़क (कहानी); शब्द-सीमा (कविता); ललकार (एकांकी) तथा पटना रेडियो स्टेशन से कई रूपक प्रसारित । सम्पर्क : सैदपुर सुपरिंटेंडेंट क्वार्टर, प्रोफ़ेसर कॉलोनी, राजेन्द्रनगर, पटना-800016 (बिहार)। मोबाइल : 9835633154

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