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Priyapravas
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹195 ₹194
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ISBN:
SKU
9789350723814
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
258
कविता तो वही है जिसमें कोमल शब्दों का विन्यास हो, जो मधुर अथच कान्तपदावली द्वारा अलंकृत हो। खड़ी बोली में अधिकतर संस्कृत-शब्दों का प्रयोग होता है, जो हिन्दी के शब्दों की अपेक्षा कर्कश होते हैं। इसके व्यतीत उसकी क्रिया भी ब्रजभाषा की क्रिया से रूखी और कठोर होती है; और यही कारण है कि खड़ी बोली की कविता सरस नहीं होती और कविता का प्रधान गुण माधुर्य्य और प्रसाद उसमें नहीं पाया जाता। यहाँ पर मैं यह कहूँगा कि पदावली की कान्तता, मधुरता, कोमलता केवल पदावली में ही सन्निहित है, या उसका कुछ सम्बन्ध मनुष्य के संस्कार और उसके हृदय से भी है? मेरा विचार है कि उसका कुछ सम्बन्ध नहीं, वरन् बहुत कुछ सम्बन्ध मनुष्य के संस्कार और उसके हृदय से है।
– भूमिका से
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Description
कविता तो वही है जिसमें कोमल शब्दों का विन्यास हो, जो मधुर अथच कान्तपदावली द्वारा अलंकृत हो। खड़ी बोली में अधिकतर संस्कृत-शब्दों का प्रयोग होता है, जो हिन्दी के शब्दों की अपेक्षा कर्कश होते हैं। इसके व्यतीत उसकी क्रिया भी ब्रजभाषा की क्रिया से रूखी और कठोर होती है; और यही कारण है कि खड़ी बोली की कविता सरस नहीं होती और कविता का प्रधान गुण माधुर्य्य और प्रसाद उसमें नहीं पाया जाता। यहाँ पर मैं यह कहूँगा कि पदावली की कान्तता, मधुरता, कोमलता केवल पदावली में ही सन्निहित है, या उसका कुछ सम्बन्ध मनुष्य के संस्कार और उसके हृदय से भी है? मेरा विचार है कि उसका कुछ सम्बन्ध नहीं, वरन् बहुत कुछ सम्बन्ध मनुष्य के संस्कार और उसके हृदय से है।
– भूमिका से
About Author
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
जन्म 15 अप्रैल 1865, निजामाबाद, आजमगढ़ (उ.प्र.)। 1879 में निजामाबाद के तहसीली स्कूल से मिडिल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण। 1884 में वहीं अध्यापक हुए। 1882 में अनन्त कुमारी से विवाह । 1887 में नार्मल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण। 1889 में कानूनगो की परीक्षा उत्तीर्ण करके कानूनगो, गिरदावर कानूनगोई और सदर कानूनगो पदों पर कार्य । 1923 में सरकारी नौकरी से अवकाश ग्रहण। मार्च 1924 से 30 जून 1941 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अवैतनिक अध्यापक ।
द्विवेदी युग के प्रमुख स्तम्भ । ब्रज भाषा और खड़ी बोली में रचनाएँ। गद्य और पद्य की सभी प्रमुख विधाओं में लेखन । सिंह का हरि और अयोध्या का औध करके 'हरिऔध' उपनाम रखा। हिन्दी के अलावा, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी, फारसी, पंजाबी, मराठी और बांग्ला भाषाओं का ज्ञान। प्रियप्रवास, वैदेही वनवास, रसकलस, चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, ठेट हिन्दी का ठाठ, अधखिला फूल आदि प्रमुख कृतियाँ। खड़ी बोली के पहले महाकाव्य प्रियप्रवास के लिए मंगला प्रसाद पारितोषिक कवि सम्राट की उपाधि । हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी चुने गये।
16 मार्च 1947 को निजामाबाद, आजमगढ़ में मृत्यु।
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