Jholawala Arthshastra

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
ज्याँ द्रेज़, चंदन श्रीवास्तव द्वारा अनुवादित
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
ज्याँ द्रेज़, चंदन श्रीवास्तव द्वारा अनुवादित
Language:
Hindi
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Paperback

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376

बीते बीस सालों में भारत में सामाजिक नीति को लेकर बढी ज़ोरदार बहस हुई है। इस बहस में ज्याँ द्रेज़ का भी। योगदान रहा है और यह किताब ज्याँ द्रेज़ के ऐसे ही कुछ लेखों का संकलन है। साथ ही, किताब में सामाजिक विकास के मसले पर भी लेख संकलित हैं। संकलन के लेख सामाजिक नीति के अहम मुद्दों मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, ग़रीबी, पोषण, बाल- स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार, रोज़गार तथा सामाजिक सुरक्षा पर केन्द्रित हैं। साथ ही आपको किताब में कॉरपोरेट शक्ति, आण्विक निरस्त्रीकरण गुजरात मॉडल, कश्मीर की स्थिति तथा सार्विक बुनियादी आय सरीखे अपारम्परिक विषयों पर भी छोटे लेख मिलेंगे। किताब के आख़िर का लेख जनधर्मिता और साथ-सहयोग की भावना पर केन्द्रित है। इसमें तर्क दिया गया है कि विवेक-सम्मत सामाजिक मान-मूल्य की रचना विकास का अनिवार्य अंग है। भारत के व्यावसायिक मीडिया-जगत में ‘झोलावाला’ शब्द हिकारत के भाव से इस्तेमाल किया जाता है। इस किताब में पुख़्ता आर्थिक विश्लेषण से युक्त सामहिक कर्म और उससे निकलने वाली सीख पर जोर दिया गया है। पुस्तक की विस्तृत भूमिका में लेखक ने विकासमूलक अर्थशास्त्र के प्रति एक ऐसा नज़रिया अपनाने की हिमायत की है जिसमें शोध-अनुसन्धान के साथ-साथ कर्म-व्यवहार पर भी ज़ोर हो। ज्याँ द्रेज़ राँची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में विजिटिंग प्रोफ़ेसर हैं।।

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Description

बीते बीस सालों में भारत में सामाजिक नीति को लेकर बढी ज़ोरदार बहस हुई है। इस बहस में ज्याँ द्रेज़ का भी। योगदान रहा है और यह किताब ज्याँ द्रेज़ के ऐसे ही कुछ लेखों का संकलन है। साथ ही, किताब में सामाजिक विकास के मसले पर भी लेख संकलित हैं। संकलन के लेख सामाजिक नीति के अहम मुद्दों मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, ग़रीबी, पोषण, बाल- स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार, रोज़गार तथा सामाजिक सुरक्षा पर केन्द्रित हैं। साथ ही आपको किताब में कॉरपोरेट शक्ति, आण्विक निरस्त्रीकरण गुजरात मॉडल, कश्मीर की स्थिति तथा सार्विक बुनियादी आय सरीखे अपारम्परिक विषयों पर भी छोटे लेख मिलेंगे। किताब के आख़िर का लेख जनधर्मिता और साथ-सहयोग की भावना पर केन्द्रित है। इसमें तर्क दिया गया है कि विवेक-सम्मत सामाजिक मान-मूल्य की रचना विकास का अनिवार्य अंग है। भारत के व्यावसायिक मीडिया-जगत में ‘झोलावाला’ शब्द हिकारत के भाव से इस्तेमाल किया जाता है। इस किताब में पुख़्ता आर्थिक विश्लेषण से युक्त सामहिक कर्म और उससे निकलने वाली सीख पर जोर दिया गया है। पुस्तक की विस्तृत भूमिका में लेखक ने विकासमूलक अर्थशास्त्र के प्रति एक ऐसा नज़रिया अपनाने की हिमायत की है जिसमें शोध-अनुसन्धान के साथ-साथ कर्म-व्यवहार पर भी ज़ोर हो। ज्याँ द्रेज़ राँची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में विजिटिंग प्रोफ़ेसर हैं।।

About Author

ज्याँ द्रेज़ ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ एसेक्स से गणितीय अर्थशास्त्र का अध्ययन किया है और इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीट्यूट, नयी दिल्ली से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने लन्दन। स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स और दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अध्यापन किया है और वर्तमान में राँची विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफ़ेसर और दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर हैं। विकास अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीतियों, विशेषकर उनके भारतीय सन्दर्भो में उन्होंने बहुमुखी योगदान दिया है। ग्रामीण विकास, सामाजिक असमानता, प्राथमिक शिक्षा, शिशु पोषण, स्वास्थ्य सेवाएँ और खाद्य सुरक्षा उनके शोध के प्रमुख विषय हैं। ज्याँ द्रेज़ ने अमर्त्य सेन के साथ हंगर एंड पब्लिक एक्शन (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1989) और ऐन अनसटेंन ग्लोरी : इंडिया एंड इट्स कंट्राडिक्शंस (ओयूपी, 2002) का सह-सम्पादन किया है और पब्लिक रिपोर्ट ऑन बेसिक एजुकेशन इन इंडिया के लेखक-मण्डल से भी जड़े हैं जो प्रोब (PROBE) रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है।/ अनुवादक : चन्दन श्रीवास्तव जयप्रकाश विश्वविद्यालय (बिहार) में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत चन्दन श्रीवास्तव ग्रामीण संकट पर केन्द्रित देश के प्रथम वेब-भण्डारघर इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज (सी.एस.डी. एस. की एक परियोजना) के एक दशक तक सदस्य रहे। मुख्यधारा के हिन्दी दैनिकों और वेबसाइट्स पर सम-सामयिक मद्दों पर नियमित लेखन और दिल्ली के कॉलेजों में छिटपुट। अध्यापन करते हुए चन्दन श्रीवास्तव समाज-विज्ञान की पुस्तकों को हिन्दी भाषा में लाने के विचार के हिमायती बने। भारतीय जनसंचार संस्थान से पत्रकारिता में पी.जी. डिप्लोमा तथा। जेएनयू के भारतीय भाषा केन्द्र से प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल के निर्देशन में 'उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हिन्दी पब्लिक-स्फीयर का निर्माण' शीर्षक से पीएच.डी. करने के दौरान उन्होंने एनसीईआरटी की राजनीतिक विज्ञान की पुस्तकों के अतिरिक्त समाज विज्ञान की कुछ चर्चित पुस्तकों का अनुवाद किया है।

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