Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan : Uday Prakash

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
उदय प्रकाश
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Author:
उदय प्रकाश
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पचास कविताएँ – उदय प्रकाश –
उदय प्रकाश हिन्दी के उन कवियों में से हैं जिनके यहाँ यथार्थ अहसासभर नहीं है। बल्कि उनकी कविताओं में यथार्थ अपने तीख़ेपन के साथ उपस्थित हो कर हमारे समय और समाज की पड़ताल करता है। यह समाज बड़ा जटिल है और समय क्योंकि वर्तमान है, इसलिए बड़ा कठिन है। जबकि अनेक वरिष्ठ और कई नवजात रचनाकार इन्हें अख़बारी सनसनी बनाकर शब्दों को जाया कर रहे हैं। इस मायने में उदय प्रकाश की कविताएँ (और उनका कथात्मक गद्य भी) इस लिहाज़ से उनके समकालीनों से अलग है। ऐसा इसलिए कि उनमें अपने वक़्त की सच्चाइयों का किताबी वर्णन नहीं है। उदय प्रकाश की कविताओं में यह सच्चाइयाँ कभी विचार बनकर उभरती है और कभी बिम्बों के माध्यम से उजागर होती हैं।
उदय प्रकाश के यहाँ स्त्री-जीवन के कुछ चुभते हुए प्रश्न और विचलित करने वाली परेशानियाँ भी हैं। हिन्दी जमात का बड़ा हिस्सा स्त्री-जीवन के कथित विमर्श के बहाने ठेठ रीतिकालीन कथा-प्रसंगों को चटखारे लेकर अर्थहीन चुटकलों में बदल रहा है या दम्भपूर्ण सामन्ती निर्लज्जता का प्रदर्शन करते हुए भी सरेआम जीभ चिढ़ा रहा है, उदय प्रकाश की कविताओं में झलकते-उभरते स्त्री-चरित्र ऐसे सवालों को उठाते हैं कि सिर झुका कर ख़ामोश रह जाना पड़ता है।
इन्सान में बसे वहशीपन को उदय प्रकाश इनसानियत और हैवानियत के विपरीत छोरों पर तान देते हैं। जो सही लेकिन लाचार है; भला लेकिन कमज़ोर है, उसके पक्ष में, उसे बचाने के लिए हाथ अपने आप उठ जाते हैं।
रघुवीर सहाय के बाद विष्णु खरे, लीलाधर जगूड़ी, मंगलेश डबराल, केदारनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी के साथ उदय प्रकाश ऐसे कवि है जिनके पास अपनी बात रखने की दिलकश शैली है। बात यह है कि उनकी कविता सम्मोहित तो करती है लेकिन किसी मैनरिज्म में नष्ट नहीं होती। उदय प्रकाश की काव्य शैली पर चित्रकला और सिनेमा तकनीक का भी मिलाजुला प्रभाव है। उदय प्रकाश ने कई कविताओं में यह दिखाया है।
उदय प्रकाश की रचनाओं में साहित्य और अकादमिक दुनिया की राजनीति, उनकी अन्दरूनी उठापटक और नियुक्तियाँ – पुरस्कारों का दुख्खापन बयान किया गया है। ऐसे दुर्दान्त बीहड़ में एक संवेदनशील रचनाकार का स्वयं को अकेला पाना, उनकी रचनाओं में इस तरह आता है कि जो साहित्य से केवल पाठक के तौर पर जुड़े हैं, वे भी इन विवरणों को पढ़कर टिटक जाते है। उदय प्रकाश अपनी कविताओं में संवेदनशील कवि के सरोकार और उसके साथ किए गये बेरहम सलूक को उजागर कर देते हैं।
आवेग, आवेश, विडम्बना और विलाप से मिलकर उदय प्रकाश की कविता बनती है। उसमें इतना धारदार व्यंग्य है जो करुणा जगाता है। हमारे समय के शायद सर्वाधिक चर्चित कथाकार और समर्थ कवि के यहाँ जाने किस चीज़ की बेचैन तलाश है। यह अभाव में भाव की ढूँढ़ है। कई सन्दर्भों और मायनों में उदय प्रकाश की कविताएँ निजी कविताएँ हैं। उदय प्रकाश जीवनगत अमानवीय परिस्थितियों का लगभग तत्ववादी विश्लेषण करते हैं। लेकिन उसमें ठंडापन नहीं; आग, चीख़ और उत्तेजना का संश्लेषण देता है। -हेमन्त कुकरेती

