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The Position of Woman in Primitive Society : A Study Of The Matriarchy
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Todoon Dilli Ke Kangoore
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
बलदेव सिंह अनुवाद - जसविन्दर कौर बिन्द्रा
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
बलदेव सिंह अनुवाद - जसविन्दर कौर बिन्द्रा
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹325 ₹228
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ISBN:
SKU
9789350729441
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
344
कई सदियों तक दिल्ली में शासन करने वाले मुग़ल शासकों में सबसे अधिक प्रसिद्ध, चर्चित और लोकप्रिय रहे अकबर महान की महानता में भी कई ऐसे सूराख़ रहे, जिनसे मालूम होता है कि शासन सत्ता सँभालने वाला सबसे पहले बादशाह होता है, अन्य रिश्ते-नाते सब बाद में आते हैं। बादशाहत को बनाये रखने में अनेकानेक ऐसे कूटनीतिक दाँव-पेंच व षड्यन्त्र रखे जाते हैं, जिन्हें अक्सर इतिहास में सामने नहीं लाया जाता। मुगल शासक अकबर’ का शासनकाल भी इससे अछूता नहीं।
दुल्ला भट्टी बार इलाके का निवासी इतना जांबाज़ था कि उसने सरेआम अकबर के कारिन्दों को लगान वसूलने पर फटकार भेज दिया । उसका मानना था, धरती उनकी, परिश्रम उनका, तो लहलहाती फसल पर हक़ बादशाह का कैसे…? मुग़ल सल्तनत के दौर में दुल्ला भट्टी एक ऐसे नायक के रूप में सामने आया, जिसने अपनी हिम्मत, दिलेरी तथा जांबाज़ तबीयत से मुग़ल सेना के छक्के छुड़ा दिये । अवाम की हिफाजत के लिए उसके हित को सर्वोपरि रख, जान हथेली पर रख कर लड़ने वाला ‘दुल्ला’ लोकनायक के रूप में उभरा ऐसा सितारा है, जिसने अपने मुट्ठी भर साथियों के साथ मुग़ल सेना का मुक़ाबला कर उनमें भगदड़ मचायी और दूसरी ओर धोखे से कैद कर, फाँसी के तख्ते पर सरेआम लटकाये जाने से वह सदा के लिए अविभाजित पंजाब तथा राजस्थान के बार इलाके में अमर हो गया। लोगों में उसकी वीरता के क़िस्से मशहूर हुए और आज भी पश्चिमी पंजाब तथा उत्तर पंजाब में उसकी ‘वारें’ गायी जाती हैं। ऐसे लोकनायक दुल्ला भट्टी के जीवन तथा जांबाज़ी पर आधारित उपन्यास की रचना बलदेव सिंह ने की है। इस उपन्यास पर उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
छोटे-छोटे वाक्यों द्वारा इस वीर नायक की गाथा को इस प्रकार घटनाओं में पिरोया गया है कि अन्त तक रोचकता बनी रहती है। लध्धी के रूप में दुल्ले की माँ पंजाबी स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है, जो आज भी प्रासंगिक है। इस उपन्यास में पंजाबी रहन-सहन तथा जीवन-शैली को देखा जा सकता है जो पंजाबियों की विशेषता रही है।
लोकनायक वही कहलाते हैं
जो लोगों के दिलों में समा जाते हैं
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Description
कई सदियों तक दिल्ली में शासन करने वाले मुग़ल शासकों में सबसे अधिक प्रसिद्ध, चर्चित और लोकप्रिय रहे अकबर महान की महानता में भी कई ऐसे सूराख़ रहे, जिनसे मालूम होता है कि शासन सत्ता सँभालने वाला सबसे पहले बादशाह होता है, अन्य रिश्ते-नाते सब बाद में आते हैं। बादशाहत को बनाये रखने में अनेकानेक ऐसे कूटनीतिक दाँव-पेंच व षड्यन्त्र रखे जाते हैं, जिन्हें अक्सर इतिहास में सामने नहीं लाया जाता। मुगल शासक अकबर’ का शासनकाल भी इससे अछूता नहीं।
