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Asmita Ka Sangharsh Rashtravaad, Deshprem Aur Bharatiya Hone Ka Arth
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
शशि थरूर, अनुवाद प्रभात मिलिंद
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
शशि थरूर, अनुवाद प्रभात मिलिंद
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹1,599 ₹1,119
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In stock
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In stock
ISBN:
SKU
9789355181602
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
624
छह भागों में लिखी गयी यह पुस्तक राष्ट्रवाद, देशप्रेम, उदारवाद, लोकतन्त्र और मानवतावाद जैसे ऐतिहासिक और समकालीन विषयों के विस्तृत विश्लेषण के साथ आरम्भ होती है। इनमें से अधिकांश विचारों की उत्पत्ति अट्ठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी की अवधि में पश्चिम में हुई थी लेकिन बहुत जल्दी ही इन विचारों का विस्तार दुनिया के कोने-कोने में हो गया। इसी परिप्रेक्ष्य में गाँधी, नेहरू, टैगोर, अम्बेडकर, पटेल, आज़ाद आदि जैसे भारत के अग्रणी नेताओं के सजग वैचारिक मूल्यों का अन्वेषण करते हुए लेखक ने उपर्युक्त विचारों की व्याख्या करने का सफल प्रयास किया है। किन्तु दुर्भाग्यवश आज इन महान विचारों की मुठभेड़ हिन्दुत्व के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले सिद्धान्तकारों और सत्ता के शीर्ष पर आसीन, और ‘हम बनाम वे’ की बाँटने वाली राजनीति में आस्था रखने वाले उनके संकीर्णतावादी, विभाजनकारी और साम्प्रदायिक अनुगामियों के साथ हो रही है। आज का संघर्ष भारत के इन दो परस्पर विरोधी विचारों के बीच का द्वन्द्व है जिसे जातीय-धार्मिक राष्ट्रवाद बनाम नागरिक राष्ट्रवाद के द्वन्द्व के नाम से व्याख्यायित करना अधिक उपयुक्त होगा। आज भारत की आत्मा की लड़ाई पहले की बनिस्बत अधिक कठिन और दुर्जेय हो गयी है, और स्वतन्त्रता के बाद के वर्षों में भारत ने बहुलतावाद, धर्मनिरपेक्षता और समावेशी राष्ट्रीयता के जो विलक्षण विचार अर्जित किये थे, उन्हें स्थायी रूप से क्षति पहुँचाने के संकट निरन्तर मँडरा रहे हैं। आज संविधान पर आधिपत्य जमाया जा चुका है, स्वायत्तशासी संस्थाओं की स्वतन्त्रता को सायास समाप्त किया जा रहा है, मिथकीय इतिहास का निर्माण और प्रचार जारी है, विश्वविद्यालयों को शिकार बनाया जा रहा है, और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि अल्पसंख्यकों के विरुद्ध प्रताड़ना और हिंसा की घटनाएँ लगातार घट रही हैं। समय व्यतीत होने के साथ-साथ उन विचारों पर लगातार हमले हो रहे हैं, जिन विचारों के कारण दुनिया भर में भारत की प्रशंसा की जाती थी। स्वेच्छाचारी नेतागण और उनके कट्टरवादी समर्थक देश को संकीर्णता और असहिष्णुता के घटाटोप की ओर ले जा रहे हैं। यदि वे अपनी मंशा में सफल हो जाते हैं तो इस स्थिति में लाखों लोग अपनी पहचान से वंचित कर दिये जायेंगे और महाद्वीप की मिट्टी में भारतीयता के छद्म सिद्धान्तों के बीज फूटने लगेंगे। इसके बाद भी युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। तर्कसम्मत और प्रांजल भाषा में लिखी गयी यह पुस्तक हमें यह संकेत करती है कि अस्मिता