अन्तिम पृष्ठ आवरण –
आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं सोचता।
आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं बोलता।
कुछ नहीं सोचने
और कुछ नहीं बोलने पर
आदमी मर जाता है।

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पचास कविताएँ – उदय प्रकाश –
उदय प्रकाश हिन्दी के उन कवियों में से हैं जिनके यहाँ यथार्थ अहसासभर नहीं है। बल्कि उनकी कविताओं में यथार्थ अपने तीख़ेपन के साथ उपस्थित हो कर हमारे समय और समाज की पड़ताल करता है। यह समाज बड़ा जटिल है और समय क्योंकि वर्तमान है, इसलिए बड़ा कठिन है। जबकि अनेक वरिष्ठ और कई नवजात रचनाकार इन्हें अख़बारी सनसनी बनाकर शब्दों को जाया कर रहे हैं। इस मायने में उदय प्रकाश की कविताएँ (और उनका कथात्मक गद्य भी) इस लिहाज़ से उनके समकालीनों से अलग है। ऐसा इसलिए कि उनमें अपने वक़्त की सच्चाइयों का किताबी वर्णन नहीं है। उदय प्रकाश की कविताओं में यह सच्चाइयाँ कभी विचार बनकर उभरती है और कभी बिम्बों के माध्यम से उजागर होती हैं।
उदय प्रकाश के यहाँ स्त्री-जीवन के कुछ चुभते हुए प्रश्न और विचलित करने वाली परेशानियाँ भी हैं। हिन्दी जमात का बड़ा हिस्सा स्त्री-जीवन के कथित विमर्श के बहाने ठेठ रीतिकालीन कथा-प्रसंगों को चटखारे लेकर अर्थहीन चुटकलों में बदल रहा है या दम्भपूर्ण सामन्ती निर्लज्जता का प्रदर्शन करते हुए भी सरेआम जीभ चिढ़ा रहा है, उदय प्रकाश की कविताओं में झलकते-उभरते स्त्री-चरित्र ऐसे सवालों को उठाते हैं कि सिर झुका कर ख़ामोश रह जाना पड़ता है।
इन्सान में बसे वहशीपन को उदय प्रकाश इनसानियत और हैवानियत के विपरीत छोरों पर तान देते हैं। जो सही लेकिन लाचार है; भला लेकिन कमज़ोर है, उसके पक्ष में, उसे बचाने के लिए हाथ अपने आप उठ जाते हैं।
रघुवीर सहाय के बाद विष्णु खरे, लीलाधर जगूड़ी, मंगलेश डबराल, केदारनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी के साथ उदय प्रकाश ऐसे कवि है जिनके पास अपनी बात रखने की दिलकश शैली है। बात यह है कि उनकी कविता सम्मोहित तो करती है लेकिन किसी मैनरिज्म में नष्ट नहीं होती। उदय प्रकाश की काव्य शैली पर चित्रकला और सिनेमा तकनीक का भी मिलाजुला प्रभाव है। उदय प्रकाश ने कई कविताओं में यह दिखाया है।
उदय प्रकाश की रचनाओं में साहित्य और अकादमिक दुनिया की राजनीति, उनकी अन्दरूनी उठापटक और नियुक्तियाँ – पुरस्कारों का दुख्खापन बयान किया गया है। ऐसे दुर्दान्त बीहड़ में एक संवेदनशील रचनाकार का स्वयं को अकेला पाना, उनकी रचनाओं में इस तरह आता है कि जो साहित्य से केवल पाठक के तौर पर जुड़े हैं, वे भी इन विवरणों को पढ़कर टिटक जाते है। उदय प्रकाश अपनी कविताओं में संवेदनशील कवि के सरोकार और उसके साथ किए गये बेरहम सलूक को उजागर कर देते हैं।
आवेग, आवेश, विडम्बना और विलाप से मिलकर उदय प्रकाश की कविता बनती है। उसमें इतना धारदार व्यंग्य है जो करुणा जगाता है। हमारे समय के शायद सर्वाधिक चर्चित कथाकार और समर्थ कवि के यहाँ जाने किस चीज़ की बेचैन तलाश है। यह अभाव में भाव की ढूँढ़ है। कई सन्दर्भों और मायनों में उदय प्रकाश की कविताएँ निजी कविताएँ हैं। उदय प्रकाश जीवनगत अमानवीय परिस्थितियों का लगभग तत्ववादी विश्लेषण करते हैं। लेकिन उसमें ठंडापन नहीं; आग, चीख़ और उत्तेजना का संश्लेषण देता है। -हेमन्त कुकरेती

