Priya Ram Priya Nirmal

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
गंगन गिल द्वारा संपादित
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
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गंगन गिल द्वारा संपादित
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प्रिय राम निर्मल वर्मा के निधन के बाद यह उनकी पहली पुस्तक है। बड़े भाई चित्रकार रामकुमार को लिखे पत्र। हालाँकि यहाँ संकलित और उपलब्ध अधिकतर पत्र निर्मल वर्मा ने साठ के दशक में प्राग से लिखे थे। उनमें गूंजती अन्तरंगता, आपसी विश्वास और कही-अनकही की ध्वनियाँ दोनों भाइयों के सुदूर बचपन में जाती हैं। दोनों भाई शुरू से ही स्वप्नजीवी थे, एक-दूसरे के आन्तरिक जीवन में सूक्ष्म जिज्ञासा की पैठ रखते थे और भली-भाँति जानते थे कि एक रचनाकार का जीवन भविष्य में उनकी कैसी कठिन परीक्षाएँ लेगा। दोनों की कल्पनाशीलता ने अपने रचना-कर्म के लिए कठिन रास्तों का चुनाव किया और दोनों इस श्रम-साध्य और तपस यात्रा से तेजस्वी होकर अपने समय के शीर्ष रचनाकार बनकर स्थापित और सम्मानित हुए। इन पत्रों में निर्मल वर्मा के प्राग जीवन की छवियाँ हैं। और स्वदेश लौटने के बाद का अंकन है। उनके जीवन के ऐसे वर्ष, जिनकी लगभग कोई जानकारी अब तक उपलब्ध नहीं थी। इन पत्रों में निर्मल जी का जिया हुआ वह जीवन है, जो बाद में उनके कथा-साहित्य का परिवेश बना। इन पत्रों में व्यक्ति निर्मल वर्मा का नैतिक-राजनीतिक विकास है, जो बाद के वर्षों में अपने समय की एक प्रमुख और प्रखर असहमति की आवाज़ बना। निर्मल वर्मा की प्रज्ञा मूलतः प्रश्नाकुल थी, आलोचक नहीं-ये पत्र इसे रेखांकित करते हैं। अपने जीवनकाल में क्रूर आलोचना का शिकार रहकर उन्होंने इसकी कीमत भी चुकायी लेकिन अपने अर्जित सत्य पर अन्तिम समय तक अडिग रहकर उन्होंने अपनी तेजस्विता से लगभग सभी आलोचकों को बौना कर दिया। ये पत्र उस एकाकी आग का दस्तावेज़ हैं, जिसमें से तपकर कभी वह एक युवा लेखक के नाते गुज़रे थे और आने वाले वर्षों में सचमुच निर्मल कहलाये थे।

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Description

प्रिय राम निर्मल वर्मा के निधन के बाद यह उनकी पहली पुस्तक है। बड़े भाई चित्रकार रामकुमार को लिखे पत्र। हालाँकि यहाँ संकलित और उपलब्ध अधिकतर पत्र निर्मल वर्मा ने साठ के दशक में प्राग से लिखे थे। उनमें गूंजती अन्तरंगता, आपसी विश्वास और कही-अनकही की ध्वनियाँ दोनों भाइयों के सुदूर बचपन में जाती हैं। दोनों भाई शुरू से ही स्वप्नजीवी थे, एक-दूसरे के आन्तरिक जीवन में सूक्ष्म जिज्ञासा की पैठ रखते थे और भली-भाँति जानते थे कि एक रचनाकार का जीवन भविष्य में उनकी कैसी कठिन परीक्षाएँ लेगा। दोनों की कल्पनाशीलता ने अपने रचना-कर्म के लिए कठिन रास्तों का चुनाव किया और दोनों इस श्रम-साध्य और तपस यात्रा से तेजस्वी होकर अपने समय के शीर्ष रचनाकार बनकर स्थापित और सम्मानित हुए। इन पत्रों में निर्मल वर्मा के प्राग जीवन की छवियाँ हैं। और स्वदेश लौटने के बाद का अंकन है। उनके जीवन के ऐसे वर्ष, जिनकी लगभग कोई जानकारी अब तक उपलब्ध नहीं थी। इन पत्रों में निर्मल जी का जिया हुआ वह जीवन है, जो बाद में उनके कथा-साहित्य का परिवेश बना। इन पत्रों में व्यक्ति निर्मल वर्मा का नैतिक-राजनीतिक विकास है, जो बाद के वर्षों में अपने समय की एक प्रमुख और प्रखर असहमति की आवाज़ बना। निर्मल वर्मा की प्रज्ञा मूलतः प्रश्नाकुल थी, आलोचक नहीं-ये पत्र इसे रेखांकित करते हैं। अपने जीवनकाल में क्रूर आलोचना का शिकार रहकर उन्होंने इसकी कीमत भी चुकायी लेकिन अपने अर्जित सत्य पर अन्तिम समय तक अडिग रहकर उन्होंने अपनी तेजस्विता से लगभग सभी आलोचकों को बौना कर दिया। ये पत्र उस एकाकी आग का दस्तावेज़ हैं, जिसमें से तपकर कभी वह एक युवा लेखक के नाते गुज़रे थे और आने वाले वर्षों में सचमुच निर्मल कहलाये थे।