के इस संघर्ष में विजय प्राप्त करने के लिए क्या-क्या उपाय किये जा सकते हैं ताकि उन सभी चीज़ों को और अधिक सुदृढ़ बनाया जा सके जो भारत के सन्दर्भ में अतुल्य और अमूल्य हैं। पुस्तक की लेखन-शैली जितनी विद्वत्तापूर्ण है, उतनी ही गम्भीरता और प्रतिबद्धता के साथ इसके केन्द्रीय-विषय पर विमर्श भी किया गया है। ‘अस्मिता का संघर्ष’ निश्चित रूप से एक ऐसी पुस्तक है जो भारतीयता के अर्थ को स्थापित करती है, साथ ही यह भी स्पष्ट करती है कि इक्कीसवीं शताब्दी में एक देशप्रेमी और राष्ट्रवादी भारतीय होने के क्या मायने हैं।
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Description
छह भागों में लिखी गयी यह पुस्तक राष्ट्रवाद, देशप्रेम, उदारवाद, लोकतन्त्र और मानवतावाद जैसे ऐतिहासिक और समकालीन विषयों के विस्तृत विश्लेषण के साथ आरम्भ होती है। इनमें से अधिकांश विचारों की उत्पत्ति अट्ठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी की अवधि में पश्चिम में हुई थी लेकिन बहुत जल्दी ही इन विचारों का विस्तार दुनिया के कोने-कोने में हो गया। इसी परिप्रेक्ष्य में गाँधी, नेहरू, टैगोर, अम्बेडकर, पटेल, आज़ाद आदि जैसे भारत के अग्रणी नेताओं के सजग वैचारिक मूल्यों का अन्वेषण करते हुए लेखक ने उपर्युक्त विचारों की व्याख्या करने का सफल प्रयास किया है। किन्तु दुर्भाग्यवश आज इन महान विचारों की मुठभेड़ हिन्दुत्व के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले सिद्धान्तकारों और सत्ता के शीर्ष पर आसीन, और ‘हम बनाम वे’ की बाँटने वाली राजनीति में आस्था रखने वाले उनके संकीर्णतावादी, विभाजनकारी और साम्प्रदायिक अनुगामियों के साथ हो रही है। आज का संघर्ष भारत के इन दो परस्पर विरोधी विचारों के बीच का द्वन्द्व है जिसे जातीय-धार्मिक राष्ट्रवाद बनाम नागरिक राष्ट्रवाद के द्वन्द्व के नाम से व्याख्यायित करना अधिक उपयुक्त होगा। आज भारत की आत्मा की लड़ाई पहले की बनिस्बत अधिक कठिन और दुर्जेय हो गयी है, और स्वतन्त्रता के बाद के वर्षों में भारत ने बहुलतावाद, धर्मनिरपेक्षता और समावेशी राष्ट्रीयता के जो विलक्षण विचार अर्जित किये थे, उन्हें स्थायी रूप से क्षति पहुँचाने के संकट निरन्तर मँडरा रहे हैं। आज संविधान पर आधिपत्य जमाया जा चुका है, स्वायत्तशासी संस्थाओं की स्वतन्त्रता को सायास समाप्त किया जा रहा है, मिथकीय इतिहास का निर्माण और प्रचार जारी है, विश्वविद्यालयों को शिकार बनाया जा रहा है, और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि अल्पसंख्यकों के विरुद्ध प्रताड़ना और हिंसा की घटनाएँ लगातार घट रही हैं। समय व्यतीत होने के साथ-साथ उन विचारों पर लगातार हमले हो रहे हैं, जिन विचारों के कारण दुनिया भर में भारत की प्रशंसा की जाती थी। स्वेच्छाचारी नेतागण और उनके कट्टरवादी समर्थक देश को संकीर्णता और असहिष्णुता के घटाटोप की ओर ले जा रहे हैं। यदि वे अपनी मंशा में सफल हो जाते हैं तो इस स्थिति में लाखों लोग अपनी पहचान से वंचित कर दिये जायेंगे और महाद्वीप की मिट्टी में भारतीयता के छद्म सिद्धान्तों के बीज फूटने लगेंगे। इसके बाद भी युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। तर्कसम्मत और प्रांजल भाषा में लिखी गयी यह पुस्तक हमें यह संकेत करती है कि