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Rassakashi
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
वीर भारत तलवार
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
वीर भारत तलवार
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹300 ₹210
Save: 30%
In stock
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1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789352296941
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
368
उन्नीसवीं सदी का भारतीय नवजागरण धर्म और समाज को सुधारने के महान् साहसिक प्रयासों के रूप में शुरू हुआ था, जो करीब पचास सालों तक बंगाल और महाराष्ट्र के भद्रवर्गीय प्रबुद्ध समाज में हलचल मचाता रहा। लेकिन फिर उसके हिन्दू-प्रतिक्रिया की शक्तियाँ प्रवल रूप से उठ खड़ी हुई और पश्चिमोत्तर प्रान्त में जो भी और जैसा भी नवजागरण आया, दुर्भाग्य से वह इसी दौर में आया, जिसे कुछ हिन्दी-लेखकों ने ‘हिन्दी नवजागरण’ कहा है। डॉ. तलवार पूरे साहस के साथ इस मत का खण्डन करते हुए कहते हैं कि वास्तव में इसका नाम ‘हिन्दी ‘आन्दोलन’ होना चाहिए, क्योंकि इस आन्दोलन के नेताओं का सक्ष्य यही था भारतीय नवजागरण मुख्यतः धर्म और समाज के सुधार का आन्दोलन था जबकि ये “धर्म के परम्परागत स्वरूप में बुनियादी सुधारों का विरोध करते थे। सामाजिक सुधारों के मामले में सबसे प्रधान मुद्दे-स्त्रीप्रश्न पर उनका नप्रिया पिछड़ा हुआ और दुविधाग्रस्त था। आर्य समाज या ब्राह्मसमाज की तरह उन्होंने स्त्री शिक्षा का उत्साहपूर्ण आन्दोलन कभी नहीं चलाया। वालविवाह का विरोध करते हुए भी उन्होंने उसके खिलाफ कोई कारगर कदम नहीं उठाया। विधवा-विवाह के प्रश्न पर एकाच अपवाद को छोड़कर, या तो थे इसके विरोधी रहे या दुविधाग्रस्त।”
डॉ. तलवार के मतानुसार, “हिन्दू-मुस्लिम भद्रवर्ग के बीच होड़ के मुद्दों ने यहाँ धार्मिक-सामाजिक सुधारों के सवाल को गौण बना दिया और जो समस्याएँ आज इतनी विकराल बनकर हमें आतंकित कर रही हैं-हिन्दू राष्ट्रवाद या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, साम्प्रदायिक धार्मिक फंडामेंटलिज़्म, मुस्लिम अलगाववाद और हिन्दी-उर्दू विवाद- इन सबका जन्म उन्नीसवीं सदी में नवजागरण के दौर में हुआ था।” डॉ. तलवार का यह निष्कर्ष ही इस पुस्तक को प्रासंगिक बनाता है, जो आज की साम्प्रदायिक व अलगाववादी प्रवृत्तियों के विश्लेषण समाधान में सहायक हो सकता है।
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Description
उन्नीसवीं सदी का भारतीय नवजागरण धर्म और समाज को सुधारने के महान् साहसिक प्रयासों के रूप में शुरू हुआ था, जो करीब पचास सालों तक बंगाल और महाराष्ट्र के भद्रवर्गीय प्रबुद्ध समाज में हलचल मचाता रहा। लेकिन फिर उसके हिन्दू-प्रतिक्रिया की शक्तियाँ प्रवल रूप से उठ खड़ी हुई और पश्चिमोत्तर प्रान्त में जो भी और जैसा भी नवजागरण आया, दुर्भाग्य से वह इसी दौर में आया, जिसे कुछ हिन्दी-लेखकों ने ‘हिन्दी नवजागरण’ कहा है। डॉ. तलवार