Prashna-Paanchali

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सुनीता बुद्धिराजा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सुनीता बुद्धिराजा
Language:
Hindi
Format:
Hardback

202

Save: 10%

In stock

Ships within:
10-12 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789352297566 Category
Category:
Page Extent:
200

द्रौपदी साधारण है, किन्तु साधारण नहीं है। कई माने में वह असाधारण है, किन्तु असाधारण भी नहीं है। वह कुल-परम्परा का निर्वाह है। वह कुल-परम्परा की नियति है और वहीं कुल-परम्परा न निबाह पाने की भी नियति है। यह तो विडम्बना है कि वह एक साथ पाँच पतियों की पत्नी होकर भी अर्जुन के प्रति अधिक अनुरक्त रह पाती है, भीम का आदर पाती है और उसके उपरान्त भी कृष्ण को अपना सखा मान पाती है। कृष्ण और द्रौपदी का प्रेम अनकहा, किन्तु गहरा है। वह उदार प्रेम है। किन्तु सीमाओं के भीतर पनपता है और ये निःशब्द सीमाएँ स्वयं कृष्ण और द्रौपदी ने अपने लिए खींची हैं। न तो द्रौपदी के मन का उल्लास अर्जुन को बाँध पाता है और न ही उसकी पीड़ा उसे रोक पाती है। अर्जुन अपनी पीड़ा में खोए हुए वनवास में भी अपने लिए एक और वनवास चुन लेते हैं- ऐसी परिस्थिति आन खड़ी होती है।

द्रौपदी मानिनी है, रूप गर्विता है, अहंकारी है, ज्वाला जैसी जलती है, किन्तु छली नहीं है। इसीलिए तो परिणाम की परवाह किये बिना ही दुर्योधन को ‘अन्धे का पुत्र भी अन्धा होता है’- कहकर आहत करती है। कितने ही तो रूप हैं- द्रौपदी के। उन्हें इस पुस्तक के माध्यम से, इसके विभिन्न पात्रों के माध्यम से, कवयित्री ने शब्दबद्ध करने का प्रयास किया है।

‘प्रश्न-पांचाली’ के प्रश्न कहीं आपके मन को स्पर्श करेंगे, आपके मन में भी कुछ प्रश्न पैदा करेंगे क्योंकि ये प्रश्न जितने उस युग की पांचाली के हैं, उतने ही आज की ‘पांचाली’ के भी तो हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Prashna-Paanchali”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

द्रौपदी साधारण है, किन्तु साधारण नहीं है। कई माने में वह असाधारण है, किन्तु असाधारण भी नहीं है। वह कुल-परम्परा का निर्वाह है। वह कुल-परम्परा की नियति है और वहीं कुल-परम्परा न निबाह पाने की भी नियति है। यह तो विडम्बना है कि वह एक साथ पाँच पतियों की पत्नी होकर भी अर्जुन के प्रति अधिक अनुरक्त रह पाती है, भीम का आदर पाती है और उसके उपरान्त भी कृष्ण को अपना सखा मान पाती है। कृष्ण और द्रौपदी का प्रेम अनकहा, किन्तु गहरा है। वह उदार प्रेम है। किन्तु सीमाओं के भीतर पनपता है और ये निःशब्द सीमाएँ स्वयं कृष्ण और द्रौपदी ने अपने लिए खींची हैं। न तो द्रौपदी के मन का उल्लास अर्जुन को बाँध पाता है और न ही उसकी पीड़ा उसे रोक पाती है। अर्जुन अपनी पीड़ा में खोए हुए वनवास में भी अपने लिए एक और वनवास चुन लेते हैं- ऐसी परिस्थिति आन खड़ी होती है।

द्रौपदी मानिनी है, रूप गर्विता है, अहंकारी है, ज्वाला जैसी जलती है, किन्तु छली नहीं है। इसीलिए तो परिणाम की परवाह किये बिना ही दुर्योधन को ‘अन्धे का पुत्र भी अन्धा होता है’- कहकर आहत करती है। कितने ही तो रूप हैं- द्रौपदी के। उन्हें इस पुस्तक के माध्यम से, इसके विभिन्न पात्रों के माध्यम से, कवयित्री ने शब्दबद्ध करने का प्रयास किया है।

‘प्रश्न-पांचाली’ के प्रश्न कहीं आपके मन को स्पर्श करेंगे, आपके मन में भी कुछ प्रश्न पैदा करेंगे क्योंकि ये प्रश्न जितने उस युग की पांचाली के हैं, उतने ही आज की ‘पांचाली’ के भी तो हैं।

About Author

सुबह उठकर बिना कुछ लिखे हुए सुनीता बुद्धिराजा के दिन की शुरुआत नहीं होती और रात को बिना कुछ पढ़े हुए नींद नहीं आती। किताबों से घिरे हुए कमरे में उठना-बैठना सुनीता को अच्छा लगता है। ज़िन्दगी की किताब का हर पन्ना सुनीता को भी कुछ न कुछ सिखाता है लेकिन सीख कर भी सभी कुछ पर भरोसा करना, विश्वास करना, सुनीता की आदत है। जीवन के हर आन्दोलन को महसूस करना भी सुनीता की आदत है। सुनीता का सारा लेखन इसी भरोसे, विश्वास और महसूसने की नींव पर टिका हुआ है। दिल्ली में जन्मी सुनीता बुद्धिराजा की कविताएँ, लेख, संगीत-चर्चा सभी कुछ इसी आदत का परिणाम हैं। ‘आधी धूप’, ‘अनुत्तर’ और अब ‘प्रश्न-पांचाली’, सभी ने पाठकों के मन को छुआ है। ‘प्रश्न-पांचाली’ महाभारतीय पात्र द्रौपदी को केन्द्र में रखकर उसी विश्वास की पतली-डोर को पकड़कर लिखा गया कविता-खंड है जिसने नाटककार दिनेश ठाकुर को मंच पर उतारने के लिए बाध्य कर दिया। ‘टीस का सफ़र’ जानी-मानी महिलाओं की निजता के अकेलेपन से उभरी टीस का परिणाम है तो ‘सात सुरों के बीच’ उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ, पं. किशन महाराज, पं. जसराज, मंगलम पल्ली बालमुरली कृष्ण, पं. शिवकुमार शर्मा, पं. बिरजू महाराज तथा पं. हरिप्रसाद चौरसिया के साथ वर्षों की गयी चर्चाओं पर आधारित सुरीली रचना है। आजकल सुनीता बुद्धिराजा संगीत मार्तंड पंडित जसराज की जीवनगाथा लिख रही हैं। पेशे से जनसम्पर्क से जुड़ी सुनीता ‘किंडलवुड कम्युनिकेशंस’ चला रही हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Prashna-Paanchali”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED