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Hindi Sahitya Ka Ateet -1 , 2 ( 2 Vol Set )
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹800 ₹560
Save: 30%
In stock
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1-4 Days
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ISBN:
SKU
9789350726891
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
856
हिन्दी – साहित्य का अतीत उसके वर्तमान की अपेक्षा अधिक समृद्ध है। जितनी देशी भाषाएँ विकसित हुईं उनमें कुछ का आधुनिक या वर्तमान साहित्य पर्याप्त समृद्ध है। वर्तमान हिन्दी साहित्य आधुनिक ऐश्वर्य का गर्व करे तो उसे कुछ देशी भाषाएँ टोक सकती हैं। पर हिन्दी-साहित्य का अतीत जितना सम्पन्न है, उतना किसी देशी भाषा का प्राचीन साहित्य नहीं । हिन्दी-साहित्य के अतीत के आभोग में उसका आदिकाल और मध्यकाल आता है। आदिकाल की समस्त वास्तविक साहित्यिक सामग्री असन्दिग्ध रूप में उस समय की नहीं है।
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केशवदास ओड़छा के इन्द्रजीत के दरबार में रहते थे। उनका काम (जैसा उनके ग्रन्थों से सिद्ध होता है) पुराण बाँचना था, कविता करना था और इन्द्रजीत की वेश्याओं को साहित्य पढ़ाना भी था । केशवदास ने कविप्रिया का निर्माण इन्द्रजीत की सर्वप्रधान वेश्या प्रवीणराय को कविशिक्षा का उपदेश देने के लिए किया था। कविप्रिया में इसका और साथ ही इन्द्रजीत के यहाँ की अन्य प्रधान पातुरों का उललेख उन्होंने स्वयं किया है। और उनमें प्रवीणराय की विशेष प्रशंसा की है। यह भी कहा जाता है कि कविवर की इस चेली ने उनकी रामचन्द्रचन्द्रिका में आग्रहपूर्वक अपनी कुछ रचना रखवाई है। जनकपुर में ज्यौनार के अवसर पर जो गालियाँ गवाई गयी हैं वे प्रवीणराय की रचनाएँ हैं। प्रवीणराय कितनी काव्य-प्रगल्भा हो गयी थी इसका पता इस किंवदन्ती से कुछ-कुछ चल जाता है कि अकबर के दरबार में जब वह पेश की गयी और उससे बादशाह के यहाँ रहने की बात कही गयी तो उसने उत्तर दिया-
बिनती राय प्रबीन की सुनियै साह सुजान।
जूठी पतरी भखत हैं बारी बायस स्वान ।।
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Description
हिन्दी – साहित्य का अतीत उसके वर्तमान की अपेक्षा अधिक समृद्ध है। जितनी देशी भाषाएँ विकसित हुईं उनमें कुछ का आधुनिक या वर्तमान साहित्य पर्याप्त समृद्ध है। वर्तमान हिन्दी साहित्य आधुनिक ऐश्वर्य का गर्व करे तो उसे कुछ देशी भाषाएँ टोक सकती हैं। पर हिन्दी-साहित्य का अतीत जितना सम्पन्न है, उतना किसी देशी भाषा का प्राचीन साहित्य नहीं । हिन्दी-साहित्य के अतीत के आभोग में उसका आदिकाल और मध्यकाल आता है। आदिकाल की समस्त वास्तविक साहित्यिक सामग्री असन्दिग्ध रूप में उस समय की नहीं है।
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केशवदास ओड़छा के इन्द्रजीत के दरबार में रहते थे। उनका काम (जैसा उनके ग्रन्थों से सिद्ध होता है) पुराण बाँचना था, कविता करना था और इन्द्रजीत की वेश्याओं को साहित्य पढ़ाना भी था । केशवदास ने कविप्रिया का निर्माण इन्द्रजीत की सर्वप्रधान वेश्या प्रवीणराय को कविशिक्षा का उपदेश देने के लिए किया था। कविप्रिया में इसका और साथ ही इन्द्रजीत के यहाँ की अन्य प्रधान पातुरों का उललेख उन्होंने स्वयं किया है। और उनमें प्रवीणराय की विशेष प्रशंसा की है। यह भी कहा जाता है कि कविवर की इस चेली ने उनकी रामचन्द्रचन्द्रिका में आग्रहपूर्वक अपनी कुछ रचना रखवाई है। जनकपुर में ज्यौनार के अवसर पर जो गालियाँ गवाई गयी हैं वे प्रवीणराय की रचनाएँ हैं। प्रवीणराय कितनी काव्य-प्रगल्भा हो गयी थी इसका पता इस किंवदन्ती से कुछ-कुछ चल जाता है कि अकबर के दरबार में जब वह पेश की गयी और उससे बादशाह के यहाँ रहने की बात कही गयी तो उसने उत्तर दिया-
बिनती राय प्रबीन की सुनियै साह सुजान।
जूठी पतरी भखत हैं बारी बायस स्वान ।।
About Author
सम्पादक - आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र -
आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र का जन्म काशी के ब्रह्मनाल मुहल्ले में हुआ था। हिन्दी साहित्याकाश में आचार्य मिश्र प्रख्यात अन्वेषक, मार्मिक टीकाकार एवं सुयोग्य पाठ-सम्पादक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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