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Poornavtar
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
हेतु भारद्वाज
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
हेतु भारद्वाज
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹195 ₹194
Save: 1%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789355182951
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
56
पूर्णावतार –
तात!
क्या सम्राट होना ही सब कुछ है?
मैं अनिंद्य सुन्दरी राजकुमारी थी
मेरी भी कुछ आकांक्षाएँ थीं
पर हार गयी क्योंकि में नारी थी
कुछ भी कहो देव!
आपके समक्ष मैं तो नादान हूँ
क्या कर सकती थी असहाय नारी
इस क्रीड़ा में कन्दुक थी मैं तो बेचारी
नेत्र चाहे बन्द हों या खुले
हम वे ही देख पाते हैं जो देखना चाहते हैं।
कोई अन्धा नहीं है यहाँ
न तात धृतराष्ट्र
न गान्धारी माते आप
दोनों समझते थे अपने-अपने पाप
बलशाली होना भी अन्धापन है
शस्त्र के बल पर मनमानी करना
दुर्बल को सताना
सिर्फ़ अन्धापन है।
गान्धारी यह तुम्हारा नहीं
गान्धार देश का अपमान है
नारी जाति का अपमान है
क्या बचा है मेरे पास
अभिशाप बन जीना होगा
न मर पाने का विष पीना होगा
तरसूँगा पर मृत्यु नहीं पाऊँगा
भटकते रहने की पीड़ा
कब तक सह पाऊँगा ?
ठीक कहते हो प्राण!
तुम तो अन्धे थे
मैंने भी किया मर्यादा का पालन
पतिधर्म का व्रत,
शपथ ली मैंने –
अन्धे व्यक्ति की पत्नी अन्धी ही रहेगी
यह मर्यादा युग-युग तक चलेगी
पति चाहे जैसा हो
पत्नी तो अन्धी ही रहेगी।
-हेतु भरद्वाज
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Description
पूर्णावतार –
तात!
क्या सम्राट होना ही सब कुछ है?
मैं अनिंद्य सुन्दरी राजकुमारी थी
मेरी भी कुछ आकांक्षाएँ थीं
पर हार गयी क्योंकि में नारी थी
कुछ भी कहो देव!
आपके समक्ष मैं तो नादान हूँ
क्या कर सकती थी असहाय नारी
इस क्रीड़ा में कन्दुक थी मैं तो बेचारी
नेत्र चाहे बन्द हों या खुले
हम वे ही देख पाते हैं जो देखना चाहते हैं।
कोई अन्धा नहीं है यहाँ
न तात धृतराष्ट्र
न गान्धारी माते आप
दोनों समझते थे अपने-अपने पाप
बलशाली होना भी अन्धापन है
शस्त्र के बल पर मनमानी करना
दुर्बल को सताना
सिर्फ़ अन्धापन है।
गान्धारी यह तुम्हारा नहीं
गान्धार देश का अपमान है
नारी जाति का अपमान है
क्या बचा है मेरे पास
अभिशाप बन जीना होगा
न मर पाने का विष पीना होगा
तरसूँगा पर मृत्यु नहीं पाऊँगा
भटकते रहने की पीड़ा
कब तक सह पाऊँगा ?
ठीक कहते हो प्राण!
तुम तो अन्धे थे
मैंने भी किया मर्यादा का पालन
पतिधर्म का व्रत,
शपथ ली मैंने –
अन्धे व्यक्ति की पत्नी अन्धी ही रहेगी
यह मर्यादा युग-युग तक चलेगी
पति चाहे जैसा हो
पत्नी तो अन्धी ही रहेगी।
-हेतु भरद्वाज
About Author
हेतु भारद्वाज -
15 जनवरी, 1937, रामनेर (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी), पीएच.डी., राजस्थान वि.वि.।
व्यवसाय: राजस्थान उच्च शिक्षा में शिक्षण।
कृतियाँ : नौ कहानी-संग्रह- तीन कमरों का मकान, ज़मीन से हटकर, चीफ़ साथ आ रहे हैं, तीर्थयात्रा, सुबह-सुबह, रास्ते बन्द नहीं होते, समय कभी थमता नहीं आदि, एक उपन्यास बनती बिगड़ती लकीरें, व्यंग्य संग्रह-छिपाने को छिपा जाता और नाटक- आधार की खोज के अलावा मुख्य रूप से आलोचना सम्बन्धी कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें महत्त्वपूर्ण हैं : राष्ट्रीय एकता और हिन्दी, स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी कहानी में मानव प्रतिमा, परिवेश की चुनीतियाँ और साहित्य, संस्कृति और साहित्य, हिन्दी कथा साहित्य का इतिहास, आधुनिक हिन्दी कविता का विकास, हिन्दी साहित्य का इतिहास- 730 ई. से 1750 ई., संस्कृति, शिक्षा और सिनेमा, संस्कृति संवाद, हमारा समय सरोकार और चिन्ताएँ, साहित्य और जीवन के सवाल, दो संस्मरण संग्रह- जो याद रहा तथा बैठे ढाले की जुगालियाँ तथा विश्वम्भरनाथ उपाध्याय पर केन्द्रीय साहित्य अकादेमी से मोनोग्राफ़ आदि दो दर्जन से अधिक पुस्तकें।
सम्पादित पत्रिकाएँ : आज की कविता (1961 में चार अंक); तटस्थ (त्रैमासिक) नवम्बर, 1969 से अप्रैल, 1970; मधुमती (मासिक) अक्टूबर, 1989 से नवम्बर 1990 तथा 1998 में; समय माजरा (मासिक) जनवरी, 2000 से दिसम्बर 2005; अक्सर (त्रैमासिक) जुलाई, 2007 से नियमित पंचशील शोध समीक्षा (त्रैमासिक हिन्दी शोध पत्रिका) अप्रैल, 2008 से 2014।
अन्य प्रतिनिधि कहानियाँ- 1984, 1985, 1986, 1987 का सम्पादन, तपती धरती का पेड़ (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के लिए राजस्थान के कहानीकारों की कहानियों का संकलन), कविता का व्यापक परिप्रेक्ष्य (नन्द चतुर्वेदी, ऋतुराज, नन्द किशोर आचार्य, विजेन्द्र की कविता के सवालों पर खुली बातचीत), राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के अध्यक्ष रहे आदि।
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