दुल्ला भट्टी बार इलाके का निवासी इतना जांबाज़ था कि उसने सरेआम अकबर के कारिन्दों को लगान वसूलने पर फटकार भेज दिया । उसका मानना था, धरती उनकी, परिश्रम उनका, तो लहलहाती फसल पर हक़ बादशाह का कैसे…? मुग़ल सल्तनत के दौर में दुल्ला भट्टी एक ऐसे नायक के रूप में सामने आया, जिसने अपनी हिम्मत, दिलेरी तथा जांबाज़ तबीयत से मुग़ल सेना के छक्के छुड़ा दिये । अवाम की हिफाजत के लिए उसके हित को सर्वोपरि रख, जान हथेली पर रख कर लड़ने वाला ‘दुल्ला’ लोकनायक के रूप में उभरा ऐसा सितारा है, जिसने अपने मुट्ठी भर साथियों के साथ मुग़ल सेना का मुक़ाबला कर उनमें भगदड़ मचायी और दूसरी ओर धोखे से कैद कर, फाँसी के तख्ते पर सरेआम लटकाये जाने से वह सदा के लिए अविभाजित पंजाब तथा राजस्थान के बार इलाके में अमर हो गया। लोगों में उसकी वीरता के क़िस्से मशहूर हुए और आज भी पश्चिमी पंजाब तथा उत्तर पंजाब में उसकी ‘वारें’ गायी जाती हैं। ऐसे लोकनायक दुल्ला भट्टी के जीवन तथा जांबाज़ी पर आधारित उपन्यास की रचना बलदेव सिंह ने की है। इस उपन्यास पर उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
छोटे-छोटे वाक्यों द्वारा इस वीर नायक की गाथा को इस प्रकार घटनाओं में पिरोया गया है कि अन्त तक रोचकता बनी रहती है। लध्धी के रूप में दुल्ले की माँ पंजाबी स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है, जो आज भी प्रासंगिक है। इस उपन्यास में पंजाबी रहन-सहन तथा जीवन-शैली को देखा जा सकता है जो पंजाबियों की विशेषता रही है।
लोकनायक वही कहलाते हैं
जो लोगों के दिलों में समा जाते हैं
About Author
बलदेव सिंह -
जन्मतिथि: 11 दिसम्बर 1942
शिक्षा : एम. ए. पंजाबी, पटियाला यूनिवर्सिटी, बी. एड., चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी
पंजाबी के विशिष्ट व विभिन्न विधाओं में लिखने वाले साहित्यकार । लगभग पचास पुस्तकों के रचयिता, जिनमें 13 उपन्यास, 10 कहानी संग्रह, गद्य की 3 पुस्तकें, 9 नाटक, 3 यात्रा वृत्तान्त, 5 पुस्तकें बाल साहित्य के साथ, साहित्यिक आत्मकथा - 2 पुस्तकें तथा नेशनल बुक ट्रस्ट व साहित्य अकादेमी से तीन पुस्तकों का अनुवाद भी शामिल हैं।
‘अन्नदाता' उपन्यास भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा हिन्दी में तथा अंग्रेजी में पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से प्रकाशित। लम्बे अर्से तक 'सड़कनामा' व 'लालबत्ती' उपन्यास गद्य पुस्तकों के कारण चर्चित रहे।
मैक्सिम गोर्की अवार्ड, दिल्ली अकादमी, बलराज साहनी पुरस्कार, नानक सिंह अवार्ड, कर्त्तार सिंह धालीवाल तथा अनेक महत्त्वपूर्ण पुरस्कारों सहित 'तोड़ो दिल्ली के कंगूरे' (2011) पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।
विभिन्न विधाओं पर निरन्तर लेखन।
वाणी प्रकाशन से शीघ्र प्रकाश्य अन्य तीन उपन्यास - पाँचवाँ साहिबज़ादा, महाबली सूरा, महाराजा रणजीत सिंह।
सम्पर्क : 19/374, कृष्णा नगर, मोगा-142001 (पंजाब)
मोबाइल : 09814783069
डॉ. जसविन्दर कौर बिन्द्रा
दिल्ली यूनिवर्सिटी से राजनीतिशास्त्र तथा पंजाबी में एम. ए.। पंजाबी साहित्य में पीएच. डी. । दिल्ली यूनिवर्सिटी के पंजाबी विभाग तथा अनेक कॉलेजों में अध्यापन-कार्य।
हिन्दी - पंजाबी दोनों भाषाओं में समान अधिकार से आलोचना, अनुवाद तथा मौलिक रचनाएँ व बाल साहित्य रचयिता।
अंग्रेज़ी, हिन्दी-पंजाबी में 35 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद। नेशनल बुक ट्रस्ट, साहित्य अकादेमी, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला, वाणी प्रकाशन, भारतीय ज्ञानपीठ तथा अन्य प्रतिष्ठित प्रकाशनों से पुस्तकें प्रकाशित। पंजाबी में आलोचना की तीन मौलिक पुस्तकें। पन्द्रह से अधिक पुस्तकें तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आलोचनात्मक निबन्ध व लेख शामिल तथा लगातार प्रकाशित।
हिन्दी - पंजाबी की सभी स्तरीय तथा साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर आलोचना, समीक्षाएँ तथा अनुवाद प्रकाशित।
पंजाबी अकादेमी दिल्ली के अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित।
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