पूरे साहस के साथ इस मत का खण्डन करते हुए कहते हैं कि वास्तव में इसका नाम ‘हिन्दी ‘आन्दोलन’ होना चाहिए, क्योंकि इस आन्दोलन के नेताओं का सक्ष्य यही था भारतीय नवजागरण मुख्यतः धर्म और समाज के सुधार का आन्दोलन था जबकि ये “धर्म के परम्परागत स्वरूप में बुनियादी सुधारों का विरोध करते थे। सामाजिक सुधारों के मामले में सबसे प्रधान मुद्दे-स्त्रीप्रश्न पर उनका नप्रिया पिछड़ा हुआ और दुविधाग्रस्त था। आर्य समाज या ब्राह्मसमाज की तरह उन्होंने स्त्री शिक्षा का उत्साहपूर्ण आन्दोलन कभी नहीं चलाया। वालविवाह का विरोध करते हुए भी उन्होंने उसके खिलाफ कोई कारगर कदम नहीं उठाया। विधवा-विवाह के प्रश्न पर एकाच अपवाद को छोड़कर, या तो थे इसके विरोधी रहे या दुविधाग्रस्त।”
डॉ. तलवार के मतानुसार, “हिन्दू-मुस्लिम भद्रवर्ग के बीच होड़ के मुद्दों ने यहाँ धार्मिक-सामाजिक सुधारों के सवाल को गौण बना दिया और जो समस्याएँ आज इतनी विकराल बनकर हमें आतंकित कर रही हैं-हिन्दू राष्ट्रवाद या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, साम्प्रदायिक धार्मिक फंडामेंटलिज़्म, मुस्लिम अलगाववाद और हिन्दी-उर्दू विवाद- इन सबका जन्म उन्नीसवीं सदी में नवजागरण के दौर में हुआ था।” डॉ. तलवार का यह निष्कर्ष ही इस पुस्तक को प्रासंगिक बनाता है, जो आज की साम्प्रदायिक व अलगाववादी प्रवृत्तियों के विश्लेषण समाधान में सहायक हो सकता है।
About Author
वीरभारत तलवार
20 सितम्बर, 1947 को जमशेदपुर में लोहे के कारखाने में काम करने वाले एक शिक्षित मजदूर परिवार में जन्म । 1970 में हिन्दी एम. ए. बनारस हिन्दू वि.वि. से। 1984 में पीएच.डी. जे.एन.यू. से ।
1970 का पूरा दशक नक्सलवादी आन्दोलन में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में धनबाद के कोयला खदान मजदूरों के बीच और फिर राँची - सिंहभूम के आदिवासियों के बीच काम किया। अलग झारखंड राज्य आन्दोलन के प्रमुख सिद्धान्तकार बने। इसी दौर में तीन राजनीतिक पत्रिकाओं का प्रकाशन- सम्पादन किया-फिलहाल (1972-74) पटना से, शालपत्र (1977-78) धनबाद से और झारखंड वार्ता (1977-78) राँची से। झारखंड : क्यूँ और कैसे? तथा झारखंड के आदिवासी और आर.एस.एस. नाम से दो लोकप्रिय राजनीतिक पैंफलेट लिखे। आदिवासी इलाकों में बड़े बाँधों के विकल्प पर शोध किया और राँची विश्वविद्यालय में आदिवासी भाषाओं के विभाग खुलवाने का आन्दोलन किया। 1988-89 में झारखंड के आदिवासियों द्वारा दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान भगवान विरसा पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
किताबें किसान, राष्ट्रीय आन्दोलन और प्रेमचन्द : 1918-22, राष्ट्रीय नवजागरण और साहित्य : कुछ प्रसंग, कुछ प्रवृत्तियाँ, हिन्दू नवजागरण की विचारधारा: सत्यार्थप्रकाश: समालोचना का एक प्रयास ।
1996 से 1999 तक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फेलो। फिलहाल जे.एन.यू के भारतीय भाषा केन्द्र में एसोसिएट प्रोफेसर ।
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