About Author

गगन गिल सन् 1983 में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ कविता शृंखला के प्रकाशित होते ही गगन गिल (जन्म: 1959, नयी दिल्ली, शिक्षा: एम. ए. अंग्रेज़ी साहित्य) की कविताओं ने तत्कालीन सुधीजनों का ध्यान आकर्षित किया था। तब से अब तक उनकी रचनाशीलता देश-विदेश के हिन्दी साहित्य के अध्येताओं, पाठकों और आलोचकों के विमर्श का हिस्सा रही है। लगभग 35 वर्ष लम्बी इस रचना यात्रा की नौ कृतियाँ हैं- पाँच कविता-संग्रह: एक दिन लौटेगी लड़की (1989), अँधेरे में बुद्ध ( 1996), यह आकांक्षा समय नहीं (1998), थपक थपक दिल थपक थपक (2003), मैं जब तक आयी बाहर (2018) एवं 4 गद्य पुस्तकें: दिल्ली में उनींदे (2000), अवाक् (2008), देह की मुँडेर पर (2018), इत्यादि (2018)। अवाक् की गणना बीबीसी सर्वेक्षण के श्रेष्ठ हिन्दी यात्रा वृत्तान्तों में की गयी है। सन् 1983-93 में टाइम्स ऑफ इण्डिया समूह व सण्डे ऑब्जर्वर में एक दशक से कुछ अधिक समय तक साहित्य सम्पादन करने के बाद सन् 1992-93 में हार्वर्ड युनिवर्सिटी, अमेरिका में पत्रकारिता की नीमेन फैलो। देश वापसी पर पूर्णकालिक लेखन। सन् 1990 में अमेरिका के सुप्रसिद्ध आयोवा इण्टरनेशनल राइटिंग प्रोग्राम में भारत से आमन्त्रित लेखक। सन् 2000 में गोएटे इन्स्टीट्यूट, जर्मनी व सन् 2005 में पोएट्री ट्रान्सलेशन सेण्टर, लन्दन युनिवर्सिटी के निमन्त्रण पर जर्मनी व इंग्लैण्ड के कई शहरों में कविता पाठ। भारतीय प्रतिनिधि लेखक मण्डल के सदस्य के नाते चीन, फ्रांस, इंग्लैण्ड, मॉरीशस, जर्मनी आदि देशों की एकाधिक यात्राओं के अलावा मेक्सिको, ऑस्ट्रिया, इटली, तुर्की, बुल्गारिया, तिब्बत, कम्बोडिया, लाओस, इण्डोनेशिया की भरपूर यात्राएँ। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (1984), संस्कृति सम्मान (1989), केदार सम्मान (2000), हिन्दी अकादमी साहित्यकार सम्मान (2008) व द्विजदेव सम्मान (2010) से सम्मानित।

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