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Upanyas : Swaroop Aur Samvedana

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
राजेन्द्र यादव
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
राजेन्द्र यादव
Language:
Hindi
Format:
Paperback

207

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1-4 Days

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SKU 9789388434881 Category
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266

कथा-साहित्य में सामाजिक परिवर्तन का अर्थ घटनाओं और स्थितियों के ब्योरों से नहीं उनके दबावों में बदलते हुए मानसिक और आपसी सम्बन्धों से है, चीज़ों और लोगों के प्रति हमारे बदलते हुए सहज रवैये से है। वहीं रचना व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर प्रामाणिक हो पाती है। इसलिए कोई भी कहानी या उपन्यास तभी सार्थक या समय के साथ है जब वह हमें अपने आपसी सम्बन्धों को नये सिरे से सोचने को बाध्य करे या स्वीकृत सम्बन्धों के अनदेखे आयाम खोले। क्या यही इस बात का सूचक नहीं है कि हमारा समय ही हमारे लिए सबसे बड़ी चिन्ता और चुनौती है? चाहे वे श्रीलाल शुक्ल के ‘राग-दरबारी’ और हरिशंकर परसाई की तरह आस-पास के तख्ख कार्टून हों, या फिर फणीश्वरनाथ रेणु, शानी और राही मासूम रज़ा की तरह लगावभरी यातना हो…अपने परिवेश से न भागने का तत्त्व सभी में समान है और यहीं रहकर नये लेखकों ने व्यक्तित्व के अन्तर्विरोधों और सम्बन्धों के बदलते रूप को पकड़ा है।

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Description

कथा-साहित्य में सामाजिक परिवर्तन का अर्थ घटनाओं और स्थितियों के ब्योरों से नहीं उनके दबावों में बदलते हुए मानसिक और आपसी सम्बन्धों से है, चीज़ों और लोगों के प्रति हमारे बदलते हुए सहज रवैये से है। वहीं रचना व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर प्रामाणिक हो पाती है। इसलिए कोई भी कहानी या उपन्यास तभी सार्थक या समय के साथ है जब वह हमें अपने आपसी सम्बन्धों को नये सिरे से सोचने को बाध्य करे या स्वीकृत सम्बन्धों के अनदेखे आयाम खोले। क्या यही इस बात का सूचक नहीं है कि हमारा समय ही हमारे लिए सबसे बड़ी चिन्ता और चुनौती है? चाहे वे श्रीलाल शुक्ल के ‘राग-दरबारी’ और हरिशंकर परसाई की तरह आस-पास के तख्ख कार्टून हों, या फिर फणीश्वरनाथ रेणु, शानी और राही मासूम रज़ा की तरह लगावभरी यातना हो…अपने परिवेश से न भागने का तत्त्व सभी में समान है और यहीं रहकर नये लेखकों ने व्यक्तित्व के अन्तर्विरोधों और सम्बन्धों के बदलते रूप को पकड़ा है।

About Author

राजेन्द्र यादव जन्म : 28 अगस्त, 1929 शिक्षा : एम.ए. (आगरा)। प्रथम रचना : प्रतिहिंसा ('चांद' के भूतपूर्व सम्पादक श्री रामरखसिंह सहगल के मासिक 'कर्मयोगी' में) 1947 में। प्रकाशित रचनाएँ : सारा आकाश, उखड़े हुए लोग, शह और मात, एक इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ), कुलटा, अनदेखे अनजाने पुल, मंत्रविद्ध (उपन्यास) देवताओं की मूर्तियाँ, खेल-खिलौने, जहाँ लक्ष्मी कैद है, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक, टूटना, ढोल और अपने पार, वहाँ तक पहुँचने की दौड़, श्रेष्ठ कहानियाँ, प्रिय कहानियाँ, प्रतिनिधि कहानियाँ, प्रेम कहानियाँ, दस प्रतिनिधि कहानियाँ और चौखटे तोड़ते त्रिकोण। (अब तक की तमाम कहानियाँ पड़ाव-1, पड़ाव-2 और 'यहाँ तक' शीर्षक तीन जिल्दों में संकलित) (कहानी संग्रह), आवाज़ तेरी है (कविता संग्रह) कहानी : स्वरूप और संवेदना, उपन्यास : स्वरूप और संवेदना, कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति, औरों के बहाने, अठारह उपन्यास, कांटे की बात शृंखला (निबन्ध संग्रह)। 'सम्पादन : नये साहित्यकार पुस्तकमाला में मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, फणीश्वरनाथ रेणु तथा मन्नू भंडारी की चुनी हुई कहानियाँ। एक दुनिया : समानान्तर, कथा-यात्रा, कथा-दशक, आत्मतर्पण और काली सुखियाँ (अफ्रीकी कहानियाँ)। 'अनुवाद : हमारे युग का एक नायक : लर्मेल्तोव, प्रथम प्रेम, 'वसंत प्लावन : तुर्गनेव, टक्कर : ऐन्तोन चेखव, संत 'सर्गीयस : टालस्टॉय, एक महुआ : एक मोती : स्टाइन बैक, 'अजनबी : अलबेयर कामू (छहों उपन्यास कथा-शिखर-1,2 शीर्षक से दो जिल्दों में संकलित)। निधन : 28 अक्टूबर 2013

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