Akkarmashi

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
शरण कुमार लिम्बाले
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
शरण कुमार लिम्बाले
Language:
Hindi
Format:
Paperback

158

Save: 30%

In stock

Ships within:
10-12 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789350727331 Category
Category:
Page Extent:
152

अक्करमाशी –
गाँव, भाषा, माँ, पिता, जाति, धर्म-इन सभी दृष्टियों से मैं खंडित हूँ गुमशुदा व्यक्तित्व लिए जीने वाला…मेरे अस्तित्व को ‘जारज’ कहकर सतत अपमानित किया गया है। ब्राह्मणों से लेकर शूद्रों तक सभी अपने खानदानी अभिमान और खानदानी अस्मिता लिए जीते हैं; परन्तु यहाँ मेरी अस्मिता पर ही बलात्कार हुआ है। बलात्कृत स्त्री की तरह मेरा यह जीवन। यहाँ की नीति ने मेरे साथ एक अपराधी की तरह ही आचरण किया है। मेरे जन्म को ही यहाँ अनैतिक घोषित किया गया है।
दुर्बलों पर आक्रमण करते समय, उनका शोषण करते समय सबलों ने हमेशा उनकी अबलाओं पर अत्याचार किये हैं। इन सबलों को यहाँ की सत्ता, सम्पत्ति, समाज, संस्कृति और धर्म ने समर्थन दिया है; परन्तु उस स्त्री का क्या होगा? उसे तो वह ‘बलात्कार’ अपने पेट में बढ़ाना पड़ता है। उस ‘बलात्कार’ को जन्म देना पड़ता है। उस ‘बलात्कार’ का पालन-पोषण करना पड़ता है और वह बलात्कार एक जीवन जीने लगता है। उसी जीवन की वेदना इस आत्मकथा में है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Akkarmashi”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

अक्करमाशी –
गाँव, भाषा, माँ, पिता, जाति, धर्म-इन सभी दृष्टियों से मैं खंडित हूँ गुमशुदा व्यक्तित्व लिए जीने वाला…मेरे अस्तित्व को ‘जारज’ कहकर सतत अपमानित किया गया है। ब्राह्मणों से लेकर शूद्रों तक सभी अपने खानदानी अभिमान और खानदानी अस्मिता लिए जीते हैं; परन्तु यहाँ मेरी अस्मिता पर ही बलात्कार हुआ है। बलात्कृत स्त्री की तरह मेरा यह जीवन। यहाँ की नीति ने मेरे साथ एक अपराधी की तरह ही आचरण किया है। मेरे जन्म को ही यहाँ अनैतिक घोषित किया गया है।
दुर्बलों पर आक्रमण करते समय, उनका शोषण करते समय सबलों ने हमेशा उनकी अबलाओं पर अत्याचार किये हैं। इन सबलों को यहाँ की सत्ता, सम्पत्ति, समाज, संस्कृति और धर्म ने समर्थन दिया है; परन्तु उस स्त्री का क्या होगा? उसे तो वह ‘बलात्कार’ अपने पेट में बढ़ाना पड़ता है। उस ‘बलात्कार’ को जन्म देना पड़ता है। उस ‘बलात्कार’ का पालन-पोषण करना पड़ता है और वह बलात्कार एक जीवन जीने लगता है। उसी जीवन की वेदना इस आत्मकथा में है।

About Author

शरणकुमार लिंबाले - जन्म : 1 जून, 1956। शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. व्यवसाय : डायरेक्टर, विद्यार्थी कल्याण विभाग, यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी, नासिक (महाराष्ट्र)। प्रकाशन : देवता आदमी, दलित ब्राह्मण (कहानी संग्रह), दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र (समीक्षा), नरवानर, हिन्दू, छुआछूत, बहुजन (उपन्यास)।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Akkarmashi”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED