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Rangmanch Ki Kahani

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
देवेन्द्र राज अंकुर
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
देवेन्द्र राज अंकुर
Language:
Hindi
Format:
Paperback

209

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SKU 9789390678754 Category
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316

यह सही है कि पिछले तीन हज़ार से पाँच हज़ार वर्षों के बीच अलग-अलग देशों में जिस रंगमंच की परम्परा का जन्म, आरम्भ और विकास हुआ, वह कई मायनों में यदि एक समानता लिए हुए है तो अपनी-अपनी विशिष्ट भौगोलिक व ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण उसमें एक-दूसरे से बहुत से अलगाव भी दिखायी पड़ते हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि रंगमंच के इस इतिहास की कहानी को कैसे प्रस्तुत किया जाये। एक विकल्प तो यह हो सकता है कि अलग-अलग देशों में जिस तरह भी रंगमंच की शुरुआत हुई, उसे अलग-अलग अध्यायों में आरम्भ से लेकर आज तक अध्ययन के दायरे में लाया जाये। उदाहरण के लिए भारत का रंगमंच, यूनान का रंगमंच, रोमन रंगमंच, चीन का रंगमंच, जापान का रंगमंच, पश्चिम का मध्यकालीन रंगमंच, इंग्लैंड का एलिज़ाबेथकालीन रंगमंच, फ्रांस का रंगमंच, रूस का रंगमंच इत्यादि। दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि आज तक मुख्य रूप से जितने प्रकार के रंगमंच से हम रू-ब-रू होते रहे हैं एक-एक शीर्षक के अन्तर्गत सभी देशों के उससे मिलते-जुलते रंगमंच को एक साथ समेट लिया जाये। यदि हम शास्त्रीय रंगमंच जैसा एक शीर्षक चुन लें तो उसके अन्तर्गत उप-शीर्षकों के रूप में भारत, जापान, चीन, यूनान, रोम के रंगमंच की कहानी को ले लिया जाये।

हमारे विचार में उपर्युक्त सभी विकल्पों को अलग-अलग न रखते हुए यदि हम एक समन्वित शुरुआत करें तो शायद वह रास्ता ज़्यादा सहज और स्वाभाविक लगेगा। हम कहना यह चाहते हैं कि हम अलग-अलग आलेखों में एक-एक देश की रंगयात्रा को शुरू से लेकर आज तक पूरा करने की कोशिश करें और उसी में जहाँ ज़रूरत हो, किसी व्यक्ति विशेष अथवा धारा विशेष को अलग से रेखांकित किया जाये ।

– इसी पुस्तक से

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Description

यह सही है कि पिछले तीन हज़ार से पाँच हज़ार वर्षों के बीच अलग-अलग देशों में जिस रंगमंच की परम्परा का जन्म, आरम्भ और विकास हुआ, वह कई मायनों में यदि एक समानता लिए हुए है तो अपनी-अपनी विशिष्ट भौगोलिक व ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण उसमें एक-दूसरे से बहुत से अलगाव भी दिखायी पड़ते हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि रंगमंच के इस इतिहास की कहानी को कैसे प्रस्तुत किया जाये। एक विकल्प तो यह हो सकता है कि अलग-अलग देशों में जिस तरह भी रंगमंच की शुरुआत हुई, उसे अलग-अलग अध्यायों में आरम्भ से लेकर आज तक अध्ययन के दायरे में लाया जाये। उदाहरण के लिए भारत का रंगमंच, यूनान का रंगमंच, रोमन रंगमंच, चीन का रंगमंच, जापान का रंगमंच, पश्चिम का मध्यकालीन रंगमंच, इंग्लैंड का एलिज़ाबेथकालीन रंगमंच, फ्रांस का रंगमंच, रूस का रंगमंच इत्यादि। दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि आज तक मुख्य रूप से जितने प्रकार के रंगमंच से हम रू-ब-रू होते रहे हैं एक-एक शीर्षक के अन्तर्गत सभी देशों के उससे मिलते-जुलते रंगमंच को एक साथ समेट लिया जाये। यदि हम शास्त्रीय रंगमंच जैसा एक शीर्षक चुन लें तो उसके अन्तर्गत उप-शीर्षकों के रूप में भारत, जापान, चीन, यूनान, रोम के रंगमंच की कहानी को ले लिया जाये।

