SaleHardback
Nai Sadi Ka Panchtantra
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
उदय प्रकाश
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
उदय प्रकाश
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹795 ₹557
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1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789352293124
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
404
केदारनाथ सिंह की कविता ‘बाघ’ पर कुछ सोचने और कुछ लिखने का आज सबसे अधिक अनुकूल समय है। जैसा कि प्रचलन है, अगर औपचारिक, सार्वजनिक और उत्सवधर्मी भाषा का सहारा लें तो यह वर्ष, जो कि अपने आप में ही खासा ऐतिहासिक वर्ष है, संयोग से केदारनाथ सिंह की सृजनात्मक यात्रा का पचासवाँ वर्ष भी है। अर्थात् हमारे समय के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण वरिष्ठ कवि की एक सचमुच लम्बी, खाइयों-शिखरों, उतार-चढ़ावों और चुप्पियों-अभिव्यक्तियों की कई अनेकरूपताओं से भरी महत्त्वपूर्ण काव्य-यात्रा की स्वर्णजयन्ती ।
केदारनाथ जी ने अभी-अभी बीत चुकी बीसवीं सदी के ठीक उत्तरार्द्ध से कविता लिखने की शुरुआत की थी। सन् 1950 से। लेकिन एक दशक तक लिखने के बाद, 1960 से 1980 तक, यानी लगभग बीस लम्बे वर्षों तक वे कविता के परिदृश्य से लगभग फरार रहे। इन बीस वर्षों में उनकी अनुपस्थिति और निःशब्दता, 1980 में उनकी वापसी के ठीक पहले तक, उनके रचनाकाल में अक्सर इतिहास में पाये जाने वाले किसी ‘अन्धकार युग’ की तरह पसरी हुई है। इस ‘निस्तब्ध-काल’ या ‘अज्ञातवास-काल’ में अपने न लिखने के कारणों के बारे में अपने किसी भी साक्षात्कार में न तो उन्होंने कोई बहुत विस्तृत स्पष्टीकरण दिया है, न कविता के किसी उल्लेखनीय आलोचक ने इस अन्धकार की छानबीन की कोई ख़ास चेष्टा की है।
उत्तर- आधुनिक लोग कहते हैं कि कोई चीज़ जब बेतहाशा बिना किसी उद्देश्य और मकसद के पैदा की जाने लगती है तो वह कबाड़ में बदल जाती है। अमेरिका और कुछ अन्य पश्चिमी देशों में हजारों एकड़ जमीन फालतू और अतिरिक्त हो चुके उपभोक्ता कबाड़ के लिए लीज पर ली जाती है और विलासिता तथा भोग के इस नये कबाड़ी को सिर्फ उस फालतू कबाड़ को रखने भर से भारी मुनाफा होता है।
यहाँ भी ‘महानों’ की कमी नहीं है। वे टीवी एंकर जो ऐसा बोलते हैं और वे लिक्खाड़ जो ऐसा लिखते हैं, सब के सब ‘चैटर्स’ हैं। वे भाषा को कबाड़ में बदलने वाले असंख्य कारखानों में से कुछ कारख़ानों के वेतनभोगी कामगार हैं। वे अपनी मूर्खताओं से सम्मोहित करते हैं और ग्लैमर तथा हरकतों से मन बहलाते हैं। उनकी भूमिका भाषा को ‘कर्कट’ में बदलने, व्याकरण को चौपट करने और राजनीति को तमाशा में तब्दील करने के लिए होता है।
हिन्दी के उपेक्षित कवि सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ ने लिखा था कि ‘हमारे यहाँ समाजवाद/ मालगोदाम में लटकती उन बाल्टियों की तरह है जिनमें ‘आग’ लिखा है/ लेकिन बालू और पानी भरा है।’
– इसी पुस्तक से
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Description
केदारनाथ सिंह की कविता ‘बाघ’ पर कुछ सोचने और कुछ लिखने का आज सबसे अधिक अनुकूल समय है। जैसा कि प्रचलन है, अगर औपचारिक, सार्वजनिक और उत्सवधर्मी भाषा का सहारा लें तो यह वर्ष, जो कि अपने आप में ही खासा ऐतिहासिक वर्ष है, संयोग से केदारनाथ सिंह की सृजनात्मक यात्रा का पचासवाँ वर्ष भी है। अर्थात् हमारे समय के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण वरिष्ठ कवि की एक सचमुच लम्बी, खाइयों-शिखरों, उतार-चढ़ावों और चुप्पियों-अभिव्यक्तियों की कई अनेकरूपताओं से भरी महत्त्वपूर्ण काव्य-यात्रा की स्वर्णजयन्ती ।