अन्तिम पृष्ठ आवरण –
आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं सोचता।
आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं बोलता।
कुछ नहीं सोचने
और कुछ नहीं बोलने पर
आदमी मर जाता है।

About Author

उदय प्रकाश - 1952, मध्य प्रदेश के शहडोल (अब अनूपपुर) ज़िले के गाँव सीतापुर में जन्म। सागर वि.वि. सागर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से शिक्षा प्राप्त। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और इसके मणिपुर केन्द्र में लगभग चार वर्ष तक अध्यापन। संस्कृति विभाग, मध्य प्रदेश, भोपाल में लगभग दो वर्ष विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी। इसी दौरान ‘पूर्वग्रह’ का सहायक सम्पादन। नौ वर्षों तक टाइम्स ऑफ़ इण्डिया के समाचार पाक्षिक ‘दिनमान’ के सम्पादकीय विभाग में नौकरी। बीच में एक वर्ष टाइम्स रिसर्च फ़ाउंडेशन के स्कूल ऑफ़ सोशल जर्नलिज्म में अध्यापन। लगभग दो वर्ष पी.टी.आई. (टेलीविज़न) और एक वर्ष इंडिपेंडेंट टेलीविज़न में विचार और पटकथा प्रमुख। कुछ समय ‘संडे मेल’ में वरिष्ठ सहायक सम्पादक रहे। इन दिनों स्वतन्त्र लेखन तथा फ़िल्म और मीडिया के लिए लेखन। ‘सुनो कारीगर’, ‘अबूतर-कबूतर’, ‘रात में हारमोनियम, ‘एक भाषा हुआ करती है’, ‘नयी सदी के लिए चयन: पचास कविताएँ’ (कविता संग्रह); ‘दरियाई घोड़ा’, ‘तिरिछ’, ‘और अन्त में प्रार्थना’, ‘पॉल गोमरा का स्कूटर’, ‘पीली छतरी वाली लड़की’, ‘दत्तात्रोय के दुख’, ‘मोहन दास’, ‘अरेबा परेबा’, ‘मैंगोसिल’ (कहानी संग्रह); ‘ईश्वर की आँख’, ‘अपनी उनकी बात’ और ‘नयी सदी का पंचतन्त्र’ (निबन्ध, आलोचना) पुस्तकें प्रकाशित। इसके अलावा लगभग 8 पुस्तकें अंग्रेज़ी में प्रकाशित। ‘पीली छतरी वाली लड़की’ (उर्दू), ‘तिरिछ अणि इतर कथा’, ‘अरेबा परेबा’ (मराठी), ‘मोहन दास’ कन्नड़ में प्रकाशित, पंजाबी, उड़िया, अंग्रेज़ी में प्रकाश्य। ‘लाल घास पर नीले घोड़े’ (मिखाइल शात्रोव के नाटक का अनुवाद और रूपान्तर), ‘कला अनुभव’ (प्रो. हरियन्ना की सौन्दर्यशास्त्रीय पुस्तक का अनुवाद), ‘इन्दिरा गाँधी की आखिरी लड़ाई’ (बी.बी.सी. संवाददाता मार्क टली-सतीश जैकब की किताब का हिन्दी अनुवाद), ‘रोम्यां रोलां का भारत’ (आंशिक अनुवाद और सम्पादन) का अनुवाद। भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, ओमप्रकाश साहित्य सम्मान, श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार, मुक्तिबोध पुरस्कार, साहित्यकार सम्मान, हिन्दी अकादेमी, दिल्ली, रामकृष्ण जयदयाल सद्भावना सम्मान, पहल सम्मान, कथाक्रम सम्मान, पुश्किन सम्मान, द्विजदेव सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कारों से पुरस्कृत।

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