अस्मिता के इस संघर्ष में विजय प्राप्त करने के लिए क्या-क्या उपाय किये जा सकते हैं ताकि उन सभी चीज़ों को और अधिक सुदृढ़ बनाया जा सके जो भारत के सन्दर्भ में अतुल्य और अमूल्य हैं। पुस्तक की लेखन-शैली जितनी विद्वत्तापूर्ण है, उतनी ही गम्भीरता और प्रतिबद्धता के साथ इसके केन्द्रीय-विषय पर विमर्श भी किया गया है। ‘अस्मिता का संघर्ष’ निश्चित रूप से एक ऐसी पुस्तक है जो भारतीयता के अर्थ को स्थापित करती है, साथ ही यह भी स्पष्ट करती है कि इक्कीसवीं शताब्दी में एक देशप्रेमी और राष्ट्रवादी भारतीय होने के क्या मायने हैं।
About Author
शशि थरूर विख्यात और लोकप्रिय लेखक हैं। एक महत्त्वपूर्ण समालोचक और स्तम्भकार होने के साथ-साथ वे कथा और कथेतर साहित्य की बीस से भी अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। उनकी पुस्तकों में महत्त्वपूर्ण व्यंग्य उपन्यास 'दी ग्रेट इंडियन नॉवेल', क्लासिकी 'इंडिया: फ्रॉम मिडनाइट टू दी मिलेनियम', चर्चित और लोकप्रिय 'एन एरा ऑफ़ डार्कनेसः दी ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया' और हाल-फ़िलहाल के वर्षों में लिखी गयीं 'दी न्यू वर्ल्ड डिसऑर्डर एंड इंडियन इमपेरेटिव' (समीर सरन के सह-लेखन में), 'दी पैराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर: नरेन्द्र मोदी एंड हिज इंडिया' और 'दी हिन्दू वे: एन इंट्रोडक्शन टू हिन्दुइज़्म' जैसी पुस्तकें शामिल हैं। 'एन एरा ऑफ़ डार्कनेस: दी ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया' के लिए उन्हें 2016 का रामनाथ गोयनका अवार्ड फॉर एक्सलेंस इन बुक्स (कथेतर) भी मिल चुका है। वे संयुक्त राष्ट्रसंघ के पूर्व अवर महासचिव के अतिरिक्त भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग में पूर्व राज्य मन्त्री और विदेशी मामलों के पूर्व राज्य मन्त्री जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर भी काम कर चुके हैं। तिरुवनंतपुरम के लिए तीसरी बार चुने जाने के साथ ही वे अपने संसदीय क्षेत्र का सबसे लम्बे समय तक प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद भी बन चुके हैं और वर्तमान लोकसभा में वे सूचना प्रौद्योगिकी की स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं। उन्हें अनेक साहित्यिक पुरस्कार और सम्मान भी मिल चुके हैं जिनमें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, कॉमनवेल्थ राइटर्स प्राइज और क्रॉसवर्ड लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रमुख हैं। 2010 में उन्हें एनडीटीवी द्वारा न्यू एज पॉलिटिशियन ऑफ़ दी ईयर के सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है, और उससे पहले 2004 में भारतीयों को विदेश में प्राप्त होने वाले सबसे बड़े सम्मान प्रवासी भारतीय सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2022 में फ्रांसीसी सरकार द्वारा फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान 'शेवेलियर डे ला लीजियन डी होनूर' से सम्मानित। वाणी प्रकाशन द्वारा डॉ. शशि थरूर की दो पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं- 'अन्धकार काल : भारत में ब्रिटिश साम्राज्य' (2017) और 'मैं हिन्दू क्यों हूँ' (2018)।
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