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Sarkandon Ke Peeche (Manto Ab Tak-11)
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सआदत हसन मंटो
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सआदत हसन मंटो
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹125 ₹124
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In stock
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In stock
ISBN:
SKU
9789350722893
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
102
मण्टो की कहानियों के सम्बन्ध में एक और बात, जो बार-बार उभर कर सामने आती है, वह है समाज और व्यक्ति के आपसी रिश्तों, उनके परस्पर टकराव का सूक्ष्म चित्रण अपनी सारी समाजपरकता और सोद्देश्यता के बावजूद मण्टो ‘व्यक्ति’ का सबसे बड़ा हिमायती है। जहाँ वह व्यक्ति के रूप में आदमी द्वारा समाज पर किये गये हस्तक्षेपों के प्रति गाफिल नहीं है, वहीं वह उन असहज दबावों के भी ख़िलाफ है, जो समाज की ओर से व्यक्ति को सहने पड़ते है । समाज द्वारा व्यक्ति की आजादी के मूल अधिकारों के हनन को मण्टो एक जुर्म समझता है, उसी तरह जैसे व्यक्ति द्वारा जनता के शोषण को। मिसाल के तौर पर हम मण्टो की प्रसिद्ध कहानी ‘नंगी आवाज़े ’ को लें, जिसमें मण्टो ने पाकिस्तान में शरणनार्थियों की एक छोटी सी कॉलोनी का चित्र खींचा है। कैसे मजबूरी में आदमी पशुओं के स्तर पर जीने लगता है और स्थितियों को कबूल कर लेता है और जो नहीं कबूल कर पाता, वह भोला की तरह अन्ततः पागल हो जाता है। यहाँ समस्या समूह की नहीं है-समूह तो उन हालात में सन्तुष्ट है ही- समस्या यहाँ व्यक्ति की है जो उन हालात को कबूल करने पर तैयार नहीं होता और तकलीफ पाता है। इस स्थिति में मण्टो की नज़र उस इन्सान पर है जो सामूहिक जीवन में अपनी निजता खो रहा है और इसीलिए मण्टो उन ‘टाट के पर्दों’ के खिलाफ ज़हर उगलता है जो इस निजता का गला घोंट रहे हैं ।
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Description
मण्टो की कहानियों के सम्बन्ध में एक और बात, जो बार-बार उभर कर सामने आती है, वह है समाज और व्यक्ति के आपसी रिश्तों, उनके परस्पर टकराव का सूक्ष्म चित्रण अपनी सारी समाजपरकता और सोद्देश्यता के बावजूद मण्टो ‘व्यक्ति’ का सबसे बड़ा हिमायती है। जहाँ वह व्यक्ति के रूप में आदमी द्वारा समाज पर किये गये हस्तक्षेपों के प्रति गाफिल नहीं है, वहीं वह उन असहज दबावों के भी ख़िलाफ है, जो समाज की ओर से व्यक्ति को सहने पड़ते है । समाज द्वारा व्यक्ति की आजादी के मूल अधिकारों के हनन को मण्टो एक जुर्म समझता है, उसी तरह जैसे व्यक्ति द्वारा जनता के शोषण को। मिसाल के तौर पर हम मण्टो की प्रसिद्ध कहानी ‘नंगी आवाज़े ’ को लें, जिसमें मण्टो ने पाकिस्तान में शरणनार्थियों की एक छोटी सी कॉलोनी का चित्र खींचा है। कैसे मजबूरी में आदमी पशुओं के स्तर पर जीने लगता है और स्थितियों को कबूल कर लेता है और जो नहीं कबूल कर पाता, वह भोला की तरह अन्ततः पागल हो जाता है। यहाँ समस्या समूह की नहीं है-समूह तो उन हालात में सन्तुष्ट है ही- समस्या यहाँ व्यक्ति की है जो उन हालात को कबूल करने पर तैयार नहीं होता और तकलीफ पाता है। इस स्थिति में मण्टो की नज़र उस इन्सान पर है जो सामूहिक जीवन में अपनी निजता खो रहा है और इसीलिए मण्टो उन ‘टाट के पर्दों’ के खिलाफ ज़हर उगलता है जो इस निजता का गला घोंट रहे हैं ।
About Author
सआदत हसन मंटो कहानीकार और लेखक थे। मंटो फ़िल्म और रेडियो पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। मंटो फ़िल्म और रेडियो पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। प्रसिद्ध कहानीकार मंटो का जन्म 11 मई 1912 को पुश्तैनी बैरिस्टरों के परिवार में हुआ था। उनके पिता ग़ुलाम हसन नामी बैरिस्टर और सेशन जज थे। उनकी माता का नाम सरदार बेगम था, और मंटो उन्हें बीबीजान कहते थे। सआदत हसन मंटो की गिनती ऐसे साहित्यकारों में की जाती है जिनकी कलम ने अपने वक़्त से आगे की ऐसी रचनाएँ लिख डालीं जिनकी गहराई को समझने की दुनिया आज भी कोशिश कर रही है। मंटो की कहानियों की बीते दशक में जितनी चर्चा हुई है उतनी शायद उर्दू और हिन्दी और शायद दुनिया के दूसरी भाषाओं के कहानीकारों की कम ही हुई है। आंतोन चेखव के बाद मंटो ही थे जिन्होंने अपनी कहानियों के दम पर अपनी जगह बना ली। मंटो साहित्य जगत के ऐसे लेखक थे जो अपनी लघु कहानियों के काफी चर्चित हुए। वाणी प्रकाशन से मंटो के पच्चीस कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं – ‘रोज़ एक कहानी’, ‘एक प्रेम कहानी’, ‘शरीर और आत्मा’, ‘मेरठ की कैंची’, ‘दौ कौमें’, ‘टेटवाल का कुत्ता’, ‘सन 1919 की एक बात’, ‘मिस टीन वाला’, ‘गर्भ बीज’, ‘गुनहगार मंटो’, ‘शरीफन’, ‘सरकाण्डों के पीछे’, ‘राजो और मिस फ़रिया ‘, ‘फ़ोजा हराम दा’, ‘नया कानून’, ‘मीना बाज़ार’, ‘मैडम डिकॉस्टा’, ‘ख़ुदा की क़सम’, ‘जान मुहम्मद’, ‘गंजे फरिश्ते’, ‘बर्मी लड़की’, ‘बँटवारे के रेखाचित्र’, ‘बादशाह का खात्मा’, ‘तीन मोती औरतें’, ‘तीन गोले’। सआदत हसन मंटो उर्दू-हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण कथाकार माने जाते हैं। उनकी लिखी हुई उर्दू-हिन्दी की कहानियाँ आज एक दस्तावेज बन गयी हैं।
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