SalePaperback
Itihas Aur Vichardhara
₹299 ₹209
Save: 30%
Jeewan Ka Rangmanch : Amrish Puri
₹799 ₹559
Save: 30%
Itihas Smriti Akanksha
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
निर्मल वर्मा
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
निर्मल वर्मा
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹125 ₹124
Save: 1%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789352299317
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
80
इतिहास, स्मृति, आकांक्षा निर्मल वर्मा का चिन्तक पक्ष उभारती है। क्या मनुष्य इतिहास के बाहर किसी और समय में रह सकता है ?रहना भी चाहे तो क्या वह स्वतन्त्र है? स्वतन्त्र हो तो भी क्या यह वांछनीय होगा ? क्या यह मनुष्य की उस छवि और अवधारणा का ही अन्त नहीं होगा, जिसे वह इतिहास के चौखटे में जड़ता आया है? इतिहास बोध क्या है ? क्या वह प्रकृति की काल चेतना को खण्डित करके ही पाया जा सकता है? लेकिन उस काल चेतना से स्खलित होकर मनुष्य क्या अपनी नियति का निर्माता हो सकता है?
जिसे हम मनुष्य की चेतना का विकास कहते हैं, वहीं से आत्म विस्मृति का अन्धकार भी शुरू मनुष्य की होता है। यदि मनुष्य की पहचान उस क्षण से होती है जब उसने प्रकृति के काल बोध को खण्डित करते हुए इतिहास में अपनी जगह बनायी थी तो क्या उस प्रकृति के नियमों को नहीं माना जा सकता जिसका काल बोध अब भी उसके भीतर है।
प्रकृति के परिवर्तन चक्र में एक अपरिहार्य नियामकता है तो क्या हम इतिहास में उसी प्रकार नियामक सूत्र नहीं खोज सकते जिनके अनुसार मनुष्य समाज में परिवर्तन होते हैं ? जहाँ इन प्रश्नों को शब्द और स्मृति, कला का जोखिम, ढलान से उतरते हुए पुस्तकों में उन्होंने अलग-अलग प्रसंगों में स्पर्श किया है, वहाँ उन्हें इन तीन व्याख्यानों में एक सूत्रित समग्रता में पिरोने का प्रयास किया है।
आज जब ऐतिहासिक विचारधाराओं के संकट पर सब ओर इतना गहन और मूल स्तर पर पुनर्परीक्षण हो रहा है तब निर्मल वर्मा के यह व्याख्यान एक अतिरिक्त महत्त्व और प्रासंगिकता लेकर सामने आते हैं।
Be the first to review “Itihas Smriti Akanksha” Cancel reply
Description
इतिहास, स्मृति, आकांक्षा निर्मल वर्मा का चिन्तक पक्ष उभारती है। क्या मनुष्य इतिहास के बाहर किसी और समय में रह सकता है ?रहना भी चाहे तो क्या वह स्वतन्त्र है? स्वतन्त्र हो तो भी क्या यह वांछनीय होगा ? क्या यह मनुष्य की उस छवि और अवधारणा का ही अन्त नहीं होगा, जिसे वह इतिहास के चौखटे में जड़ता आया है? इतिहास बोध क्या है ? क्या वह प्रकृति की काल चेतना को खण्डित करके ही पाया जा सकता है? लेकिन उस काल चेतना से स्खलित होकर मनुष्य क्या अपनी नियति का निर्माता हो सकता है?
जिसे हम मनुष्य की चेतना का विकास कहते हैं, वहीं से आत्म विस्मृति का अन्धकार भी शुरू मनुष्य की होता है। यदि मनुष्य की पहचान उस क्षण से होती है जब उसने प्रकृति के काल बोध को खण्डित करते हुए इतिहास में अपनी जगह बनायी थी तो क्या उस प्रकृति के नियमों को नहीं माना जा सकता जिसका काल बोध अब भी उसके भीतर है।
प्रकृति के परिवर्तन चक्र में एक अपरिहार्य नियामकता है तो क्या हम इतिहास में उसी प्रकार नियामक सूत्र नहीं खोज सकते जिनके अनुसार मनुष्य समाज में परिवर्तन होते हैं ? जहाँ इन प्रश्नों को शब्द और स्मृति, कला का जोखिम, ढलान से उतरते हुए पुस्तकों में उन्होंने अलग-अलग प्रसंगों में स्पर्श किया है, वहाँ उन्हें इन तीन व्याख्यानों में एक सूत्रित समग्रता में पिरोने का प्रयास किया है।
आज जब ऐतिहासिक विचारधाराओं के संकट पर सब ओर इतना गहन और मूल स्तर पर पुनर्परीक्षण हो रहा है तब निर्मल वर्मा के यह व्याख्यान एक अतिरिक्त महत्त्व और प्रासंगिकता लेकर सामने आते हैं।
About Author
निर्मल वर्मा
निर्मल वर्मा (1929-2005) भारतीय मनीषा की उस उज्ज्वल परम्परा के प्रतीक पुरुष हैं, जिनके जीवन में कर्म, चिन्तन और आस्था के बीच कोई फाँक नहीं रह जाती। कला का मर्म जीवन का सत्य बन जाता है और आस्था की चुनौती जीवन की कसौटी। ऐसा मनीषी अपने होने की कीमत देता है और माँगता भी। अपने जीवनकाल में गलत समझे जाना उसकी नियति है। और उससे बेदाग उबर आना उसका पुरस्कार। निर्मल वर्मा के हिस्से में भी ये दोनों बखूबी आये ।
स्वतन्त्र भारत की आरम्भिक आधी से अधिक सदी निर्मल वर्मा की लेखकीय उपस्थिति से गरिमांकित रही। वह उन थोड़े से रचनाकारों में थे जिन्होंने संवदेना की व्यक्तिगत स्पेस और उसके जागरूक वैचारिक हस्तक्षेप के बीच एक सुन्दर सन्तुलन का आदर्श प्रस्तुत किया। उनके रचनाकार का सबसे महत्त्वपूर्ण दशक, साठ का दशक, चेकोस्लोवाकिया के विदेश प्रवास में बीता। अपने लेखन में उन्होंने न केवल मनुष्य के दूसरे मनुष्यों के साथ सम्बन्धों की चीर-फाड़ की, वरन उसकी सामाजिक, राजनीतिक भूमिका क्या हो, तेज़ी से बदलते जाते हमारे आधुनिक समय में एक प्राचीन संस्कृति के वाहक के रूप में उसके आदर्शों की पीठिका क्या हो, इन सब प्रश्नों का भी सामना किया।
अपने जीवन काल में निर्मल वर्मा साहित्य के लगभग सभी श्रेष्ठ सम्मानों से समादृत हुए, जिनमें साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1985), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1999), साहित्य अकादेमी महत्तर सदस्यता (2005) उल्लेखनीय हैं। भारत के राष्ट्रपति द्वारा तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण उन्हें सन् 2002 में दिया गया। अक्टूबर 2005 में निधन के समय निर्मल वर्मा भारत सरकार द्वारा औपचारिक रूप से नोबेल पुरस्कार के लिए नामित थे।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Itihas Smriti Akanksha” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balabhadra (Vol. 2): Hindi Vyakhya
Save: 20%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.