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Bharat Mein Rajniti Kal Aur Aaj
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
रजनी कोठारी अभय कुमार दुबे द्वारा सम्पादित
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
रजनी कोठारी अभय कुमार दुबे द्वारा सम्पादित
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹450 ₹315
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In stock
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ISBN:
SKU
9789352291168
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
520
भारतीय राजनीति के विकास का अनूठा अध्ययन करने वाली इस पुस्तक का पहला वाक्य है; अगर ‘आधुनिकता’ हमारे समय की केंद्रीय प्रवर्ति है, तो उसकी चालक शक्ति है ‘ राजनीतिकरण’। पुस्तक में दिखाया गया है कि हजारों साल पुराना एक पारंपरिक समाज किस तरह लोकतान्त्रिक राजनीति के हाथों बादल रहा है। भारतीय राजनीति को संजख्ने कि पश्चिम प्रदत्त धारणाओं का खंडन करते हुए भारतिए समाज कि शर्तों पर रची गयी एक सर्वथा नवीन और सम्पूर्ण निगाह पेश करने वाले इस क्लासिक ग्रंथ में भारतीय समाज के उन पहलुओं कि शिनाख्त कि गयी है जो आधुनिकीकरण के साथ सकारात्मक तादात्म्य रखते हैं,और उन पहलुओं कि तरफ भी इशारा किया गया है जो आधुनिकीकरण कि प्रकिया में बाधक हैं।
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Description
भारतीय राजनीति के विकास का अनूठा अध्ययन करने वाली इस पुस्तक का पहला वाक्य है; अगर ‘आधुनिकता’ हमारे समय की केंद्रीय प्रवर्ति है, तो उसकी चालक शक्ति है ‘ राजनीतिकरण’। पुस्तक में दिखाया गया है कि हजारों साल पुराना एक पारंपरिक समाज किस तरह लोकतान्त्रिक राजनीति के हाथों बादल रहा है। भारतीय राजनीति को संजख्ने कि पश्चिम प्रदत्त धारणाओं का खंडन करते हुए भारतिए समाज कि शर्तों पर रची गयी एक सर्वथा नवीन और सम्पूर्ण निगाह पेश करने वाले इस क्लासिक ग्रंथ में भारतीय समाज के उन पहलुओं कि शिनाख्त कि गयी है जो आधुनिकीकरण के साथ सकारात्मक तादात्म्य रखते हैं,और उन पहलुओं कि तरफ भी इशारा किया गया है जो आधुनिकीकरण कि प्रकिया में बाधक हैं।
About Author
विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सीएसडीएस) में $फेलो और भारतीय भाषा कार्यक्रम के निदेशक। पिछले दस साल से हिंदी-रचनाशीलता और आधुनिक विचारों की अन्योन्यक्रिया का अध्ययन। साहित्यिक रचनाओं को समाजवैज्ञानिक दृष्टि से परखने का प्रयास। समाज-विज्ञान को हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में लाने की परियोजना के तहत पंद्रह ग्रंथों का सम्पादन और प्रस्तुति। कई विख्यात विद्वानों की रचनाओं के अनुवाद। समाज-विज्ञान और मानविकी की पूर्व-समीक्षित पत्रिका प्रतिमान समय समाज संस्कृति के सम्पादक। पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और टीवी चैनलों पर होने वाली चर्चाओं में नियमित भागीदारी।
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