हमारे विचार में उपर्युक्त सभी विकल्पों को अलग-अलग न रखते हुए यदि हम एक समन्वित शुरुआत करें तो शायद वह रास्ता ज़्यादा सहज और स्वाभाविक लगेगा। हम कहना यह चाहते हैं कि हम अलग-अलग आलेखों में एक-एक देश की रंगयात्रा को शुरू से लेकर आज तक पूरा करने की कोशिश करें और उसी में जहाँ ज़रूरत हो, किसी व्यक्ति विशेष अथवा धारा विशेष को अलग से रेखांकित किया जाये ।

– इसी पुस्तक से

About Author

देवेन्द्र राज अंकुर दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए.। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से निर्देशन में विशेषज्ञता के साथ नाट्य-कला में डिप्लोमा। बाल भवन, नयी दिल्ली के वरिष्ठ नाट्य- प्रशिक्षक । राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल के सदस्य । भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ में नाट्य-साहित्य, रंग स्थापत्य और निर्देशन के अतिथि विशेषज्ञ । राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में भारतीय शास्त्रीय नाटक और सौन्दर्यशास्त्र के सहायक प्राध्यापक । 'सम्भव' नयी दिल्ली के संस्थापक सदस्य और प्रमुख निर्देशक। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल के साथ आधुनिक भारतीय रंगमंच में एक बिलकुल नयी विधा कहानी का रंगमंच के प्रणेता। विभिन्न शौकिया और व्यावसायिक रंगमंडलियों के साथ पूरे भारत और विदेशों में 500 से अधिक कहानियों, 20 उपन्यासों और 60 नाटकों की प्रस्तुति। बांग्ला, उड़िया, कन्नड़, पंजाबी, कुमाऊँनी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, अंग्रेजी, धीवेही, सिंहली और रूसी भाषाओं में रंगकर्म का अनुभव। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा विभिन्न शहरों में संचालित गहन रंगमंच कार्यशालाओं में विशेषज्ञ, निर्देशक तथा शिविर और कार्यशाला निर्देशक के रूप में सम्बद्ध। देश के विभिन्न रंगमंच संस्थानों और विश्वविद्यालयों में अतिथि परीक्षक। दूरदर्शन के लिए नाट्य रूपान्तरण और निर्देशन । हिन्दी की सभी प्रमुख पत्रिकाओं में रंगमंच पर लेख और समीक्षाएँ। अंग्रेज़ी और अन्य भारतीय भाषाओं से कई प्रसिद्ध नाटकों का हिन्दी में अनुवाद। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में स्वतन्त्र रूप से अभिनय, आधुनिक भारतीय नाटक, रंग स्थापत्य, प्रस्तुति प्रक्रिया, दृश्य सज्जा और रंगभाषण के अध्यापन का भी अनुभव। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, क्षेत्रीय अनुसन्धान व संसाधन केन्द्र, बंगलौर के निदेशक। हांगकांग, चीन, डेनमार्क, श्रीलंका, मालदीव, रूस, नेपाल, फ्रांस, मॉरीशस, बांग्लादेश, जापान, सिंगापुर, थाइलैंड, इटली, यू.के., पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि देशों में रंगकार्यशालाएँ, प्रस्तुतियाँ और अध्यापन । प्रकाशित कृतियाँ: ये आदमी ये चूहे, मीडिया, चाणक्य प्रपंच, पहला रंग, रंग कोलाज, दर्शन-प्रदर्शन, अन्तरंग बहिरंग, रंगमंच का सौन्दर्यशास्त्र और पढ़ते, सुनते, देखते। पूर्व प्रोफेसर, विस्तार कार्यक्रम, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ।

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