Chehre

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
निदा फाजली
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
निदा फाजली
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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अदब का ताल्लुक दिल के रिश्ते से होता है, हमारे अहसास की पैमाइश और गहराई की अभिव्यक्ति कोई लफ्ज़ नहीं बल्कि ज़ज्बातों का सैलाब होता है, जिसे हम जीते हैं, महसूस करते हैं। जिन्दगी इन्हीं खट्टे-मीठे तजुरबों की कहानी बन जाती है। कुछ कलन्दर इसे अपने इशारे पर नचाते हैं और कुछ को ये। उर्दू अदब की दौलत ऐसे दीवाने-फनकारों से हमेशा लबरेज़ रही है जिन्होंने अपनी कहानी को लफ्ज़ो के दस्तावेज़ से रोशन किया है। निदा फाज़ली ‘चेहरे’ उर्दू अदब के ऐसे ही मस्त-कलन्दरों की जिश्न्दगी की आपबीती है। मशहूर शाइरों का अन्दाज़े -बयां, उनका तौर-तरीका, ख्वाहिशे , हसद, मोहब्बतें, चाल-चलन, सादगी, रवानी, मिठास और लोच को निदा फ़ाज़ली की कलम जिस तरह से बयां करती है वो कमाल है। लगता है ये किसी का जाति मामला नहीं बल्कि हमारा ही आईना है जिसमें हमें अपना ही चेहरा दिखाई देता है।

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Description

अदब का ताल्लुक दिल के रिश्ते से होता है, हमारे अहसास की पैमाइश और गहराई की अभिव्यक्ति कोई लफ्ज़ नहीं बल्कि ज़ज्बातों का सैलाब होता है, जिसे हम जीते हैं, महसूस करते हैं। जिन्दगी इन्हीं खट्टे-मीठे तजुरबों की कहानी बन जाती है। कुछ कलन्दर इसे अपने इशारे पर नचाते हैं और कुछ को ये। उर्दू अदब की दौलत ऐसे दीवाने-फनकारों से हमेशा लबरेज़ रही है जिन्होंने अपनी कहानी को लफ्ज़ो के दस्तावेज़ से रोशन किया है। निदा फाज़ली ‘चेहरे’ उर्दू अदब के ऐसे ही मस्त-कलन्दरों की जिश्न्दगी की आपबीती है। मशहूर शाइरों का अन्दाज़े -बयां, उनका तौर-तरीका, ख्वाहिशे , हसद, मोहब्बतें, चाल-चलन, सादगी, रवानी, मिठास और लोच को निदा फ़ाज़ली की कलम जिस तरह से बयां करती है वो कमाल है। लगता है ये किसी का जाति मामला नहीं बल्कि हमारा ही आईना है जिसमें हमें अपना ही चेहरा दिखाई देता है।

About Author

निदा फ़ाजली : निदा फ़ाजली का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में और प्रारंभिक जीवन ग्वालियर में गुजरा। ग्वालियर में रहते हुए उन्होंने उर्दू अदब में अपनी पहचान बना ली थी और बहुत जल्द वे उर्दू की साठोत्तरी पीढ़ी के एक महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में पहचाने जाने लगे। निदा फ़ाजली की कविताओं का पहला संकलन ‘लफ़्ज़ों का पुल’ छपते ही उन्हें भारत और पाकिस्तान में जो ख्याति मिली वह बिरले ही कवियों को नसीब होती है। इससे पहले अपनी गद्य की किताब मुलाकातें के लिए वे काफी विवादास्पद और चर्चित रह चुके थे। ‘खोया हुआ सा कुछ’ उनकी शाइरी का एक और महत्त्वपूर्ण संग्रह है। सन 1999 का साहित्य अकादमी पुरस्कार ‘खोया हुआ सा कुछ’ पुस्तक पर दिया गया है। उनकी आत्मकथा का पहला खंड ‘दीवारों के बीच’ और दूसरा खंड ‘दीवारों के बाहर’ बेहद लोकप्रिय हुए हैं। फिलहाल: फिल्म उद्योग से सम्बद्ध।

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