केदारनाथ जी ने अभी-अभी बीत चुकी बीसवीं सदी के ठीक उत्तरार्द्ध से कविता लिखने की शुरुआत की थी। सन् 1950 से। लेकिन एक दशक तक लिखने के बाद, 1960 से 1980 तक, यानी लगभग बीस लम्बे वर्षों तक वे कविता के परिदृश्य से लगभग फरार रहे। इन बीस वर्षों में उनकी अनुपस्थिति और निःशब्दता, 1980 में उनकी वापसी के ठीक पहले तक, उनके रचनाकाल में अक्सर इतिहास में पाये जाने वाले किसी ‘अन्धकार युग’ की तरह पसरी हुई है। इस ‘निस्तब्ध-काल’ या ‘अज्ञातवास-काल’ में अपने न लिखने के कारणों के बारे में अपने किसी भी साक्षात्कार में न तो उन्होंने कोई बहुत विस्तृत स्पष्टीकरण दिया है, न कविता के किसी उल्लेखनीय आलोचक ने इस अन्धकार की छानबीन की कोई ख़ास चेष्टा की है।
उत्तर- आधुनिक लोग कहते हैं कि कोई चीज़ जब बेतहाशा बिना किसी उद्देश्य और मकसद के पैदा की जाने लगती है तो वह कबाड़ में बदल जाती है। अमेरिका और कुछ अन्य पश्चिमी देशों में हजारों एकड़ जमीन फालतू और अतिरिक्त हो चुके उपभोक्ता कबाड़ के लिए लीज पर ली जाती है और विलासिता तथा भोग के इस नये कबाड़ी को सिर्फ उस फालतू कबाड़ को रखने भर से भारी मुनाफा होता है।
यहाँ भी ‘महानों’ की कमी नहीं है। वे टीवी एंकर जो ऐसा बोलते हैं और वे लिक्खाड़ जो ऐसा लिखते हैं, सब के सब ‘चैटर्स’ हैं। वे भाषा को कबाड़ में बदलने वाले असंख्य कारखानों में से कुछ कारख़ानों के वेतनभोगी कामगार हैं। वे अपनी मूर्खताओं से सम्मोहित करते हैं और ग्लैमर तथा हरकतों से मन बहलाते हैं। उनकी भूमिका भाषा को ‘कर्कट’ में बदलने, व्याकरण को चौपट करने और राजनीति को तमाशा में तब्दील करने के लिए होता है।
हिन्दी के उपेक्षित कवि सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ ने लिखा था कि ‘हमारे यहाँ समाजवाद/ मालगोदाम में लटकती उन बाल्टियों की तरह है जिनमें ‘आग’ लिखा है/ लेकिन बालू और पानी भरा है।’
– इसी पुस्तक से
About Author
उदय प्रकाश 1952, मध्य प्रदेश के शहडोल (अब अनूपपुर) ज़िले के गाँव सीतापुर में जन्म। सागर वि.वि. सागर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से शिक्षा प्राप्त। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और इसके मणिपुर केन्द्र में लगभग चार वर्ष तक अध्यापन। संस्कृति विभाग, मध्य प्रदेश, भोपाल में लगभग दो वर्ष विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी। इसी दौरान ‘पूर्वग्रह’ का सहायक सम्पादन। नौ वर्षों तक टाइम्स ऑफ़ इण्डिया के समाचार पाक्षिक ‘दिनमान’ के सम्पादकीय विभाग में नौकरी। बीच में एक वर्ष टाइम्स रिसर्च फ़ाउंडेशन के स्कूल ऑफ़ सोशल जर्नलिज्म में अध्यापन। लगभग दो वर्ष पी.टी.आई. (टेलीविज़न) और एक वर्ष इंडिपेंडेंट टेलीविज़न में विचार और पटकथा प्रमुख। कुछ समय ‘संडे मेल’ में वरिष्ठ सहायक सम्पादक रहे। इन दिनों स्वतन्त्र लेखन तथा फ़िल्म और मीडिया के लिए लेखन। ‘सुनो कारीगर’, ‘अबूतर-कबूतर’, ‘रात में हारमोनियम, ‘एक भाषा हुआ करती है’, ‘नयी सदी के लिए चयन: पचास कविताएँ’ (कविता संग्रह); ‘दरियाई घोड़ा’, ‘तिरिछ’, ‘और अन्त में प्रार्थना’, ‘पॉल गोमरा का स्कूटर’, ‘पीली छतरी वाली लड़की’, ‘दत्तात्रोय के दुख’, ‘मोहन दास’, ‘अरेबा परेबा’, ‘मैंगोसिल’ (कहानी संग्रह); ‘ईश्वर की आँख’, ‘अपनी उनकी बात’ और ‘नयी सदी का पंचतन्त्र’ (निबन्ध, आलोचना) पुस्तकें प्रकाशित। इसके अलावा लगभग 8 पुस्तकें अंग्रेज़ी में प्रकाशित। ‘पीली छतरी वाली लड़की’ (उर्दू), ‘तिरिछ अणि इतर कथा’, ‘अरेबा परेबा’ (मराठी), ‘मोहन दास’ कन्नड़ में प्रकाशित, पंजाबी, उड़िया, अंग्रेज़ी में प्रकाश्य। ‘लाल घास पर नीले घोड़े’ (मिखाइल शात्रोव के नाटक का अनुवाद और रूपान्तर), ‘कला अनुभव’ (प्रो. हरियन्ना की सौन्दर्यशास्त्रीय पुस्तक का अनुवाद), ‘इन्दिरा गाँधी की आखिरी लड़ाई’ (बी.बी.सी. संवाददाता मार्क टली-सतीश जैकब की किताब का हिन्दी अनुवाद), ‘रोम्यां रोलां का भारत’ (आंशिक अनुवाद और सम्पादन) का अनुवाद। भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, ओमप्रकाश साहित्य सम्मान, श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार, मुक्तिबोध पुरस्कार, साहित्यकार सम्मान, हिन्दी अकादेमी, दिल्ली, रामकृष्ण जयदयाल सद्भावना सम्मान, पहल सम्मान, कथाक्रम सम्मान, पुश्किन सम्मान, द्विजदेव सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कारों से पुरस्कृत।
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