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Samay Se MutHardbackher
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अदम गोंडवी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अदम गोंडवी
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹275 ₹193
Save: 30%
In stock
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10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789350001530
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
210
समय से मुठभेड़ –
पूरी दुनिया में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जड़ें हिल चुकी थीं। सोवियत संघ और चीन जैसे देश प्रगति के नये आख्यान लिखने लगे थे। भारत कुल 65 दिन पहले शताब्दियों की गुलामी दरकिनार कर स्वतन्त्रता का राष्ट्रगान गा रहा था, ऐसे में 22 अक्टूबर 1947 को गोस्वामी तुलसीदास के गुरुस्थान सूकर क्षेत्र के समीप परसपुर (गोण्डा) के आटा ग्राम में स्व. श्रीमती माण्डवी सिंह व श्री देवकली सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ जो बाद में अदम गोंडवी के नाम से सुविख्यात हुए।
अदम जी कबीर की परम्परा के कवि हैं, अन्तर यही कि अदम ने कलम-काग़ज़ छुआ पर उतना ही जितना किसान ठाकुरों के लिए ज़रूरी था।
अदम जी ठाकुर तो हैं पर चमारों की गली झाँकने वाले ठाकुर नहीं, वरन् दलितों, वंचितों और आम जनता का दर्द ही उनके रचनाकर्म की आत्मा है। उनकी ग़ज़लों पर सर्वप्रथम दुष्यन्त अलंकरण मिला। पूरे देश ने अनेक बार उन्हें सम्मानित किया, पर वे कभी भी पुरस्कार सम्मान के चक्कर में नहीं रहे।
अदम की ग़ज़लें सर्वहारा की लड़ाई खुद लड़ती हैं, कभी विधायक निवास में, कभी ग्राम प्रधान के घर, कभी वंचितों, पीड़ितों की गली में, कभी खेतों के बीच पगडण्डी पर अन्याय के विरुद्ध।
अदम जी की इस कविताई में उन्हें सहयोग देती हैं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला देवी, प्रिय अनुज केदारनाथ सिंह व पुत्र आलोक सिंह आदि। जो इस फक्कड़ कवि की समस्त आदतों, वारदातों के बीच इन्हें सहेजकर रखते हैं, ताकि वे समय के साथ मुठभेड़ में आने वाली पीढ़ी के लिए एक नया मंत्र फूँक सकें। चार्वाक की तरह, बुद्ध, गाँधी और मार्क्स की तरह। -जगदीश पीयूष
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Description
समय से मुठभेड़ –
पूरी दुनिया में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जड़ें हिल चुकी थीं। सोवियत संघ और चीन जैसे देश प्रगति के नये आख्यान लिखने लगे थे। भारत कुल 65 दिन पहले शताब्दियों की गुलामी दरकिनार कर स्वतन्त्रता का राष्ट्रगान गा रहा था, ऐसे में 22 अक्टूबर 1947 को गोस्वामी तुलसीदास के गुरुस्थान सूकर क्षेत्र के समीप परसपुर (गोण्डा) के आटा ग्राम में स्व. श्रीमती माण्डवी सिंह व श्री देवकली सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ जो बाद में अदम गोंडवी के नाम से सुविख्यात हुए।
अदम जी कबीर की परम्परा के कवि हैं, अन्तर यही कि अदम ने कलम-काग़ज़ छुआ पर उतना ही जितना किसान ठाकुरों के लिए ज़रूरी था।
अदम जी ठाकुर तो हैं पर चमारों की गली झाँकने वाले ठाकुर नहीं, वरन् दलितों, वंचितों और आम जनता का दर्द ही उनके रचनाकर्म की आत्मा है। उनकी ग़ज़लों पर सर्वप्रथम दुष्यन्त अलंकरण मिला। पूरे देश ने अनेक बार उन्हें सम्मानित किया, पर वे कभी भी पुरस्कार सम्मान के चक्कर में नहीं रहे।
अदम की ग़ज़लें सर्वहारा की लड़ाई खुद लड़ती हैं, कभी विधायक निवास में, कभी ग्राम प्रधान के घर, कभी वंचितों, पीड़ितों की गली में, कभी खेतों के बीच पगडण्डी पर अन्याय के विरुद्ध।
अदम जी की इस कविताई में उन्हें सहयोग देती हैं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला देवी, प्रिय अनुज केदारनाथ सिंह व पुत्र आलोक सिंह आदि। जो इस फक्कड़ कवि की समस्त आदतों, वारदातों के बीच इन्हें सहेजकर रखते हैं, ताकि वे समय के साथ मुठभेड़ में आने वाली पीढ़ी के लिए एक नया मंत्र फूँक सकें। चार्वाक की तरह, बुद्ध, गाँधी और मार्क्स की तरह। -जगदीश पीयूष
About Author
अदम गोंडवी -
अदम भीतर से नसीरुद्दीन शाह की तरह सचेत और गम्भीर हैं। धूमिल की तरह आक्रामक और ओम पुरी की तरह प्रतिबद्ध यह कुछ अजीब-सी लगने वाली तुलना है, पर इस फलक से अदम का वह चेहरा साफ़-साफ़ दिख सकता है, जो यूँ देखने पर समझ में नहीं आता। मामूली, अनपढ़, मटमैलापन भी इतना असाधारण, बारीक और गहरा हो सकता है, इसे सिर्फ़ अदम को सुन और पढ़ कर समझा जा सकता है ।
किताबी मार्क्सवाद सिर्फ़ उन्हें आकृष्ट कर सकता है जिनकी रुचि ज्ञान बटोरने और नया दिखने तक है। पर जो सचमुच बदलाव चाहते हैं और मौजूदा व्यवस्था में बुरी तरह तंग और परेशान हैं, वे अपने आस-पास के सामाजिक भ्रष्टाचार और आर्थिक शोषण के ख़िलाफ लड़ना ज़रूर चाहेंगे। वे सचमुच के सर्वहारा हैं। जिनके पास खोने को न ऊँची डिग्रियाँ और ओहदे हैं, न प्रतिष्ठित जीवन-शैली। अदम इन्हीं धाराओं के शायर हैं।
दुष्यन्त ने अपनी ग़ज़लों से शायरी की जिस नयी 'राजनीति' की शुरुआत की थी, अदम ने उसे उस मुकाम तक पहुँचाने की कोशिश की है जहाँ से एक-एक चीज़ बग़ैर किसी धुँधलके के पहचानी जा सके। यह शायरी, एक अर्थ में, सचमुच शायरी कम है सीधी बात कहीं अधिक है। इस रूप में यह एक ऐसी आपदधर्मी कला है, जो आग की लपटों के बीच धू-धू जलती बस्तियों को बचाने के लिए आगे आती है।
- विजय बहादुर सिंह
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